त्रिताप / तापत्रयी
--
॥श्रीहरिः॥
निवेदनम्
निखिलेऽस्मिन् पञ्चतत्त्वाञ्चिते वैरिञ्चप्रपञ्चेऽनादिकालतो बन्धनमुपेत्य प्रारब्धपरिणितिं भुञ्जानानां जनानामाध्यात्मिकादितापत्रयचिन्ताचक्रव्यूहोत्पाटनपटीयो ज्ञानमेवामनन्ति मोक्षोपायतया निःश्रेयससाधनैकमतयो यतयो महर्षयश्च ।
--
॥श्रीहरिः॥
निवेदनम्
निखिलेऽस्मिन् पञ्चतत्त्वाञ्चिते वैरिञ्चप्रपञ्चेऽनादिकालतो बन्धनमुपेत्य प्रारब्धपरिणितिं भुञ्जानानां जनानामाध्यात्मिकादितापत्रयचिन्ताचक्रव्यूहोत्पाटनपटीयो ज्ञानमेवामनन्ति मोक्षोपायतया निःश्रेयससाधनैकमतयो यतयो महर्षयश्च ।
--
(निखिले अस्मिन् पञ्चतत्त्व अञ्चिते वैरिम् च प्रपञ्चे अनादिकालतः बन्धनम् उपेत्य प्रारब्ध-परिणितिं भुञ्जानानां जनानां आध्यात्मिक आदि तापत्रय-चिन्ताचक्रव्यूह-उत्पाटन पटीयः ज्ञानं एव आमनन्ति मोक्ष-उपायतया निःश्रेयस-साधन-एकमतयः यतयः महर्षयः च।)
--
अर्थ :
इस पंचतत्व से बने प्रारब्धरूपी, प्रपञ्चरूपी शत्रु से अनादिकाल से बँधे प्रारब्ध का भोग करते हुए जीवों के आध्यात्मिक आदि तीनों तापों का उच्छेद करने के लिए और मोक्षप्राप्ति के लिए ज्ञान ही एकमेव साधन है, ऐसा निष्कर्ष चिंतन-मनन से प्राप्तकर ज्ञानियों यतियों, महर्षियों ने यह उपदेश दिया है।
गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित "लघुसिद्धान्तकौमुदी" (पुस्तक संख्या ११६) की भूमिका पढ़ते हुए इस प्रथम वाक्य में जिन तीन तापों से जीव त्रस्त होता है उनका उल्लेख क्रमशः 'आध्यात्मिक', 'आधिदैविक', तथा 'आधिभौतिक' इन तीन प्रकारों से किया गया है।
याद आया पहले कभी;
'दैहिक-दैविक-भौतिक तापा,
रामराज नहिं काहुँहि व्यापा। ...
पढ़ा था।
संस्कृत में आत्मा का एक अर्थ तनु, देह भी होता है ऐसा समझें तो 'दैहिक' का अर्थ 'आध्यात्मिक' है यह समझा जा सकता है। वैसे भी जीव के तीन प्रकार के शरीर क्रमशः स्थूल, सूक्ष्म, तथा कारण कहे गए हैं।
तीनों ही आत्मा के शुद्ध स्वरूप पर आवरण हैं।
--
No comments:
Post a Comment