Sunday, 1 October 2017

श्रीवत्स-स्वस्तिक

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श्रीवत्स श्री-वत्-स ...
श्री : लक्ष्मी, विष्णु की माया,
स > सः जैसे ’श्रीवत्स’ में,
यह नियति-चक्र,
जिसका एक अन्य रूप है स्वस्तिक,
किंतु स्वस्तिक वामावर्त या दक्षिणावर्त होने से खंडित है,
इसलिए हमें ’आर्य’ स्वस्तिक के दो प्रकार प्राप्त होते हैं ।
एक सृजनोन्मुख दक्षिणावर्त,
दूसरा विनाशोन्मुख वामावर्त
पहला वैदिक है,
दूसरा अवैदिक या वेद से भिन्न,
जिसे विपरीत भी कह सकते हैं,
दूसरा ’हिटलर’ का प्रिय चिह्न था सभी जानते हैं ।
हिटलर का इतिहास भी सभी को पता है ।
किंतु श्रीवत्स जिसे वामावर्त या दक्षिणावर्त,
दोनों रूपों में देखा जा सकता है,
संतुलित और सम है ।
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