द् क्विन्टसेन्स ऑफ़ विज़्डम
(महर्षि श्रीरमणकृत उपदेशसार : अंग्रेज़ी अनुवाद)
- एम.अनंतनारायणन्
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०५-०२-२००० को उज्जैन से सदा के लिए अनिश्चित समय और गंतव्य के लिए निकला था।
१३-११-०३ से कुछ माह पहले पुनः उसी स्थान पर, किन्तु उस मकान के सामनेवाले उस 'घर' में 'रहने' की योजना ईश्वर ने बना रखी थी, जहाँ से ०५-०२-२००० को उज्जैन को अलविदा कह, सदा के लिए अनिश्चित समय और गंतव्य के लिए निकला था। ०५-०२-२००० से १३-११-०३ के बीच जे. कृष्णमूर्ति की दो पुस्तकों का अनुवाद किया, जिनमें से एक वर्ष २००३ के आसपास प्रकाशित हुई थी। वैसे पहले और बाद में भी, बहुत सी पुस्तकों का अनुवाद किया, जिनमें से सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण था -'अहं ब्रह्मास्मि'; जो श्री निसर्गदत्त महाराज के मूलतः मराठी में दिए गए प्रवचनों (निरूपणों) का श्री मॉरिस फ्रीडमन द्वारा किए गए अंग्रेज़ी रूपांतर 'I AM THAT' का मेरे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद था। रोचक तथ्य यह भी है कि इन मूल मराठी प्रवचनों (निरूपणों) का प्रकाशन 'सुखसंवाद' शीर्षक से, उसके अंग्रेज़ी अनुवाद 'I AM THAT' के कुछ समय बाद ही हो पाया।
पुनः एक पुस्तक 'The Quintessence of Wisdom' पर दृष्टि पड़ी, जो महर्षि श्रीरमण के 'उपदेश सार' का श्री एम.अनंतनारायणन् द्वारा किया गया अंग्रेज़ी रूपांतर था। किसी अज्ञात प्रेरणा से उसका हिंदी अनुवाद-कार्य शुरू किया। अभी कुछ दिनों पहले उस पांडुलिपि पर नज़र पड़ी तो लगा इसे 'नेट' पर 'पोस्ट' किया जा सकता है। यहाँ केवल उस प्रस्तावना को पोस्ट किया जा रहा है।
भगवान ने चाहा तो ग्रंथ को भी पोस्ट करूँगा।
उसके आदेश के बिना कहाँ कोई पत्ता भी खड़कता है !
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प्रस्तावना --डॉ. सर्वेपल्ली राधाकृष्णन)
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धर्म का सारतत्व है --आत्मज्ञान । यह चेतना का ऐसा एक अभियान है जो तात्विक सिद्धान्तों, पूर्वाग्रहों और बोझ बन चुकी प्रथाओं के बंधन से मुक्ति के लिए किया जानेवाला एक निरंतर प्रयास होता है, -जो वास्तविक और अन्तर्निहित की खोज है । सच्चे धर्म की जड़ें अन्ररंग-अनुभव में होती हैं, आत्मा के अपूर्व अनुभव में हुआ करती हैं ।
श्रीरमण-विरचित "उपदेश-सार" के तीस श्लोक जिसे अब श्री अनंतनारायणन् ने अंग्रेज़ी में भाषांतरित किया है, चेतना के उसी धर्म को प्रदान करते हैं जो एक ओर तो भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थों पर आधारित है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक मानव-मन को भी स्वीकार्य है । यह एक ऐसी नीतिसंगत और विधिसम्मत प्रक्रिया है जो बाह्य संसार की समस्याओं को आन्तरिक आस्था एवं समझ के परिप्रेक्ष्य से हल करती है । एक ऐसे समय में जब विचार-जगत् का वातावरण सण्देह और मतभेदों से आच्छन्न है, समस्त बातों के प्रति अपने वैयक्तिक अन्तरंग अनुभव को प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध पूर्णतः वैध है और व्यक्तियों और राष्ट्रों की भी आध्यात्मिक विमुक्ति के संबंध में उपयुक्त है, इसमें कोई सन्देह नहीं किया जा सकता ।
श्री अनंतनारायणन् द्वारा लिखित भूमिका, अंग्रेज़ी भाषन्तर एवं टिप्पणियाँ इत्यादि न सिर्फ़ श्रीरमण की शिक्षाओं और उनके जीवन के परति उनकी भक्ति का द्योतक हैं, बल्कि उनसे पाश्चात्य रहस्यवाद और साहित्य का उनका गहरा अध्ययन भी प्रमाणित होता है और जिसके कारण उन्होंने प्रायः अपनी विवेचनाओं को अधिक ज्ञनवर्धक एवं रोचक बनाने का सफल प्रयत्न किया है ।
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(महर्षि श्रीरमणकृत उपदेशसार : अंग्रेज़ी अनुवाद)
- एम.अनंतनारायणन्
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०५-०२-२००० को उज्जैन से सदा के लिए अनिश्चित समय और गंतव्य के लिए निकला था।
१३-११-०३ से कुछ माह पहले पुनः उसी स्थान पर, किन्तु उस मकान के सामनेवाले उस 'घर' में 'रहने' की योजना ईश्वर ने बना रखी थी, जहाँ से ०५-०२-२००० को उज्जैन को अलविदा कह, सदा के लिए अनिश्चित समय और गंतव्य के लिए निकला था। ०५-०२-२००० से १३-११-०३ के बीच जे. कृष्णमूर्ति की दो पुस्तकों का अनुवाद किया, जिनमें से एक वर्ष २००३ के आसपास प्रकाशित हुई थी। वैसे पहले और बाद में भी, बहुत सी पुस्तकों का अनुवाद किया, जिनमें से सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण था -'अहं ब्रह्मास्मि'; जो श्री निसर्गदत्त महाराज के मूलतः मराठी में दिए गए प्रवचनों (निरूपणों) का श्री मॉरिस फ्रीडमन द्वारा किए गए अंग्रेज़ी रूपांतर 'I AM THAT' का मेरे द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद था। रोचक तथ्य यह भी है कि इन मूल मराठी प्रवचनों (निरूपणों) का प्रकाशन 'सुखसंवाद' शीर्षक से, उसके अंग्रेज़ी अनुवाद 'I AM THAT' के कुछ समय बाद ही हो पाया।
पुनः एक पुस्तक 'The Quintessence of Wisdom' पर दृष्टि पड़ी, जो महर्षि श्रीरमण के 'उपदेश सार' का श्री एम.अनंतनारायणन् द्वारा किया गया अंग्रेज़ी रूपांतर था। किसी अज्ञात प्रेरणा से उसका हिंदी अनुवाद-कार्य शुरू किया। अभी कुछ दिनों पहले उस पांडुलिपि पर नज़र पड़ी तो लगा इसे 'नेट' पर 'पोस्ट' किया जा सकता है। यहाँ केवल उस प्रस्तावना को पोस्ट किया जा रहा है।
भगवान ने चाहा तो ग्रंथ को भी पोस्ट करूँगा।
उसके आदेश के बिना कहाँ कोई पत्ता भी खड़कता है !
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प्रस्तावना --डॉ. सर्वेपल्ली राधाकृष्णन)
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धर्म का सारतत्व है --आत्मज्ञान । यह चेतना का ऐसा एक अभियान है जो तात्विक सिद्धान्तों, पूर्वाग्रहों और बोझ बन चुकी प्रथाओं के बंधन से मुक्ति के लिए किया जानेवाला एक निरंतर प्रयास होता है, -जो वास्तविक और अन्तर्निहित की खोज है । सच्चे धर्म की जड़ें अन्ररंग-अनुभव में होती हैं, आत्मा के अपूर्व अनुभव में हुआ करती हैं ।
श्रीरमण-विरचित "उपदेश-सार" के तीस श्लोक जिसे अब श्री अनंतनारायणन् ने अंग्रेज़ी में भाषांतरित किया है, चेतना के उसी धर्म को प्रदान करते हैं जो एक ओर तो भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थों पर आधारित है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक मानव-मन को भी स्वीकार्य है । यह एक ऐसी नीतिसंगत और विधिसम्मत प्रक्रिया है जो बाह्य संसार की समस्याओं को आन्तरिक आस्था एवं समझ के परिप्रेक्ष्य से हल करती है । एक ऐसे समय में जब विचार-जगत् का वातावरण सण्देह और मतभेदों से आच्छन्न है, समस्त बातों के प्रति अपने वैयक्तिक अन्तरंग अनुभव को प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध पूर्णतः वैध है और व्यक्तियों और राष्ट्रों की भी आध्यात्मिक विमुक्ति के संबंध में उपयुक्त है, इसमें कोई सन्देह नहीं किया जा सकता ।
श्री अनंतनारायणन् द्वारा लिखित भूमिका, अंग्रेज़ी भाषन्तर एवं टिप्पणियाँ इत्यादि न सिर्फ़ श्रीरमण की शिक्षाओं और उनके जीवन के परति उनकी भक्ति का द्योतक हैं, बल्कि उनसे पाश्चात्य रहस्यवाद और साहित्य का उनका गहरा अध्ययन भी प्रमाणित होता है और जिसके कारण उन्होंने प्रायः अपनी विवेचनाओं को अधिक ज्ञनवर्धक एवं रोचक बनाने का सफल प्रयत्न किया है ।
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