Thursday, 25 October 2018

’क़सीदे-काढ़ना’ - विवेचना

’क़सीदे-काढ़ना’
- विवेचना
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कः शेते? के शेरते ? केशराः ।
कः प्रविष्टो?
विष्णुः नारायणोऽपि ।
के व्यापृमाणाः प्रविष्टाः? केशवाः ।
नृषु नारायणो केशवो वा केशैः ।
के सिताः ? केषिताः कर्षिताः वा ।
को सरति / के सरन्ति ?
केसराः पुंकेसराः वा स्त्रीकेसराः ।
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कौन सोता है? कौन सोते हैं?
केशर ।
कौन व्याप्त / प्रविष्ट है / हैं ?
नारायण / केशव मनुष्यों (नरों) में,
केशों (के मार्ग) से । अर्थात् सूक्ष्म-नाड़ियों से ।
कौन तीक्ष्ण हैं ?
केश की भाँति मार्ग बनाते हुए, खींचे हुए ।
केषिता / कर्षिता से बना कसीदा काढ़ना
कर्षिता-कारिता ..... ।
कौन चलता / गति करता है / करते हैं ?
जीव / प्राणी / प्राण / इन्द्र ।
केसर की तरह तृणों में श्रेष्ठ काश्मीर के रूप में ।
इन्द्र ही अन्न के माध्यम से स्थूल रूप में जीवों में प्रविष्ट होकर उनके मन-बुद्धि में ’अहं’ का रूप लेता है .
इन्द्र ही वायु (मरुत् / मरुत्त) के रूप में पाँच प्राणों के रूप में उनका ऐहिक जीवन सुनिश्चित करता है ।
इन्द्र ही केशों से दिति के गर्भ में प्रविष्ट हुआ और उसने उस गर्भ को सात टुकड़ों में खंडित किया ।
वह गर्भ जब इन्द्र के आघात से रोने लगा तो इन्द्र ने उससे कहा :
"मा रुद् !,
-रोओ नहीं !"
दिति जब वर्ष भर की तपस्या में संलग्न थी, तब इन्द्र ने, जो उसकी बहन अदिति का ज्येष्ठ पुत्र था, ’मौसी’ की सेवा के बहाने उसकी रक्षा करने का कार्यभार स्वीकार किया, और एक दिन जब दिति बैठे-बैठे ही ऊँघने लगी थी, और उसके केश शिथिल होकर खुलकर बिखरकर धरती से जा लगे थे तो इन्द्र अवसर देखकर धरती से उठकर उसके केशों के रास्ते उसके गर्भ में जा पहुँचा और उस गर्भ को, जिसे इन्द्रहन्ता के रूप में जन्म देने हेतु दिति ने धारण कर रखा था, सात टुकड़ों में खंडित कर दिया ।
गर्भ में स्थित शिशु के पीड़ा से त्रस्त होकर चिल्लाने और रोने की आवाज़ से जब दिति की नींद खुली तो वह इन्द्र पर पहले तो क्रुद्ध हुई, किंतु जब इन्द्र ने उसे बतलाया कि इसके लिए उसकी ही असावधानी का दोष है, तब वह हँसने लगी ।
वे सात खण्ड ही सात ’मरुत्’ हुए जो इन्द्र (मघवा / मघवन् / मेघ) के साथ भ्रमण करते हुए धरती पर वर्षा करते हैं ।
वैसे इस रूप में यह कथा ’वाल्मीकि-रामायण’ में पाई जाती है, किंतु इसका आधार वैदिक है ।
’कसीदे-काढ़ना’ का उद्भव यहाँ से है ।
ऐतिहासिक ’सिल्क-रूट’ / ’शल्क-ऋतु’ जिसे रेशम का रास्ता भी कहा जाता है, पर वर्तमान चीन में एक पड़ाव आता है - ’काशगर’ जो काशगृह या काशकर का सज्ञाति (cognate) है । काश का अर्थ जहाँ काँस अर्थात् ’तृण’ होता है, वहीं इस स्थान का एक अन्य नाम ’काशी’ भी है ।
शल्क अर्थात् शल / शल्य / शल्क काँटे का पर्याय है, और 'शल्कीयम्' 'शल्क' से उद्भूत है।  'शल्क' अर्थात छिलका या कठोर आवरण, 'शल्कीयम्' से calcium की व्युत्पत्ति समझी जा सकती है, क्योंकि calcium ही शंख-सीपी जैसे जलीय जीवों का आवरण बनाता है।  (shell , sea-shell ....)
यह कहा जाता है कि 'काशी' ही शिव का स्थान है और यह ’हृदय’ का ही पर्याय है ।
’केशव’ केश से ही 'काशी' से निकलकर ’जगत्’ के रूप में अभिव्यक्त होते हैं ।
’काश्मीर’, केशर / केसर, केशव की ही श्रेष्ठतम / सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है ।
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केशर से Caesar और Cesarean का क्या संबंध हो सकता है इस पर फ़िर कभी किंतु यह तो स्पष्ट ही है कि सम्राट Caesar, 'केसरी' का सज्ञाति / cognate जान पड़ता है और हनुमान को मरुत्पुत्र तथा केसरीनन्दन भी  कहा जाता है।
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जैसे वैदिक अब्रह्म और अब्राहम / Abraham का साम्य दृष्टव्य है, वैसे ही ...  वेदवर्णित 'यह्व', यहोवा और हिब्रू 'यॉड्-हे-वौ-हे'  से व्यक्त किए जानेवाले YHVH -  יהוה. / The Sacred Word की समानता भी दृष्टव्य है।
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अहं ब्रह्माब्रह्मणी  वेदितव्ये।
(देवी अथर्वशीर्ष ३) :
"I AM" also known as 'Brahma', and also as 'A-Brahma' both.
(devI-atharva-sheerSha, 3 ... a Veda-text) 
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(नोट :
उपरोक्त ’पोस्ट’ न तो किसी मत की स्थापना, पुष्टि, विरोध या समर्थन हेतु; और न ही इस बारे में किसी बहस के उद्देश्य से लिखी गई है ।)
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