Tuesday, 10 October 2017

पञ्चमृत्यु और पञ्चामृत / pañcamṛtyu and pañcāmṛta

आज की संस्कृत रचना
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ततो पृष्टो देव्या उवाच तदा मदनान्तकः ।
आशाचिन्ताप्रमादभयलोभापञ्चमृत्युवः ॥
विवेकवैराग्यमुमुक्षा अवधानमनुसन्धानम् ।
पञ्चैते समाहारेण पञ्चामृतान्युदीर्यन्ते ॥
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अर्थ :
तब देवी पार्वती के द्वारा पृच्छा किए जाने पर भगवान् शिव ने कहा :
आशा, चिन्ता, प्रमाद, भय और लोभ ये पाँच मृत्यु हैं ।
विवेक, वैराग्य, मुमुक्षा, अवधान और अनुसंधान इन पाँचों को संक्षेप में पञ्चमृत्यु कहा जाता है ॥
मनुष्य के द्वारा होनेवाला कर्म यदि प्रथम पाँच से प्रेरित होकर प्रारंभ होता है तो वह कर्म कर्म-श्रँखला को बनाए रखता है, जबकि अन्य पाँच से प्रेरित हुआ कर्म कर्म-बंधन को नष्ट कर (अमृतत्व की प्राप्ति करा) देता है इसलिए उन्हें पञ्चामृत कहा जाता है ।
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 2 संस्कृत / saṃskṛta couplets,
 composed today 
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tato pṛṣṭo devyā uvāca madanāntakaḥ |
āśācintāpramādabhayalobhāpañcamṛtyuvaḥ ||
vivekavairāgyamumukṣā avadhānamanusandhānam |
pañcaite samāhāreṇa pañcāmṛtānyudīryante ||
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Meaning :
Then questioned earnestly by देवी पार्वती / devī pārvatī , Lord   भगवान् शङ्कर / bhagavān śaṅkara answered thus :
hope, worry, inattention, fear, and greed these 5 are the death,
while discrimination, dispassion, longing for emancipation, attention and self-enquiry these 5 are  the way to the deathless.
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