पितृपक्ष
अमावास्या यह भारतीय पंचांग-पद्धति में कालमापन की तीसवीं तिथि है । जिस दिन धरती से चन्द्रमा का प्रकाशित भाग नहीं दिखलाई देता उस तिथि को अमावास्या / अमावस्या कहते हैं ।
(अमा - सह, वस् - होना, साथ होना .... विकिपीडिया मराठी से प्राप्त उक्त अर्थ त्रुटिपूर्ण है, सही अर्थ इस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है : अमा - अन्धकार, अरि-अमा -- अर्यमा ---सूर्य)
’सूर्यचन्द्रमसोः यः परः सन्निकर्षः सा अमावस्या...’ ... गोभिल के अनुसार यह अमावास्या की परिभाषा है ।)
जिस तिथि को चन्द्रमा नहीं दिखलाई पड़े उस तिथि को अमावास्या कहते हैं ।
’अमान्त’-पञ्चाङ्ग; -जिसका प्रचलन महाराष्ट्र, गुजरात तथा कर्नाटक में अधिक है, के अनुसार अमावास्या के बाद आनेवाली तिथि को प्रतिपदा कहते हैं ।
अमावास्या का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं है (इसमें मुझे संदेह है, खोजकर देखना पड़ेगा ।)
किंतु सूर्यग्रहण अमावास्या को ही घटित होता है कुछ ज्योतिर्विदों के अनुसार इसका उल्लेख ऋग्वेद में है, ...
ऋग्वेद के उक्त सूक्त में सूर्य को ग्रसनेवाले स्वर्भानु (राहु) को ऋषि अत्रि ने सर्वप्रथम जाना ।
इस आधार पर अत्रि ऋषि ने ज्योतिषशास्त्र के आधार पर सूर्यग्रहण को सैद्धान्तिक रूप से स्पष्ट किया ।
ऐसा कहना उचित होगा कि ऋषि अत्रि अमावस्या से अवगत थे ।
अमावस्या तीन प्रकार की हो सकती है :
१. जिस तिथि में सूर्योदय से सूर्यास्त तक चन्द्र न दिखलाई दे, उसे सिनीवाली अमावस्या कहते हैं ।
(ऋग्वेद में सिनीवाली नामका देवता का उल्लेख है, संतानप्राप्ति के लिए उसकी आराधना की जाती है ।, अथर्ववेद में अमावस्या को सिनीवाली ही कहते हैं )
२. पुनः यदि सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच चन्द्र न दिखलाई दे और उस् तिथि में ही चतुर्दशी समाप्त होकर तीसवीं तिथि अमावस्या प्रारंभ् होती हो तो उस अमावस्या को ’दर्श’ कहते हैं ।
३. और यदि उस अमावस्या में ही क्रमशः उस चान्द्र-मास की तीसवीं, और अगले चान्द्र-मास की पहली तिथि भी आ जाती हो तो ऐसी अमावस्या को ’कुहू’ नाम से जाना जाता है ।
अर्यमा सूर्य का वह नाम है जो पितृलोक का अधिदेवता है।
इसलिए अमावस्या / अमावास्या की व्युत्पत्ति इस प्रकार सिद्ध है।
'सिनीवाली' से इजिप्शियन देवी 'सिन' का साम्य दृष्टव्य है।
कालान्तर में सिन (Sin) का अर्थ 'पाप' हो गया।
इस प्रकार paganism / Pagan परंपरा की निंदा की गई।
दूसरी ओर यही इजिप्शियन देवी 'सिन' Egyptian Goddess Sin, स्वर्ग (देवतालोक / heaven) की साम्राज्ञी भी थी।
तात्पर्य यह चं > चंद्र ही 'सिन' और 'सिनीवाली' है।
इसी आधार पर त्रिकोणीय ज्यामिति (trigonometry) में sine तथा स-सिन > cosine हैं जो wave-functions हैं।
ऋग्वेद में अमावास्या का उल्लेख न होने का वक्तव्य इसलिए भी त्रुटिपूर्ण है क्योंकि 'सिनीवाली' शब्द तो अनेक स्थानों में प्राप्त होता है, और यह अमावास्या का ही पर्याय है।
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अमावास्या यह भारतीय पंचांग-पद्धति में कालमापन की तीसवीं तिथि है । जिस दिन धरती से चन्द्रमा का प्रकाशित भाग नहीं दिखलाई देता उस तिथि को अमावास्या / अमावस्या कहते हैं ।
(अमा - सह, वस् - होना, साथ होना .... विकिपीडिया मराठी से प्राप्त उक्त अर्थ त्रुटिपूर्ण है, सही अर्थ इस प्रकार ज्ञात किया जा सकता है : अमा - अन्धकार, अरि-अमा -- अर्यमा ---सूर्य)
’सूर्यचन्द्रमसोः यः परः सन्निकर्षः सा अमावस्या...’ ... गोभिल के अनुसार यह अमावास्या की परिभाषा है ।)
जिस तिथि को चन्द्रमा नहीं दिखलाई पड़े उस तिथि को अमावास्या कहते हैं ।
’अमान्त’-पञ्चाङ्ग; -जिसका प्रचलन महाराष्ट्र, गुजरात तथा कर्नाटक में अधिक है, के अनुसार अमावास्या के बाद आनेवाली तिथि को प्रतिपदा कहते हैं ।
अमावास्या का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं है (इसमें मुझे संदेह है, खोजकर देखना पड़ेगा ।)
किंतु सूर्यग्रहण अमावास्या को ही घटित होता है कुछ ज्योतिर्विदों के अनुसार इसका उल्लेख ऋग्वेद में है, ...
ऋग्वेद के उक्त सूक्त में सूर्य को ग्रसनेवाले स्वर्भानु (राहु) को ऋषि अत्रि ने सर्वप्रथम जाना ।
इस आधार पर अत्रि ऋषि ने ज्योतिषशास्त्र के आधार पर सूर्यग्रहण को सैद्धान्तिक रूप से स्पष्ट किया ।
ऐसा कहना उचित होगा कि ऋषि अत्रि अमावस्या से अवगत थे ।
अमावस्या तीन प्रकार की हो सकती है :
१. जिस तिथि में सूर्योदय से सूर्यास्त तक चन्द्र न दिखलाई दे, उसे सिनीवाली अमावस्या कहते हैं ।
(ऋग्वेद में सिनीवाली नामका देवता का उल्लेख है, संतानप्राप्ति के लिए उसकी आराधना की जाती है ।, अथर्ववेद में अमावस्या को सिनीवाली ही कहते हैं )
२. पुनः यदि सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच चन्द्र न दिखलाई दे और उस् तिथि में ही चतुर्दशी समाप्त होकर तीसवीं तिथि अमावस्या प्रारंभ् होती हो तो उस अमावस्या को ’दर्श’ कहते हैं ।
३. और यदि उस अमावस्या में ही क्रमशः उस चान्द्र-मास की तीसवीं, और अगले चान्द्र-मास की पहली तिथि भी आ जाती हो तो ऐसी अमावस्या को ’कुहू’ नाम से जाना जाता है ।
अर्यमा सूर्य का वह नाम है जो पितृलोक का अधिदेवता है।
इसलिए अमावस्या / अमावास्या की व्युत्पत्ति इस प्रकार सिद्ध है।
'सिनीवाली' से इजिप्शियन देवी 'सिन' का साम्य दृष्टव्य है।
कालान्तर में सिन (Sin) का अर्थ 'पाप' हो गया।
इस प्रकार paganism / Pagan परंपरा की निंदा की गई।
दूसरी ओर यही इजिप्शियन देवी 'सिन' Egyptian Goddess Sin, स्वर्ग (देवतालोक / heaven) की साम्राज्ञी भी थी।
तात्पर्य यह चं > चंद्र ही 'सिन' और 'सिनीवाली' है।
इसी आधार पर त्रिकोणीय ज्यामिति (trigonometry) में sine तथा स-सिन > cosine हैं जो wave-functions हैं।
ऋग्वेद में अमावास्या का उल्लेख न होने का वक्तव्य इसलिए भी त्रुटिपूर्ण है क्योंकि 'सिनीवाली' शब्द तो अनेक स्थानों में प्राप्त होता है, और यह अमावास्या का ही पर्याय है।
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