भविष्य की राजनीति और राजनीति का भविष्य
--
राजनीति सदैव किसी काल्पनिक ध्येय, आदर्श स्वप्न की डोर से बँधी पतंग की तरह होती है जो ऐसे ही काल्पनिक भविष्य के आकाश में उड़ते रहने का और किसी भी दूसरी पतंग को न उड़ने देने का संकल्प होती है । मजे की बात यह है कि ऐसे सभी भविष्य एक-दूसरे से नितांत अपरिचित होते हुए भी राजनीति करनेवाले के लिए अपने-आप के लिए नितांत सत्य होते हैं । विचारक, चाहे वे किसी भी वाद के पक्ष में या उसके कट्टर विरोधी हों भविष्य की राजनीति और राजनीति के भविष्य के विचार की डोर में इतनी मजबूती से बँधे होते हैं कि ’किसकी राजनीति?’ और ’किसका भविष्य?’ यह मूल प्रश्न उनके जेहन में कौंधता ही नहीं । मुझे नहीं लगता कि किसी ने भी उनके सामने यह प्रश्न कभी रखा होगा और मुझे यह भी लगता है कि इसे यदि कोई उनके समक्ष रख भी दे तो वे उसे हकबकाकर ऐसे देखेंगे जैसे आपके पवित्र पूजास्थल में किसी ने इरादतन, आपकी भावनाओं को चोट पहुँचाने के लिए किसी निषिद्ध अत्यन्त अपवित्र वस्तु को तब फेंक दिया हो जब आप अपनी आराधना में संलग्न होने जा ही रहे थे ।
राजनीति और भविष्य सदैव चित्त के किसी भय और लोभ, आशा और आशंका की मनःस्थिति होने पर ही विचार के रूप में मन में उठते हैं । यह ’विचार’ स्वयं न तो वह राजनीति है, न वह भविष्य जिसे आधार बनाकर वह व्यक्त होकर अपना शाब्दिक और क्षणिक अस्तित्व प्राप्त कर लेता है । और क्षण भर जीकर मर भी जाता है, किन्तु फिर भी वह विलीन होते-होते अपनी संतान पैदा कर जाता है । यह संतान ही वह डोर है जिस पर भविष्य की राजनीति और राजनीति का भविष्य जैसी कल्पना पतंग सी बँधी भय और लोभ, आशा और आशंका की मनःस्थिति की हवा में डोलती, उठती गिरती रहती है और मेरी पतंग सब दूसरी पतंगों को काटकर आकाश पर एकछत्र साम्राज्य के परचम सी लहराती रहे इस प्रेरणा से विचारक को अभिभूत किए रहती है ।
’किसकी राजनीति?’ और ’किसका भविष्य?’ जब यह प्रश्न उसके सामने कोई रखता है तो स्वाभाविक ही है कि उस प्रश्नकर्ता को बेमतलब का हस्तक्षेप या बाधा समझा जाए, किन्तु किसी भी स्वस्थ-बुद्धि मनुष्य के मन में उसका अपना विवेक ही जब उसके सामने यह प्रश्न रख देता है और वह इस पर ध्यान देता है गौर से इस बारे में समझने की क़ोशिश करता है और इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए तड़प उठता है, तो शायद पहली और अन्तिम बार, अर्थात् सदा-सदा के लिए राजनीति और भविष्य नामक चीज़ से उसका मोहभंग हो सकता है । किन्तु यदि यह प्रश्न उसे बस छूकर गुज़र जाता है तो अभी उसे राजनीति और भविष्य नामक चीज़ों के दलदल में वैसा ही मजा आ रहा होगा, जैसा गर्मियों के दिनों में पानी से भरे गड्ढे में भैंसों को शायद अनुभव होता होगा ।
--
--
राजनीति सदैव किसी काल्पनिक ध्येय, आदर्श स्वप्न की डोर से बँधी पतंग की तरह होती है जो ऐसे ही काल्पनिक भविष्य के आकाश में उड़ते रहने का और किसी भी दूसरी पतंग को न उड़ने देने का संकल्प होती है । मजे की बात यह है कि ऐसे सभी भविष्य एक-दूसरे से नितांत अपरिचित होते हुए भी राजनीति करनेवाले के लिए अपने-आप के लिए नितांत सत्य होते हैं । विचारक, चाहे वे किसी भी वाद के पक्ष में या उसके कट्टर विरोधी हों भविष्य की राजनीति और राजनीति के भविष्य के विचार की डोर में इतनी मजबूती से बँधे होते हैं कि ’किसकी राजनीति?’ और ’किसका भविष्य?’ यह मूल प्रश्न उनके जेहन में कौंधता ही नहीं । मुझे नहीं लगता कि किसी ने भी उनके सामने यह प्रश्न कभी रखा होगा और मुझे यह भी लगता है कि इसे यदि कोई उनके समक्ष रख भी दे तो वे उसे हकबकाकर ऐसे देखेंगे जैसे आपके पवित्र पूजास्थल में किसी ने इरादतन, आपकी भावनाओं को चोट पहुँचाने के लिए किसी निषिद्ध अत्यन्त अपवित्र वस्तु को तब फेंक दिया हो जब आप अपनी आराधना में संलग्न होने जा ही रहे थे ।
राजनीति और भविष्य सदैव चित्त के किसी भय और लोभ, आशा और आशंका की मनःस्थिति होने पर ही विचार के रूप में मन में उठते हैं । यह ’विचार’ स्वयं न तो वह राजनीति है, न वह भविष्य जिसे आधार बनाकर वह व्यक्त होकर अपना शाब्दिक और क्षणिक अस्तित्व प्राप्त कर लेता है । और क्षण भर जीकर मर भी जाता है, किन्तु फिर भी वह विलीन होते-होते अपनी संतान पैदा कर जाता है । यह संतान ही वह डोर है जिस पर भविष्य की राजनीति और राजनीति का भविष्य जैसी कल्पना पतंग सी बँधी भय और लोभ, आशा और आशंका की मनःस्थिति की हवा में डोलती, उठती गिरती रहती है और मेरी पतंग सब दूसरी पतंगों को काटकर आकाश पर एकछत्र साम्राज्य के परचम सी लहराती रहे इस प्रेरणा से विचारक को अभिभूत किए रहती है ।
’किसकी राजनीति?’ और ’किसका भविष्य?’ जब यह प्रश्न उसके सामने कोई रखता है तो स्वाभाविक ही है कि उस प्रश्नकर्ता को बेमतलब का हस्तक्षेप या बाधा समझा जाए, किन्तु किसी भी स्वस्थ-बुद्धि मनुष्य के मन में उसका अपना विवेक ही जब उसके सामने यह प्रश्न रख देता है और वह इस पर ध्यान देता है गौर से इस बारे में समझने की क़ोशिश करता है और इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए तड़प उठता है, तो शायद पहली और अन्तिम बार, अर्थात् सदा-सदा के लिए राजनीति और भविष्य नामक चीज़ से उसका मोहभंग हो सकता है । किन्तु यदि यह प्रश्न उसे बस छूकर गुज़र जाता है तो अभी उसे राजनीति और भविष्य नामक चीज़ों के दलदल में वैसा ही मजा आ रहा होगा, जैसा गर्मियों के दिनों में पानी से भरे गड्ढे में भैंसों को शायद अनुभव होता होगा ।
--
No comments:
Post a Comment