Tuesday, 16 February 2016

वेद, भाषा, और व्याकरण

वेद, भाषा, और  व्याकरण
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जब वह यहाँ पर आया था तो उसे बहुत से सहपाठियों की भाषा सुनने-समझने में कौतूहल और कुछ कठिनाई भी होती थी । किन्तु इससे उसे कोई असुविधा नहीं थी । उसे पता चल गया था कि इस गुरुकुल में दूर-दूर देशों से विद्यार्थी शिक्षा पाने के लिए आते हैं किन्तु आचार्य उनमें से किसी किसी को ही गुरुकुल में प्रवेश की अनुमति देते हैं । उसे यह भी स्पष्ट हो गया था कि अधिकाँश विद्यार्थी निर्धन परिवारों से आते हैं और ब्राह्मण जाति में उत्पन्न हैं । जाति और भाषा के आधार पर उन विद्यार्थियों में अलग-अलग समूह थे और ऐसा होना स्वाभाविक भी था किन्तु भोजनशाला और पाकशाला सबके लिए एक ही थी । और गुरुकुल में होने से ही सभी आचार्य के गोत्र में गिने जाते थे। पर्याय से वे सभी 'ब्राह्मण' थे, भले ही जाति या जन्म से किसी भी वर्ण के हों ! प्रायः भोजन के समय घंटी बजते ही सभी एक-एक कर आने लगते जबकि किसी के विलंब से आने पर उसे फलाहार से संतोष करना होता था । और इसलिए वह और दूसरे विद्यार्थी कभी-कभी जान-बूझकर भी देर से आते थे । फल कभी तो प्रचुर मात्रा में होते थे किन्तु कभी कभी बिल्कुल भी नहीं होते थे । तब उन्हें दूध पर रहना होता था । वह भी उपलब्ध न हो तो वे वन या उपवन से कुछ तोड़कर अपनी क्षुधा को शांत कर लेते । कभी-कभी वे गुरुकुल से थोड़ी दूर स्थित ग्राम में जाकर भिक्षान्न माँग लाते, और कभी-कभी कुछ भूखे ही रह जाते ।
उसे भिन्न-भिन्न भाषाएँ सीखने में विशेष रुचि थी और किसी भाषा को ठीक से कैसे सीखा जाता है, उसका अधिकारपूर्वक प्रयोग और उपयोग कैसे किया जाता है, इसका रहस्य उसे पिता ने ही सिखाया था ।
"वत्स, तुम भाषा और व्याकरण सीखना चाहते हो न! अपनी मातृभाषा तुमने कैसे सीखी?"
"अनुकरण और अनुग्रहण से तात!"
"क्या तुम्हें उसका व्याकरण पृथक् से सीखना पड़ा?"
"नहीं तात!"
"फिर व्याकरण की आवश्यकता क्या है?"
"व्याकरण तो भाषा की शुद्धता और संप्रेषण की स्पष्टता की परीक्षा के लिए एक प्रमाण / निकष होता है तात!"
"क्या व्याकरण का कोई और प्रयोजन भी हो सकता है?"
"तात! वेद-भाषा और लोक-भाषा के सन्दर्भ में व्याकरण के प्रयोजन भिन्न-भिन्न होते हैं ।"
"कैसे?"
"लोकभाषा का व्याकरण रूढियों और प्रचलन आधार पर निष्कर्ष-रूप में प्राप्त नियमों और मान्यताओं से निर्धारित होता है और इसीलिए निरंतर परिवर्तनशील भी होता है, जबकि वेद-भाषा के  व्याकरण का बोध वाणी के सम्यक् और स्वाभाविक प्रयोग और उपयोग की प्रक्रिया के अध्ययन से प्राप्त अटल सिद्धान्तों के ज्ञान से होता है । इसलिए वेद-भाषा का व्याकरण मूलतः नित्य अविकारी होता है ।"
"क्या वेद-भाषा के व्याकरण का ज्ञान उसी तरह पाया जा सकता है जैसे कि लोक-भाषा के ज्ञान को पाया जाता है?"
"नहीं, वेद-भाषा के व्याकरण का ज्ञान उसके नियमित अभ्यास से ही होता है, जिसका एक प्रकार है पाठ ।"
"तो तुम्हें कौन सा व्याकरण सीखने में रुचि है? वेद-भाषा का या लोक-भाषा का?"
"तात, प्रयोजन के अर्थ में तो मुझे वेद-भाषा का ही व्याकरण सीखना है ।"
"क्या वेद-भाषा और उसका व्याकरण परस्पर भिन्न हैं?"
"नहीं तात! वेद व्याकरण है और व्याकरण वेद है । वेद भाषा है और भाषा वेद, इसलिए व्याकरण उनका परस्पर संबंध है ।"
"कोऽर्थो तर्हि पाणिनीयः ?"
"ग्रन्थरूपेण प्रकाशो, ज्ञानरूपेण वेदो, धर्मरूपेण व्यवहारः ...।"
"साधु वत्स!"
पिता ने उस पर आशीष वर्षा की ।
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