१.
वर्ड्स्वर्थ और 'सम्राट के नए वस्त्र',
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गुणवत्ता अथवा / और सूक्ष्मता से युक्त किसी गहन अनुभव को व्यक्त करने का प्रयास जिन्होंने भी कभी किया है, उन्होंने उसके संप्रेषण में शब्दों की कठिनाई भी अवश्य महसूस की होगी । यदि किसी में कवित्व की प्रतिभा होती है, तो शायद उसकी यह कठिनाई संभवतः कुछ कम हो जाती होगी, लेकिन फिर भी शब्दों के सीमित अर्थ-सामर्थ्य की कठिनाई तो उसके लिए एक बाधा बनी ही रहती है । उदाहरण के लिए यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण बतलाए जा सकते हैं कि वर्ड्स्वर्थ अपने पूरे जीवनकाल पर्यन्त सचमुच यह प्रयास करते रहे थे कि किसी गूढ अनुभव को अभिव्यक्त कर पाएँ । यह भी स्पष्ट ही है कि अपने इस प्रयास में वे शायद किन्हीं अंशों तक ही सफल हो पाएँ हों । परन्तु इस बारे में जहाँ-जहाँ भी उन्हें यत्किञ्चित भी सफलता मिल सकी, वहाँ-वहाँ उनके कविकर्म का सर्वाधिक प्रखर और ओजस्वी स्वरूप प्रकट हुआ । उदाहरण के लिए हम उनकी बहुत प्रसिद्ध और प्रचलित इस कविता में इस अंश के वर्णन पर गौर कर सकते हैं :
"Blank misgivings of a creature,
Moving about in worlds not realized,
High instincts, before which our mortal nature,
Did tremble like a guilty thing surprised."
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"ब्लैंक मिस्गिविंग्स ऑफ़ ऍ क्रीचर,
मूविंग ऍबाउट इन वर्ल्ड्स नॉट रियलाइज़्ड;
हाई इन्स्टिंक्ट्स, बिफ़ोर व्हिच अवर मोर्टल् नेचर,
डिड ट्रेम्बल लाइक ऍ गिल्टी थिंग सरप्राइज़्ड"
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"अपरिचित संसारों / लोकों / भुवनों में भटकती,
जीव की निस्सार उत्कण्ठाएँ, उच्चतर अन्तःप्रेरणाएँ,
जिनके समक्ष, हमारा मरणधर्मी अस्तित्व यूँ थरथराता रहा,
जैसे हो वह कोई अचंभित, अपराधबोध-ग्रस्त प्राणी !"
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इन पंक्तियों के माध्यम से वे जो कहने की चेष्टा कर रहे हैं उसका तात्पर्य क्या है? ये शब्द प्रामाणिक तो हैं किंतु उनकी शक्ति और आलोक हमारे सामने नहीं आ पाते । मुझे स्मरण है, एक बार मैंने यह भी पढ़ा था कि कवि वर्ड्स्वर्थ ने स्वयं भी इस पर ज़ोर देकर कहा था कि ये पँक्तियाँ सत्य से उनके एकात्म होने की गहनतम अनुभूति को व्यक्त करती हैं ।
आस्थारूपी कठिनाई तो इससे भी अधिक दुर्लंघ्य जान पड़ती है । कुछ तो ईश्वर की सत्ता को ही नकार देते हैं, जबकि कुछ (जैसा कि वे कहते हैं, शायद) इसकी झलक कभी-कभी पा लेते हैं, परन्तु साथ ही यह भी ज़रूर कहते हैं कि वह सिंहासन रिक्त है । कुछ अन्य, आवेशपूर्वक कहते हैं कि उस सिंहासन पर एक महिमामयी सत्ता विराजित है । रहस्यवाद से जो शिक्षा मिल सकती है, वह लगभग ’सम्राट के नए वस्त्रों’ की कथा का ही एक रूप मालूम होती है ।
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... निरंतर ....
वर्ड्स्वर्थ और 'सम्राट के नए वस्त्र',
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गुणवत्ता अथवा / और सूक्ष्मता से युक्त किसी गहन अनुभव को व्यक्त करने का प्रयास जिन्होंने भी कभी किया है, उन्होंने उसके संप्रेषण में शब्दों की कठिनाई भी अवश्य महसूस की होगी । यदि किसी में कवित्व की प्रतिभा होती है, तो शायद उसकी यह कठिनाई संभवतः कुछ कम हो जाती होगी, लेकिन फिर भी शब्दों के सीमित अर्थ-सामर्थ्य की कठिनाई तो उसके लिए एक बाधा बनी ही रहती है । उदाहरण के लिए यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण बतलाए जा सकते हैं कि वर्ड्स्वर्थ अपने पूरे जीवनकाल पर्यन्त सचमुच यह प्रयास करते रहे थे कि किसी गूढ अनुभव को अभिव्यक्त कर पाएँ । यह भी स्पष्ट ही है कि अपने इस प्रयास में वे शायद किन्हीं अंशों तक ही सफल हो पाएँ हों । परन्तु इस बारे में जहाँ-जहाँ भी उन्हें यत्किञ्चित भी सफलता मिल सकी, वहाँ-वहाँ उनके कविकर्म का सर्वाधिक प्रखर और ओजस्वी स्वरूप प्रकट हुआ । उदाहरण के लिए हम उनकी बहुत प्रसिद्ध और प्रचलित इस कविता में इस अंश के वर्णन पर गौर कर सकते हैं :
"Blank misgivings of a creature,
Moving about in worlds not realized,
High instincts, before which our mortal nature,
Did tremble like a guilty thing surprised."
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"ब्लैंक मिस्गिविंग्स ऑफ़ ऍ क्रीचर,
मूविंग ऍबाउट इन वर्ल्ड्स नॉट रियलाइज़्ड;
हाई इन्स्टिंक्ट्स, बिफ़ोर व्हिच अवर मोर्टल् नेचर,
डिड ट्रेम्बल लाइक ऍ गिल्टी थिंग सरप्राइज़्ड"
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"अपरिचित संसारों / लोकों / भुवनों में भटकती,
जीव की निस्सार उत्कण्ठाएँ, उच्चतर अन्तःप्रेरणाएँ,
जिनके समक्ष, हमारा मरणधर्मी अस्तित्व यूँ थरथराता रहा,
जैसे हो वह कोई अचंभित, अपराधबोध-ग्रस्त प्राणी !"
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इन पंक्तियों के माध्यम से वे जो कहने की चेष्टा कर रहे हैं उसका तात्पर्य क्या है? ये शब्द प्रामाणिक तो हैं किंतु उनकी शक्ति और आलोक हमारे सामने नहीं आ पाते । मुझे स्मरण है, एक बार मैंने यह भी पढ़ा था कि कवि वर्ड्स्वर्थ ने स्वयं भी इस पर ज़ोर देकर कहा था कि ये पँक्तियाँ सत्य से उनके एकात्म होने की गहनतम अनुभूति को व्यक्त करती हैं ।
आस्थारूपी कठिनाई तो इससे भी अधिक दुर्लंघ्य जान पड़ती है । कुछ तो ईश्वर की सत्ता को ही नकार देते हैं, जबकि कुछ (जैसा कि वे कहते हैं, शायद) इसकी झलक कभी-कभी पा लेते हैं, परन्तु साथ ही यह भी ज़रूर कहते हैं कि वह सिंहासन रिक्त है । कुछ अन्य, आवेशपूर्वक कहते हैं कि उस सिंहासन पर एक महिमामयी सत्ता विराजित है । रहस्यवाद से जो शिक्षा मिल सकती है, वह लगभग ’सम्राट के नए वस्त्रों’ की कथा का ही एक रूप मालूम होती है ।
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