Monday, 15 October 2018

आस्था और धर्म; .... और राजनीति

सोच का सच !
आस्था और धर्म; .... और राजनीति
आस्था और अस्थि दोनों क्रमशः दृढ और शक्ति-सामर्थ्य से पूर्ण होते हैं,
किंतु दोनों अस्थिरता के शिकार भी होते हैं। यदि वे दधीचि की आस्था या अस्थियाँ न हों तो दोनों किसी भी समय टूट सकते हैं ....
केरल के शबरीमला (शबरीमलाई) / ശബരിമല का वर्णन स्कन्द-पुराण तथा वाल्मीकि रामायण में भी है।
जब हनुमानजी समुद्र को लांघने के लिए सह्याद्रि पर्वत को पैरों से नीचे धकेलकर छलांग लगाते हैं तो समुद्र उनके लिए विश्राम करने हेतु मैनाक पर्वत को प्रेरित करता है।  मैनाक का शिखर वैसे तो समुद्र की गहराई में  छिपा रहता है क्योंकि जब इंद्र पर्वतों के पंख काट रहे थे तब पवनदेवता ने मैनाक को उड़ाकर समुद्र में उस स्थान पर डुबो दिया जहाँ समुद्र बहुत गहरा है।  तब मैनाक इंद्र के आघात से बच गया। इसीलिए समुद्र ने मैनाक से कहा "ये जो मारुतिनंदन हनुमान भगवान् श्रीराम के प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए समुद्र पर से जा रहे हैं, उन्हें तनिक विश्राम का अवसर देकर तुम उनका श्रम हरो और इस प्रकार पवनदेव के ऋण से उऋण हो जाओ !  
सह्य पर्वत का नाम तब से ही सह्य हुआ और उसका यश हनुमान की सहायता करने से बाद में और भी अधिक बढ़ गया।  स्कन्द-पुराण तथा वाल्मीकि रामायण में वर्णित घटनाओं का कॅनवास (canvas) बहुआयामी है और न सिर्फ भौगोलिक और ऐतिहासिक बल्कि आधिदैविक प्रसंगों का भी वहाँ विस्तार से वर्णन है।
भगवान् स्कन्द के स्थान शबरीमला, और पंपा-सरोवर का वर्णन वाल्मीकि-रामायण के अरण्यकाण्ड सर्ग 74 में है।
शिंगणापुर में शनि-मंदिर में तथा सबरीमला के अय्यप्पा मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश को लेकर बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलों के सोच में विभिन्न मत हैं।  जहाँ अय्यप्पा कुमार कार्त्तिकेय का ही रूप होने से ज्योतिषीय दृष्टि से 'मंगल' / भौम का विग्रह हैं वहीं शिंगणापुर के शनिदेवता भी दूसरी दृष्टि से वैराग्यदाता  हैं।  मंगल जहाँ युद्ध के देवता हैं इसलिए भी कुमार कार्त्तिकेय हैं, वहीं ज्योतिष के सिद्धांत के अनुसार विवाह के लिए उनकी जन्म के समय के ग्रहों की स्थिति में उनकी अनुकूलता और प्रतिकूलता विचारणीय है ही।
भगवान् शनि जहाँ सूर्यपुत्र हैं वहीं यम के सौतेले भाई भी हैं। यमराज सूर्य की पत्नी 'संज्ञा' के पुत्र हैं वहीं शनि सूर्यपत्नी छाया के पुत्र हैं।  संज्ञा 'आधिदैविक' स्वरूप की हैं, तो छाया उनकी आधिभौतिक प्रतिरूप है। और इसलिए शनि जहाँ इहलोक में अर्थात् भौतिक जगत में जीवों का न्याय को सुनिश्चित करते हैं, वहीं यमराज परलोक में जीवों के न्याय को, और स्वर्ग-नरक या आगामी जन्म का निर्धारण करते हैं। 
दोनों भाई इस प्रकार प्राणिमात्र के कर्म के अनुसार दोनों लोकों में उनका भाग्य तय करते हैं। 
इसलिए शनि का संबंध न्यायपालिका से है और शनि ही न्यायाधीशों की बुद्धि को प्रेरित करते हैं।
मंगल कुमार होने से 'पुत्र' के कारक हैं इसलिए स्त्रियों तथा विवाह-संबंधों में शुभ-अशुभ को तय करते हैं।
मार (कामदेव / Cupid)  और कुमार (कार्त्तिकेय) दोनों उसी प्रकार परस्पर परिपूरक हैं जैसे शनि और यमराज, संज्ञा और छाया, सूर्य और मार्तण्ड।
यह विचारणीय है कि न्यायाधीश यदि धर्मशास्त्र को ठीक से अध्ययन किए बिना, ठीक से समझे बिना ही आस्था से संबंधित विषयों पर न्याय का निर्णय करें तो वह प्रजा के लिए शुभ या अशुभ, -कुछ भी हो सकता है।किसी दक्षिण-भारतीय नेता द्वारा  दिया गया वक्तव्य जिसमें कोर्ट के जज को इडियट कहा गया अशोभनीय तो है ही, किन्तु उनके धर्मशास्त्र से अनभिज्ञ होने के अर्थ में शायद सत्य हो सकता है, और उन्होंने केवल भावुकता और आक्रोश के कारण जज को इडियट कह दिया हो।
एक सत्य (सोच?) यह भी हो सकता है कि शनि और मंगल दोनों ही राजनीति (और शासन-व्यवस्था तथा राजनीतिकों) को भी अपने-अपने तरीके से प्रभावित करते हैं दोनों ही उसी प्रकार न्याय तथा न्याय-प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं, लेकिन देवताओं से मनुष्य का क्या मुकाबला ?
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