स्व-प्रतिमा और स्व का यथार्थ
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आप जैसे हैं,
लोग आपको वैसा
रहने नहीं देंगे ...
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कुछ भी!
आप जो हैं वो बदल नहीं सकता,
आप जैसे हैं ज़रूर बदल जाता है,
पहले तो ये तय हो जाना चाहिए,
कि आप क्या हैं और आप कैसे हैं!
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पहली दृष्टि में हमारा ध्यान इस वक्तव्य की विसंगति पर नहीं जाता, किंतु जब ध्यान देकर इसकी वैधता की जाँच-परख की जाती है तो समझ में आ जाता है कि हम तो हमेशा वही हैं जो कि वस्तुतः हम है / हैं, और वैसे नहीं हैं जैसी अपनी स्वयं की प्रतिमा हमारे मन ने बनाई होती है । क्या यह प्रतिमा वैसे भी नित्य बदलती नहीं रहती? लेकिन अगर हम इस तथ्य पर ध्यान देने से चूक जाते हैं तो अपने-आपको परिस्थितियों और लोगों के हाथ का खिलौना समझ सकते हैं और तब उस प्रतिमा में वैसा हेर-फेर देख कर दुःखी या ख़ुश होते हैं, चिंतित या प्रसन्न होते हैं, .. आशान्वित या निराश, व्याकुल या निश्चिंत होते हैं !
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आप जैसे हैं,
लोग आपको वैसा
रहने नहीं देंगे ...
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कुछ भी!
आप जो हैं वो बदल नहीं सकता,
आप जैसे हैं ज़रूर बदल जाता है,
पहले तो ये तय हो जाना चाहिए,
कि आप क्या हैं और आप कैसे हैं!
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पहली दृष्टि में हमारा ध्यान इस वक्तव्य की विसंगति पर नहीं जाता, किंतु जब ध्यान देकर इसकी वैधता की जाँच-परख की जाती है तो समझ में आ जाता है कि हम तो हमेशा वही हैं जो कि वस्तुतः हम है / हैं, और वैसे नहीं हैं जैसी अपनी स्वयं की प्रतिमा हमारे मन ने बनाई होती है । क्या यह प्रतिमा वैसे भी नित्य बदलती नहीं रहती? लेकिन अगर हम इस तथ्य पर ध्यान देने से चूक जाते हैं तो अपने-आपको परिस्थितियों और लोगों के हाथ का खिलौना समझ सकते हैं और तब उस प्रतिमा में वैसा हेर-फेर देख कर दुःखी या ख़ुश होते हैं, चिंतित या प्रसन्न होते हैं, .. आशान्वित या निराश, व्याकुल या निश्चिंत होते हैं !
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और यहीं एक विकल्प यह भी है कि इस ओर ध्यान दें कि हम हमारी स्व-प्रतिमा हैं या शायद हम कुछ भी नहीं हैं, या शायद वह समग्र जीवन ही हम हैं जहाँ हमारी या दूसरों की कोई प्रतिमा बनती ही नहीं !
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एक मौलिक प्रश्न
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क्या हम बदलते हैं? अगर हम बदलते हैं तो यह किसे पता चलता है कि हम बदल रहे हैं या बदल गए?
स्पष्ट है कि हम (जो कुछ भी हम वस्तुतः हैं), कभी नहीं बदलता, हाँ हमारा मन, बुद्धि, याददाश्त, अनुभव, विचार, भावना, शरीर की स्थिति ज़रूर निरंतर वैसे भी बदलते रहते हैं । हममें कोई ऐसा तत्व है जो केवल बदलाव को जानता है लेकिन यह 'जानना' अनुभव, विचार, भावना, जानकारी या स्मृति नहीं होता । यह 'जानना' हमारा वह अपरिवर्तनशील स्वरूप है जिसमें तमाम बदलाव जाने भर जाते हैं । और उस अपरिवर्तनशीलता को मन, बुद्धि, याददाश्त, अनुभव, विचार, भावना, शरीर की स्थिति नहीं जानते । मन, बुद्धि, याददाश्त, अनुभव, विचार, भावना, आदि में तो बस हमारी एक अस्थायी स्व-प्रतिमा बनती है जो वैसे भी अपने-आप बदलती रहती है और उसे बदलने से रोका भी नहीं जा सकता । ’कौन’ रोकेगा?
यद्यपि इस सबको समझने के लिए बुद्धि तक आवश्यक नहीं क्योंकि बुद्धि का आगमन और प्रस्थान होता रहता है और हमारा स्वरूप निरंतर यथावत रहता है ।
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क्या हम बदलते हैं? अगर हम बदलते हैं तो यह किसे पता चलता है कि हम बदल रहे हैं या बदल गए?
स्पष्ट है कि हम (जो कुछ भी हम वस्तुतः हैं), कभी नहीं बदलता, हाँ हमारा मन, बुद्धि, याददाश्त, अनुभव, विचार, भावना, शरीर की स्थिति ज़रूर निरंतर वैसे भी बदलते रहते हैं । हममें कोई ऐसा तत्व है जो केवल बदलाव को जानता है लेकिन यह 'जानना' अनुभव, विचार, भावना, जानकारी या स्मृति नहीं होता । यह 'जानना' हमारा वह अपरिवर्तनशील स्वरूप है जिसमें तमाम बदलाव जाने भर जाते हैं । और उस अपरिवर्तनशीलता को मन, बुद्धि, याददाश्त, अनुभव, विचार, भावना, शरीर की स्थिति नहीं जानते । मन, बुद्धि, याददाश्त, अनुभव, विचार, भावना, आदि में तो बस हमारी एक अस्थायी स्व-प्रतिमा बनती है जो वैसे भी अपने-आप बदलती रहती है और उसे बदलने से रोका भी नहीं जा सकता । ’कौन’ रोकेगा?
यद्यपि इस सबको समझने के लिए बुद्धि तक आवश्यक नहीं क्योंकि बुद्धि का आगमन और प्रस्थान होता रहता है और हमारा स्वरूप निरंतर यथावत रहता है ।
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और यह समझना अत्यंत सरल है कि इस ’जानने’ का ’जन्म’ और ’मृत्यु’ से कोई संबंध नहीं हो सकता । ’जन्म’ और ’मृत्यु’ केवल कल्पना और विचार-मात्र हैं ।
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The English Translation :
Self-image and the truth of the self
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What-ever you are like; people wouldn’t let you be like that.
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Awkward but not Absurd
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What you are can never change.
What you are like keeps changing.
First let it be very clear to you.
What you are and what you are like!
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At first, we usually fail to note the contradiction in the above statement.
But when paid due attention, and the validity of the same is checked, one can easily see the inherent discrepancy there-in. We are what we are all the time, irrespective of our own self-image and the way our body, moods, feelings, emotions, memory, experiences, information, and this self-image too keep changing.
Is not there obviously something unchangeable too which we intuitively know without deliberate effort and spontaneously refer to as ‘me’?
Having keenly discovered what this unchangeable factor in our being is, we at once realize what we are like is but our own image made by oneself. And this keeps changing all the time and no one can stop or interfere with this phenomenon. It is up to oneself what one takes oneself. Assumes oneself as the changing phenomenal things like our body, moods, feelings, emotions, memory, experiences, information, and this self-image that is, -the ‘person’,
Or understands the inherent individuality that is immutable inherent Reality of our very being.
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The English Translation :
Self-image and the truth of the self
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What-ever you are like; people wouldn’t let you be like that.
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Awkward but not Absurd
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What you are can never change.
What you are like keeps changing.
First let it be very clear to you.
What you are and what you are like!
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At first, we usually fail to note the contradiction in the above statement.
But when paid due attention, and the validity of the same is checked, one can easily see the inherent discrepancy there-in. We are what we are all the time, irrespective of our own self-image and the way our body, moods, feelings, emotions, memory, experiences, information, and this self-image too keep changing.
Is not there obviously something unchangeable too which we intuitively know without deliberate effort and spontaneously refer to as ‘me’?
Having keenly discovered what this unchangeable factor in our being is, we at once realize what we are like is but our own image made by oneself. And this keeps changing all the time and no one can stop or interfere with this phenomenon. It is up to oneself what one takes oneself. Assumes oneself as the changing phenomenal things like our body, moods, feelings, emotions, memory, experiences, information, and this self-image that is, -the ‘person’,
Or understands the inherent individuality that is immutable inherent Reality of our very being.
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