वंशावलियाँ
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१. सूर्यवंश
अदिति से भगवान् भास्कर के जन्म (प्रकाश) के पश्चात् ही संसार के दृश्य-स्वरूप का उद्भव हुआ जिसमें भगवान् भास्कर स्थूल रूप से रजोगुण तथा तमोगुण की प्रधानता से युक्त हैं । भगवान् भास्कर की धर्मयुक्त अर्द्धाङ्गिनी ’संज्ञा’ (यथार्थ ज्ञान, ज्ञाति) जो अनभिव्यक्त होकर सूक्ष्म और कारणरूप में भी उनके साथ नित्य विद्यमान रहती हैं, ने रजोगुण प्रधान काल और धर्म के देवता यमराज को जन्म दिया, जो समस्त चराचर भूतप्राणियों के गत अतीत, क्रियमाण, प्रारब्ध एवं भावी भविष्य के नियन्ता और मृत्यु के भी अधिष्ठाता देवता हैं ।
भगवान् सूर्य के अत्यधिक तेज को असह्य अनुभव कर किसी समय संज्ञा ने अपनी छाया-प्रतिमा बनाई और उसे सूर्य के पास छोड़कर पिता विश्वकर्मा के घर लौट आई, छाया से सावर्णि मनु (एमानुएल), शनि तथा तापी नदी उत्पन्न हुए । एक दिन सूर्य के संज्ञा से उत्पन्न पुत्र यमराज ने देखा कि उनकी माता (जो छाया के रूप में थी और यह रहस्य न जानने के कारण जिसे यमराज इस रूप में भी संज्ञा समझते थे), शनिदेवता, सावर्णि मनु एवं तापी को तो प्यार-दुलार से रखती थी किन्तु उनकी उपेक्षा करती थी तो उन्होंने क्रोध से छाया पर पैर से आघात किया और छाया ने उन्हें शाप दिया तो वे पिता के पास पहुँचे और उनसे माता के इस व्यवहार की बात कही । तब भगवान् सूर्य को सन्देह हुआ और उन्होंने छाया से पूछा :
"लगता है कि तू वास्तव में संज्ञा नहीं कोई और है, सच-सच बता तू कौन है?
तब छाया ने संज्ञा से प्राप्त अनुज्ञा के अनुसार सत्य निवेदित किया और विलीन हो गई ।
तब से छाया समस्त भूत-प्राणियों के हृदय में रहने लगी ।
सूर्य से उसके तीन पुत्र हुए जिनका नाम क्रमशः अहंकार, मद एवं मोह हुआ ।
उधर जब भगवान् सूर्य को ज्ञात हुआ कि संज्ञा उसके पिता विश्वकर्मा के घर चली गई है तो वे उसकी खोज करते हुए वहाँ पहुँचे । तब (भगवान् ब्रह्मा के पुत्र) विश्वकर्मा ने उन्हें बताया कि किस प्रकार संज्ञा वहाँ आई थी और किस प्रकार उन्होंने उसे :
"स्त्री का स्थान तो पति के घर में ही होता है"
कहकर लौटा दिया था और वह वहाँ से वापस चली गई ।
तब भगवान् सूर्य पुनः उसे खोजते हुए उस वन में पहुँचे जहाँ वह अश्विनी (घोड़ी) के रूप में विचरण कर रही थी ।
उसी अश्विनी (नक्षत्र) से चन्द्र की कालगणना का आरंभ हुआ ।
अश्विनी से भगवान् सूर्य को दो पुत्र अश्विनीकुमार प्राप्त हुए (अश्विनौ) जो क्रमशः विषुव (Equinox) तथा संक्रान्ति (Solstice) के रूप में वर्ष भर खगोल में विचरण करते हुए भी पृथ्वी पर जीवन को संभव करते हुए ऋतुओं और ओषधियों के देवता हैं ।
इसी प्रकार स्थूल रूप में पृथ्वी पर हैहय वंश का जन्म हुआ जिसके प्रथम पुरुष ही हयग्रीव के नाम से जाने जाते हैं । इसी वंश में उत्पन्न हुए क्षत्रिय अश्वमेध के अश्व के रूप में चुने जाते हैं और ऐसे ही अश्व अर्जुन के उस रथ में जुते थे जिसका प्रयोग उसने महाभारत के उस युद्ध में किया था जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण उनके सारथि थे ।
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(आगे और है अगली पोस्ट में ....)
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१. सूर्यवंश
अदिति से भगवान् भास्कर के जन्म (प्रकाश) के पश्चात् ही संसार के दृश्य-स्वरूप का उद्भव हुआ जिसमें भगवान् भास्कर स्थूल रूप से रजोगुण तथा तमोगुण की प्रधानता से युक्त हैं । भगवान् भास्कर की धर्मयुक्त अर्द्धाङ्गिनी ’संज्ञा’ (यथार्थ ज्ञान, ज्ञाति) जो अनभिव्यक्त होकर सूक्ष्म और कारणरूप में भी उनके साथ नित्य विद्यमान रहती हैं, ने रजोगुण प्रधान काल और धर्म के देवता यमराज को जन्म दिया, जो समस्त चराचर भूतप्राणियों के गत अतीत, क्रियमाण, प्रारब्ध एवं भावी भविष्य के नियन्ता और मृत्यु के भी अधिष्ठाता देवता हैं ।
भगवान् सूर्य के अत्यधिक तेज को असह्य अनुभव कर किसी समय संज्ञा ने अपनी छाया-प्रतिमा बनाई और उसे सूर्य के पास छोड़कर पिता विश्वकर्मा के घर लौट आई, छाया से सावर्णि मनु (एमानुएल), शनि तथा तापी नदी उत्पन्न हुए । एक दिन सूर्य के संज्ञा से उत्पन्न पुत्र यमराज ने देखा कि उनकी माता (जो छाया के रूप में थी और यह रहस्य न जानने के कारण जिसे यमराज इस रूप में भी संज्ञा समझते थे), शनिदेवता, सावर्णि मनु एवं तापी को तो प्यार-दुलार से रखती थी किन्तु उनकी उपेक्षा करती थी तो उन्होंने क्रोध से छाया पर पैर से आघात किया और छाया ने उन्हें शाप दिया तो वे पिता के पास पहुँचे और उनसे माता के इस व्यवहार की बात कही । तब भगवान् सूर्य को सन्देह हुआ और उन्होंने छाया से पूछा :
"लगता है कि तू वास्तव में संज्ञा नहीं कोई और है, सच-सच बता तू कौन है?
तब छाया ने संज्ञा से प्राप्त अनुज्ञा के अनुसार सत्य निवेदित किया और विलीन हो गई ।
तब से छाया समस्त भूत-प्राणियों के हृदय में रहने लगी ।
सूर्य से उसके तीन पुत्र हुए जिनका नाम क्रमशः अहंकार, मद एवं मोह हुआ ।
उधर जब भगवान् सूर्य को ज्ञात हुआ कि संज्ञा उसके पिता विश्वकर्मा के घर चली गई है तो वे उसकी खोज करते हुए वहाँ पहुँचे । तब (भगवान् ब्रह्मा के पुत्र) विश्वकर्मा ने उन्हें बताया कि किस प्रकार संज्ञा वहाँ आई थी और किस प्रकार उन्होंने उसे :
"स्त्री का स्थान तो पति के घर में ही होता है"
कहकर लौटा दिया था और वह वहाँ से वापस चली गई ।
तब भगवान् सूर्य पुनः उसे खोजते हुए उस वन में पहुँचे जहाँ वह अश्विनी (घोड़ी) के रूप में विचरण कर रही थी ।
उसी अश्विनी (नक्षत्र) से चन्द्र की कालगणना का आरंभ हुआ ।
अश्विनी से भगवान् सूर्य को दो पुत्र अश्विनीकुमार प्राप्त हुए (अश्विनौ) जो क्रमशः विषुव (Equinox) तथा संक्रान्ति (Solstice) के रूप में वर्ष भर खगोल में विचरण करते हुए भी पृथ्वी पर जीवन को संभव करते हुए ऋतुओं और ओषधियों के देवता हैं ।
इसी प्रकार स्थूल रूप में पृथ्वी पर हैहय वंश का जन्म हुआ जिसके प्रथम पुरुष ही हयग्रीव के नाम से जाने जाते हैं । इसी वंश में उत्पन्न हुए क्षत्रिय अश्वमेध के अश्व के रूप में चुने जाते हैं और ऐसे ही अश्व अर्जुन के उस रथ में जुते थे जिसका प्रयोग उसने महाभारत के उस युद्ध में किया था जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण उनके सारथि थे ।
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(आगे और है अगली पोस्ट में ....)
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