भृगु-वल्ली
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गिरीश (ग्रीस) नामक जिस देश में गरुड़ ने हातिम ताई को ला छोड़ा था वहाँ वह पूरे जीवन भर रहा ऐसा कह सकते हैं ।
उसने संस्कृत भाषा उतनी ही सीखी, जितनी उसे सिखाई गई थी ।
जैसा कि पूर्व में लिख चुका हूँ उशना (शुक्राचार्य), भृगु तथा भार्गव अर्थात् परशुराम तथा जाबालि ऋषि एक ही परंपरा अर्थात् वैदिक ऋषि-सम्प्रदाय के भिन्न-भिन्न कुलनाम हैं, जिनमें उत्पन्न हुआ या दीक्षित हुआ, इनमें से प्रत्येक होता है । फिर भी उनके कार्य-विशेष से उन्हें भिन्न-भिन्न रूपों में जाना जाता है ।
जैसा कि पूर्व में लिख चुका हूँ वन-मण्डल में अवस्थित उस भूमि पर महर्षि भृगु का आश्रम एवं गुरुकुल था जहाँ वे तैत्तिरीय-आरण्यक के उपनिषद् का अध्यापन करते थे ।
इसी उपनिषद् का उपसंहार ’भुगुवल्ली’ कहा जाता है ।
बहुत समय (सहस्रों वर्षों) तक इस आश्रम की परंपरा काष्ठवत् कठोर रीति से प्रचलित रही इसलिए संभवतः इसे ’कठोलीक’ या ’कठोलिक’ नाम प्राप्त हुआ ।
इसके बाद कालक्रम से इसमें ऋषि-परंपरा के अनुसार विभिन्न ऋषियों ने पात्रता की मर्यादा के अनुसार ’कठोपनिषद्’ का अध्ययन और अध्यापन भी किया होगा ऐसा अनुमान है ।
हातिम ताई के अवसान के बहुत बाद प्रचलित लोकभाषा में इस स्थान का नाम भृगु-वल्ली से बदलकर ’ब्रिज-वैली’ हो गया ।
समुद्र पार से दितिऋक्ष / Dietrich (यह भी शर्मन् / German राजाओं का कुलनाम है) के आक्रमण और आगमन के बाद धीरे-धीरे यह पूरा आश्रम और इसकी परंपरा विलुप्तप्राय हो गई ।
यहाँ उल्लेख्य यह है कि राजा दण्ड के राज्य में स्थित इसी आश्रम में कभी रघुवंश में उत्पन्न राजा ’दण्ड’ का आगमन हुआ जो इस आश्रम का शिष्य था और उसे आचार्य केवल धनुर्वेद की शिक्षा देते थे, न कि अन्य वेदों या वेदाङ्गों की । उसके आगमन के समय भार्गव ऋषि नित्य किए जानेवाले सन्ध्योपासन इत्यादि तथा दूसरे कार्यों से आश्रम में उपस्थित नहीं थे । आश्रम में उनकी परम सुन्दरी कन्या जिसका नाम ’अरजा’ था, के रूप-सौन्दर्य से प्रभावित होकर वह राजा कामावेग से व्याकुल हो उठा और उसने उसकी इच्छा के विरुद्ध उस पर बलात्कार किया । फिर वह वहाँ से चला गया ।
जब ऋषि आश्रम पर आये और उन्होंने ’अरजा’ को मलिन-मुख रोते हुए पाया तो उससे इसका कारण पूछा ।
तब उसने पूरा वृत्तान्त पिता को कह सुनाया ।
(सन्दर्भ : वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ८०, ८१)
पिता को यह सुनकर क्रोध हुआ और उन्होंने राजा दण्ड को शाप दिया कि यहाँ अब सतत सात दिनों तक धूलिवर्षा होगी, जिसमें सम्पूर्ण राज्य दबकर भूमि से नीचे चला जाएगा । तब उन्होंने अपनी पुत्री से कहा :
तुम्हारे लिए यहाँ एक सुन्दर सरोवर है जिसके तट पर रहते हुए तुम इस पाप का प्रायश्चित् करो ।
(प्रश्न उठ सकता है कि अरजा ने ऐसा कौन सा पाप किया ?
इसका उत्तर यही हो सकता है कि विधाता समस्त प्राणियों को उनके पाप और पुण्य का फल प्रदान करता है किन्तु वह उचित समय आने पर ही उसे प्राप्त होता है ।)
उसके द्वारा प्रायश्चित् कर लिए जाने के बाद वह पुनः पितृगृह (नभोमण्डल स्थित शुक्र ग्रह) को प्राप्त हुई और अपने वंश में जाने पर उसे 'वंशी'/ 'वीणा' नाम प्राप्त हुआ । उसे देवी सरस्वती ने कला और संगीत की शिक्षा दी और लोक में लोकभाषा (ग्रीक) में उसे ’वीनस’ नाम प्राप्त हुआ ।
तब अरजा को ऋषि ने आकाश में अपने ही स्थान पर प्रकाशित तारका की तरह अङ्गीकृत किया जो आज भी प्रातः व सन्ध्या समय दृष्टिगोचर होती है ।
यद्यपि विभिन्न कारणों से इस कथा की कल्पना ग्रीस देश से संबद्ध है, और 'वेनिस' / Venice शहर इटली में है, कथासूत्र से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कथा इटली से संबद्ध है (क्योंकि Venice इटली का शहर है जहाँ इतना बड़ा जल-क्षेत्र है कि नावों से आवागमन होता है ।)
... दूसरी ओर Venus; जिसे ग्रीक भाषा में Aphrodite कहा जाता है, भृगु या प्रीति से 'फ्रीड' 'प्रीतिं / Friend और Fri, शुक्र के ही पर्याय / सज्ञात / cognate हो सकते हैं।
भृगु-जाबाल-ऋषि
Compare : Brigitte - Gabriel
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गिरीश (ग्रीस) नामक जिस देश में गरुड़ ने हातिम ताई को ला छोड़ा था वहाँ वह पूरे जीवन भर रहा ऐसा कह सकते हैं ।
उसने संस्कृत भाषा उतनी ही सीखी, जितनी उसे सिखाई गई थी ।
जैसा कि पूर्व में लिख चुका हूँ उशना (शुक्राचार्य), भृगु तथा भार्गव अर्थात् परशुराम तथा जाबालि ऋषि एक ही परंपरा अर्थात् वैदिक ऋषि-सम्प्रदाय के भिन्न-भिन्न कुलनाम हैं, जिनमें उत्पन्न हुआ या दीक्षित हुआ, इनमें से प्रत्येक होता है । फिर भी उनके कार्य-विशेष से उन्हें भिन्न-भिन्न रूपों में जाना जाता है ।
जैसा कि पूर्व में लिख चुका हूँ वन-मण्डल में अवस्थित उस भूमि पर महर्षि भृगु का आश्रम एवं गुरुकुल था जहाँ वे तैत्तिरीय-आरण्यक के उपनिषद् का अध्यापन करते थे ।
इसी उपनिषद् का उपसंहार ’भुगुवल्ली’ कहा जाता है ।
बहुत समय (सहस्रों वर्षों) तक इस आश्रम की परंपरा काष्ठवत् कठोर रीति से प्रचलित रही इसलिए संभवतः इसे ’कठोलीक’ या ’कठोलिक’ नाम प्राप्त हुआ ।
इसके बाद कालक्रम से इसमें ऋषि-परंपरा के अनुसार विभिन्न ऋषियों ने पात्रता की मर्यादा के अनुसार ’कठोपनिषद्’ का अध्ययन और अध्यापन भी किया होगा ऐसा अनुमान है ।
हातिम ताई के अवसान के बहुत बाद प्रचलित लोकभाषा में इस स्थान का नाम भृगु-वल्ली से बदलकर ’ब्रिज-वैली’ हो गया ।
समुद्र पार से दितिऋक्ष / Dietrich (यह भी शर्मन् / German राजाओं का कुलनाम है) के आक्रमण और आगमन के बाद धीरे-धीरे यह पूरा आश्रम और इसकी परंपरा विलुप्तप्राय हो गई ।
यहाँ उल्लेख्य यह है कि राजा दण्ड के राज्य में स्थित इसी आश्रम में कभी रघुवंश में उत्पन्न राजा ’दण्ड’ का आगमन हुआ जो इस आश्रम का शिष्य था और उसे आचार्य केवल धनुर्वेद की शिक्षा देते थे, न कि अन्य वेदों या वेदाङ्गों की । उसके आगमन के समय भार्गव ऋषि नित्य किए जानेवाले सन्ध्योपासन इत्यादि तथा दूसरे कार्यों से आश्रम में उपस्थित नहीं थे । आश्रम में उनकी परम सुन्दरी कन्या जिसका नाम ’अरजा’ था, के रूप-सौन्दर्य से प्रभावित होकर वह राजा कामावेग से व्याकुल हो उठा और उसने उसकी इच्छा के विरुद्ध उस पर बलात्कार किया । फिर वह वहाँ से चला गया ।
जब ऋषि आश्रम पर आये और उन्होंने ’अरजा’ को मलिन-मुख रोते हुए पाया तो उससे इसका कारण पूछा ।
तब उसने पूरा वृत्तान्त पिता को कह सुनाया ।
(सन्दर्भ : वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ८०, ८१)
पिता को यह सुनकर क्रोध हुआ और उन्होंने राजा दण्ड को शाप दिया कि यहाँ अब सतत सात दिनों तक धूलिवर्षा होगी, जिसमें सम्पूर्ण राज्य दबकर भूमि से नीचे चला जाएगा । तब उन्होंने अपनी पुत्री से कहा :
तुम्हारे लिए यहाँ एक सुन्दर सरोवर है जिसके तट पर रहते हुए तुम इस पाप का प्रायश्चित् करो ।
(प्रश्न उठ सकता है कि अरजा ने ऐसा कौन सा पाप किया ?
इसका उत्तर यही हो सकता है कि विधाता समस्त प्राणियों को उनके पाप और पुण्य का फल प्रदान करता है किन्तु वह उचित समय आने पर ही उसे प्राप्त होता है ।)
उसके द्वारा प्रायश्चित् कर लिए जाने के बाद वह पुनः पितृगृह (नभोमण्डल स्थित शुक्र ग्रह) को प्राप्त हुई और अपने वंश में जाने पर उसे 'वंशी'/ 'वीणा' नाम प्राप्त हुआ । उसे देवी सरस्वती ने कला और संगीत की शिक्षा दी और लोक में लोकभाषा (ग्रीक) में उसे ’वीनस’ नाम प्राप्त हुआ ।
तब अरजा को ऋषि ने आकाश में अपने ही स्थान पर प्रकाशित तारका की तरह अङ्गीकृत किया जो आज भी प्रातः व सन्ध्या समय दृष्टिगोचर होती है ।
यद्यपि विभिन्न कारणों से इस कथा की कल्पना ग्रीस देश से संबद्ध है, और 'वेनिस' / Venice शहर इटली में है, कथासूत्र से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह कथा इटली से संबद्ध है (क्योंकि Venice इटली का शहर है जहाँ इतना बड़ा जल-क्षेत्र है कि नावों से आवागमन होता है ।)
... दूसरी ओर Venus; जिसे ग्रीक भाषा में Aphrodite कहा जाता है, भृगु या प्रीति से 'फ्रीड' 'प्रीतिं / Friend और Fri, शुक्र के ही पर्याय / सज्ञात / cognate हो सकते हैं।
भृगु-जाबाल-ऋषि
Compare : Brigitte - Gabriel
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