Monday, 1 October 2018

ऐतरेय-2.

ऐतरेय-2.
निर्विघ्न सुख कहाँ है ?
इस प्रकार उस दुःख से छूटने के उपाय पर विचार करता हुआ गर्भस्थ जीव चिन्तामग्न रहता है । जब उसका जन्म होने लगता है, उस समय तो उसे गर्भ की अपेक्षा भी कोटिगुना अधिक दुःख होता है । गर्भवास के समय जो सद्बुद्धि जाग्रत् हुई रहती है, वह जन्म हो जाने पर नष्ट हो जाती है । बाहर की हवा लगते ही मूढता आ जाती है । मोहग्रस्त होने पर शीघ्र ही उसकी स्मरणशक्ति का नाश हो जाता है । स्मरणशक्ति नष्ट होने पर पूर्वकर्मवशात् जीव का पुनः उसी जन्म (-के शरीर आदि) -में अनुराग हो जाता है । इस प्रकार राग और मोह के वशीभूत हुआ वह संसार में न करने योग्य पापादि कार्यों में लग जाता है । उनमें फँसकर न तो वह अपने को जानता है और न किसी देवता को ही कुछ समझता है । अपने परम कल्याण की बात तक नहीं सुनता । आँख रहते हुए भी नहीं देखता । समतल मार्ग पर धीरे-धीरे चलते हुए भी वह पग-पग पर लड़खड़ाता है । विद्वानों के समझाने पर भी, बुद्धि रहते हुए भी वह नहीं समझ पाता, इसीलिए राग और मोह के वशीभूत होकर संसार में क्लेश उठाता रहता है । जन्म लेने पर गर्भकाल में जाग्रत् हुई पूर्वजन्म की स्मृति अथवा गर्भ के दुःखों की स्मृति नहीं रहती, इसलिए महर्षियों ने गर्भदुःख का निरूपण करने के लिये शास्त्रों का प्रतिपादन किया है । वे शास्त्र स्वर्ग और मोक्ष के उत्तम साधन हैं । सब कार्यों और प्रयोजनों को सिद्ध करनेवाले इस शास्त्रज्ञान के रहते हुए भी लोग उससे अपने कल्याण का साधन नहीं करते । यह अत्यन्त अद्भुत बात है ।
बाल्यावस्था में इन्द्रियों की वृत्तियाँ अव्यक्त रहती हैं, इसलिए जीव उस समय के महान् दुःख को बताने की इच्छा होने पर भी बता नहीं सकता और न उस दुःख के निवारण के लिए कुछ कर ही सकता है । फिर जब दाँत उठने लगता है तब उसे महान् कष्ट भोगना पड़ता है । मौल रोग (सिरदर्द) नाना प्रकार के बालरोग तथा पूतना आदि बालग्रह आदि से भी बालक को बड़ी पीड़ा होती है । भूख-प्यास की पीड़ा से उसके सब अंग व्याकुल रहते हैं तथा वह कहीं खाट आदि पर पड़ा हुआ रोता रहता है । इसके बाद जब वह कुछ बड़ा होता है, तब अक्षरों के अध्ययन आदि से और गुरु के शासन से उसको महान् दुःख होता है ।
युवावस्था में रागोन्मत्त पुरुष की सम्पूर्ण इन्द्रियवृत्तियाँ काम तथा राग की पीड़ा से सदा मतवाली रहती हैं । अतः उसे भी कहाँ से सुख प्राप्त हो सकता है ? मोहवश पुरुष को यदि कहीं अनुराग हो जाता है तो ईर्ष्या के कारण उसे बड़ा भारी दुःख होता है । जो उन्मत्त और क्रोधी है उसका कहीं भी राग होना केवल दुःख का ही कारण है । रात में कामाग्निजनित खेद से पुरुष को निद्रा नहीं आते । दिन में भी द्रव्योपार्जन की चिन्ता लगी रहने के कारण उसे सुख नहीं मिल सकता । स्त्रियाँ सब दोषों का आश्रय हैं; यह बात भली-भाँति जान लेने पर भी जो लोग उनमें मैथुन से सुख मानते हैं, उनका वह सुख मल-मूत्र-त्याग के सदृश ही माना गया है ।
सम्मान अपमान से, प्रियजनों का संयोग वियोग से तथा जवानी वृद्धवस्था से ग्रस्त है । निर्विघ्न सुख कहाँ है ?
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क्रमशः ... ... ... ऐतरेय-3.

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