Sunday, 21 February 2016

शून्यमाहात्म्यम्-स्तोत्रम् / śūnyamāhātmyam-stotram

शून्यमाहात्म्यम्-स्तोत्रम्
औन्यं प्रवर्तते यस्य युज्यते वा वियुज्यते ।
श-परं अथ वा शून्यं तदङ्कमिति स्मृतम् ॥1
गणनायामदृश्यं सनभावमेव सूचयति ।
कतीति संख्याभावे विस्मिता साङ्ख्याप्यत्र ॥2
दक्षिणे दक्षिणामूर्तिः वामे तु शक्त्यात्मकं ।
युक्ते अन्यान्यङ्कानि दशगुणं परिवर्धयेत् ॥3
शपरं सर्वदा तिष्ठेच्छक्तिशिवयोः शून्यम् ।
इतिशून्यमाहात्म्यम् यः पठेत् गणेशम् भजेत् ॥4
इति श्रीविनायकस्वामिविरचितं शून्यमाहात्म्यम्-स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥
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 अर्थ :
1. जिसके जोड़े जाने या घटाए जाने से संख्या का मान नहीं बदलता इस प्रकार प्रत्येक संख्या में प्रच्छन्न-रूप (प्र-शं) 0 छिपा होने से इसे शून्य कहा जाता है ।
2. गणना की दृष्टि से यह (0) केवल अभाव का द्योतक है इसलिए यह कैसी संख्या है इस विषय में साङ्ख्य (महर्षि कपिलप्रोक्त साङ्ख्यसिद्धान्त को माननेवाले ज्ञानी) भी आश्चर्य करते हैं ।
3. किसी संख्या के दाहिनी ओर होने पर यह दक्षिण-अमूर्त (अर्थात् भगवान् शिव का दक्षिणामूर्ति) रूप ग्रहण कर लेता है, (जैसे 5 और 05 दोनों का एक ही मान होता है ।) वहीं किसी संख्या के बाईं ओर होने पर उसे दस गुना कर देता है (जैसे 1 > 10) ।
4. ’श’-कार होने से शून्य शिव और शक्ति दोनों में उभयनिष्ठ होने से दोनों के माहात्म्य से संपन्न है ।
इस शून्यमाहात्म्यम् स्तोत्र का जो पाठ करता है भगवान् गणेश को प्रिय होता है ।
श्रीविनायस्वामीकृत शून्यमाहात्म्यम्-स्तोत्रम् संपूर्णम् ॥
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 टिप्पणी :
1. शपर से cipher की व्युत्पत्ति दृष्टव्य है ।
2. ऊन् > कम होना / करना,
तुलना करें : एकोनविंशति  उन्नीस (19)>
(एक ऊन विंशति )
पौन > तीन-चौथाई > पाय ऊनम् > एक से एक-चौथाई कम,
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śūnyamāhātmyam-stotram
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aunyaṃ pravartate yasya yujyate vā viyujyate |
śa-paraṃ atha vā śūnyaṃ tadaṅkamiti smṛtam ||1
gaṇanāyāmadṛśyaṃ sanabhāvameva sūcayati |
katīti saṃkhyābhāve vismitā sāṅkhyāpyatra ||2
dakṣiṇe dakṣiṇāmūrtiḥ vāme tu śaktyātmakaṃ |
yukte anyānyaṅkāni daśaguṇaṃ parivardhayet ||3
śaparaṃ sarvadā tiṣṭhecchaktiśivayoḥ śūnyam |
itiśūnyamāhātmyam yaḥ paṭhet gaṇeśam bhajet ||4
iti śrīvināyakasvāmiviracitaṃ śūnyamāhatmyam-stotram saṃpūrṇam ||
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Meaning :
1. The number that added to or subtracted from any other number does not alter its value and thus lies latent in every number is therefore called śūnyaṃ / zero .
2. While counting which denotes absence of the thing counted, and even the sāṅkhya jñānī those who follow the maharṣi kapilaprokta sāṅkhyasiddhānta express surprise about this 0, what this number signifies?
3.When this number (0) is on the right of another number, stays hidden and appears to have no meaning (Like as in : 5 and 05), but when occupies a place left to a number makes it 10-fold.
4. 0  therefore as śa shares the glory of both : The Lord Shiva and His Divine Consort devī (Shakti).
Whosoever  sings this hymn to śūnyaṃ / zero attains the devotion of  Lord gaṇeśa (The Lord of Intellect and Intelligence).
Thus concludes this glory to śūnyaṃ / zero hymn composed by śrīvināyakasvāmi.
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Note : Compare शपर / śaparaṃ and Cipher.

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