कविता
मेरे मन अभिमानी!
--
तेरी प्रीत सुख-साधन में,
पर तू तो निपट अज्ञानी,
सुख-दुःख नहीं देह को व्यापैं,
देह न सुख-दुःख जानी,
इन्द्रिय साधन सुख-दुःख के,
वे सेवक बस चाकर तेरे,
पीनेवाला प्याला ना जाने
अमरित गरल या हाला,
जाने पीनेवाला सुख-दुःख,
वो तू ही निपट अज्ञानी,
देह, विषय, इन्द्रियाँ सभी,
अनित्य सब आनी-जानी,
तेरा राम जो तुझ में बसा,
जैसे घट-घट में पानी,
प्यास तेरी है राम के लिए,
तूने सुख-दुःख की मानी,
मेरे मन तू अब तो समझ ले,
यह दुनिया सुख-दुःख फ़ानी
मन मत कर मनमानी,
--
--
मन मत कर मनमानी,मेरे मन अभिमानी!
--
तेरी प्रीत सुख-साधन में,
पर तू तो निपट अज्ञानी,
सुख-दुःख नहीं देह को व्यापैं,
देह न सुख-दुःख जानी,
इन्द्रिय साधन सुख-दुःख के,
वे सेवक बस चाकर तेरे,
पीनेवाला प्याला ना जाने
अमरित गरल या हाला,
जाने पीनेवाला सुख-दुःख,
वो तू ही निपट अज्ञानी,
देह, विषय, इन्द्रियाँ सभी,
अनित्य सब आनी-जानी,
तेरा राम जो तुझ में बसा,
जैसे घट-घट में पानी,
प्यास तेरी है राम के लिए,
तूने सुख-दुःख की मानी,
मेरे मन तू अब तो समझ ले,
यह दुनिया सुख-दुःख फ़ानी
मन मत कर मनमानी,
--
No comments:
Post a Comment