Thursday, 18 October 2018

The Memory, the Recognition and the Past.

What stuff memory is made of ?
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संस्कृत में 'स्मृ' -- स्मरति -- (भ्वादि गण, परस्मैपदी) तथा 'मृ' -- (तुदादिगण, आत्मनेपदी) धातुओं के प्रथम पुरुष एकवचन लट् लकार रूप क्रमशः 'स्मरति' व 'म्रियते' होते हैं।  और इनके प्रथम पुरुष एकवचन लिट् लकार रूप क्रमशः 'सस्मार' / 'सस्मर' एवं 'ममार' / 'ममर' होते हैं।
स्मृति (याद) और मृति (मृत्यु) समानार्थी और सरूप हैं। 'memory' इसी  'ममार' / 'ममर' का cognate है।
इस प्रकार दोनों नित्य मिटते रहते हैं।
स्मृति, पहचान से होती है और पहचान स्मृति से। 
'अतीत' अर्थात् भूतकाल वह जानकारी है जो अनुभव या विचार के रूप में मस्तिष्क में संचित व सुरक्षित होती है।
आदि-स्मृति या प्रथम स्मृति पुनः दो तरह की हो सकती है -- यांत्रिक तथा जैविक।
भौतिक वस्तुएँ अस्तित्व के जिन नियमों / सिद्धांतों से संचालित होती हैं वे नियम / सिद्धांत किसी प्रकार की 'जानकारी' / information होते हों तो प्रश्न उठता है कि क्या वह भाषा 'जानकारी' / information हो सकती है? 'जानकारी' हमेशा डेटा के रूप में होती है और डेटा हमेशा किसी भाषा में होता है।  इस प्रकार भौतिक वस्तुओं के  अस्तित्व को परिचालित करनेवाला तत्व न तो भाषा के रूप में है न 'जानकारी' / डेटा / information , अनुभव तथा पहचान (recognition) अर्थात् स्मृति / memory के रूप में  हो सकता है जिसके आधार पर  भौतिक वस्तुएँ उन नियमों / सिद्धांतों का अचूक रीति से अनायास पालन करती हैं जिन्हें 'विज्ञान' / 'वैज्ञानिक' भाषा के माध्यम से 'जानकारी' / डेटा / information का रूप देता है। यह तो हुई यांत्रिक स्मृति।
दूसरी ओर जैविक स्मृति वह होती है जो किसी प्राणी में अंतःकरण / चेतना के स्तर पर 'अनुभव' के रूप में संचित होती है।  मस्तिष्क तुलना के द्वारा पहले उन स्मृतियों की पृथक-पृथक 'पहचान'  नोर्मिट / तय करता है और ऐसी अनेक विविध पहचानों के क्रम को पुनः विभिन्न वर्गों में बाँटता है।  यह जैव-प्रक्रिया मूलतः प्रकृति में ही अव्यक्त रूप में स्थिर है और व्यक्त रूप में आने पर उसे 'स्मृति'  कहा जाता है।  RNA तथा mRNA के अध्ययन से यह स्पष्ट है की किस प्रकार स्वसंचालित रीति से जैवकोषीय स्मृति का एक से दूसरे कोष में स्थानांतरण / transportation होता है। यह प्रक्रिया भी बहुत जटिल और रोचक होते हुए भी बहुत सटीक रीति से कार्यरूप लेती है। DNA--mRNA ---protein , pre-mRNA --- promoter -- coding strand -- template strand ... karyotic / eukaryotic ...exons / introns   karyotic / eukaryotic को कार्यतिक / अवकार्यतिक का सज्ञाति (cognate) समझा जा सकता है।
यह तो हुआ स्मृति का जैविक रूप जिसका अध्ययन वैज्ञानिक करते हैं।  दूसरी ओर स्मृति का वह रूप जो स्वयं मन mind, बुद्धि / intellect, विचार / thought, तथा बोध (attention) के माध्यम से यह अध्ययन करता है।
स्मृति का यह रूप जो अध्ययनकर्ता के भीतर सक्रिय है, वह एक ऐसा तत्व है जो मूलतः अपने-आपका अखंडित स्मरण है जिसे न तो विस्मृत किया जा सकता है, न अनुपस्थित / absent . किंतु पहचान जिस स्मृति की होती है, वह स्मृति मूलतः यांत्रिक होती है।  'अपने-आपकी स्मृति' जैसा कुछ होता ही नहीं क्योंकि हम  / अध्ययनकर्ता स्वयं स्मृति और विस्मृति का विषय नहीं है।  सत्य तो यह है कि उसका बोध स्वभाव ही है, न कि जानकारी या पहचान जैसी कोई आने-जानेवाली वस्तु।
इस स्वभाव का बोध, स्मृति से विलक्षण कोई तत्व है।
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विज्ञान आधिभौतिक स्मृति है,
व्यवहार अर्थात् जैविक स्मृति , आधिदैविक स्मृति है,
और, अपने-आपका अखंडित स्वाभाविक, अनायास और सहज बोध  आध्यात्मिक स्मृति है।
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अध्याय 18, श्लोक 72,

कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेणचेतसा ।
कच्चिदज्ञानसम्मोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय ॥
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(कच्चित् एतत् श्रुतम् पार्थ त्वया एकाग्रेण चेतसा ।
कच्चित् अज्ञानसम्मोहः प्रनष्टः ते धनञ्जय ॥)
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भावार्थ :
हे पार्थ (अर्जुन)! क्या तुमने इसे एकाग्रचित्त होकर सुना? हे धनञ्जय (अर्जुन)! क्या (इसे सुनकर) तुम्हारा अज्ञानजनित मोह मष्ट हुआ?
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Chapter 18, śloka 72,

kaccidetacchrutaṃ pārtha
tvayaikāgreṇacetasā |
kaccidajñānasammohaḥ
pranaṣṭaste dhanañjaya ||
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(kaccit etat śrutam pārtha
tvayā ekāgreṇa cetasā |
kaccit ajñānasammohaḥ
pranaṣṭaḥ te dhanañjaya ||)
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Meaning :
O  pārtha (arjuna) ! Did you hear this all with keen, undivided attention?
O dhanañjaya (arjuna)! and, (having heard this), Are your confusions and doubts born of the delusion cleared away?
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 अध्याय 18, श्लोक 73,

अर्जुन उवाच :

नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादात्मयाच्युत ।
स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ॥
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नष्टः मोहः स्मृतिः लब्धा त्वत्प्रसादात् मया अच्युत ।
स्थितः अस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनम् तव ॥)
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भावार्थ :
अर्जुन ने कहा :
हे अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह (जिसने मेरी स्मृति को आवरित कर रखा था) नष्ट हो गया है, और उस स्मृति को पाकर मेरे संशय विलीन हो गए हैं और मैं पुनः आत्मा में अवस्थित (स्थितधी)* हो गया हूँ ।
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’लब्धा’ / ’labdhā’  -- acquired, achieved, attained,  found, recollected, revived,

Chapter 18, śloka 73,

arjuna uvāca :

naṣṭo mohaḥ smṛtirlabdhā
tvatprasādātmayācyuta |
sthito:'smi gatasandehaḥ
kariṣye vacanaṃ tava ||
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naṣṭaḥ mohaḥ smṛtiḥ labdhā
tvatprasādāt mayā acyuta |
sthitaḥ asmi gatasandehaḥ
kariṣye vacanam tava ||)
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Meaning :
arjuna said : O acyuta! (Infallible One -śrīkṛṣṇa), My illusion is now removed. And by your Grace, I have recollected my composure (and remembered again the truth of my Real being). My doubts are cleared away and I am firmly stabilized in Wisdom. And shall act accordingly as you instruct me to do.
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