मनुष्य कितना ’स्वतंत्र’ है?
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आचार आचरण के लिए आवश्यक प्रमुख तत्व हैं ।
किसी भी प्रकार के आचरण के लिए ये ही तीन तत्व मूलतः और प्रेरक होते हैं ।
इसके ही अन्तर्गत इच्छा, अनिच्छा (स्वतंत्रता) तथा परेच्छा (बाध्यता / परतंत्रता) के अनुसार कर्म का आचरण होता है ।
स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता से बहुत भिन्न है ।
स्वतंत्रता का अर्थ है इच्छा, अनिच्छा या परेच्छा से प्रेरित हुए बिना ही कर्म करने का संकल्प ।
इसमें कर्तृत्व-भावना तो होगी ही ।
अर्थात् ऐसा ’स्व’ जो अपने-आपके कर्म के कर्ता होने की मान्यता से बँधा है ।
स्वेच्छाचारिता का अर्थ है इच्छा, अनिच्छा या परेच्छा से प्रेरित होकर कर्म करने / न करने का संकल्प ।
अर्थात् ऐसा ’स्व’ जो अपने-आपके कर्म के कर्ता होने की मान्यता से बँधा है ।
किंतु कर्म पुनः नित्य, नैमित्तिक, काम्य और निषिद्ध इस प्रकार से चार प्रकार के होते हैं ।
इन्हें बुद्धि से भी समझा जा सकता है और आचार्य से आचार की शिक्षा ग्रहण कर, अर्थात् आचार्य के उपदेश से भी ।
बुद्धियाँ अनेक होती हैं जो कुटिल, जटिल, सरल, स्थूल, सूक्ष्म, स्थिर और अस्थिर आदि होती हैं जिनमें से हितप्रद को ही विवेक कहते हैं ।
वस्तु का विवेकपूर्वक निश्चय करना ही स्थितप्रज्ञता है ।
इस विवेक की सिद्धि के लिए अभ्यास आवश्यक है ।
स्वेच्छाचारी अपने-आपको स्वतंत्र समझता है किंतु वह इच्छा के वश में अपने हित-अहित पर ध्यान दिए बिना इच्छा को पूर्ण करने को स्वतंत्रता समझ बैठता है और इसे ’स्वतंत्रता’ कहकर अंततः दुःखी और निराश ही होता है ।
विवेकवान मनुष्य स्त्री हो या पुरुष कार्य / कर्म के शुभ-अशुभ परिणाम को दृष्टि में रखकर ही ऐसा कार्य करने में प्रवृत्त होता है जिसके परिणाम में क्लेश की प्राप्ति न हो । संसार के विषय में इतना ही पर्याप्त है । किंतु जिस विवेकवान को संसार के विषयों और विषय-सुखों की, इन्द्रियों के उपभोग करने की क्षमता की सीमा का, उनकी अनित्यता का स्मरण होता है वह ऐसा कार्य करने में प्रवृत्त होता है जिससे क्लेशमात्र की आत्यन्तिक निवृत्ति हो सके ।
वेद किसी को कर्म करने से न तो रोकते हैं न किसी कर्म को करने का आग्रह करते हैं ।
वेद केवल इतनी शिक्षा देते हैं कि किस कर्म का क्या शुभ, अशुभ और मिश्रित परिणाम होगा ।
तय तो मनुष्य को ही करना है ।
इसे ’स्वतंत्रतापूर्वक’, विवेक से करना है या स्वेच्छाचारिता से ।
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क्या स्त्री-स्वातंत्र्य के पक्ष-विपक्ष पर विचार करनेवाले इस संदर्भ पर ध्यान देते हैं ?
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आचार आचरण के लिए आवश्यक प्रमुख तत्व हैं ।
किसी भी प्रकार के आचरण के लिए ये ही तीन तत्व मूलतः और प्रेरक होते हैं ।
इसके ही अन्तर्गत इच्छा, अनिच्छा (स्वतंत्रता) तथा परेच्छा (बाध्यता / परतंत्रता) के अनुसार कर्म का आचरण होता है ।
स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता से बहुत भिन्न है ।
स्वतंत्रता का अर्थ है इच्छा, अनिच्छा या परेच्छा से प्रेरित हुए बिना ही कर्म करने का संकल्प ।
इसमें कर्तृत्व-भावना तो होगी ही ।
अर्थात् ऐसा ’स्व’ जो अपने-आपके कर्म के कर्ता होने की मान्यता से बँधा है ।
स्वेच्छाचारिता का अर्थ है इच्छा, अनिच्छा या परेच्छा से प्रेरित होकर कर्म करने / न करने का संकल्प ।
अर्थात् ऐसा ’स्व’ जो अपने-आपके कर्म के कर्ता होने की मान्यता से बँधा है ।
किंतु कर्म पुनः नित्य, नैमित्तिक, काम्य और निषिद्ध इस प्रकार से चार प्रकार के होते हैं ।
इन्हें बुद्धि से भी समझा जा सकता है और आचार्य से आचार की शिक्षा ग्रहण कर, अर्थात् आचार्य के उपदेश से भी ।
बुद्धियाँ अनेक होती हैं जो कुटिल, जटिल, सरल, स्थूल, सूक्ष्म, स्थिर और अस्थिर आदि होती हैं जिनमें से हितप्रद को ही विवेक कहते हैं ।
वस्तु का विवेकपूर्वक निश्चय करना ही स्थितप्रज्ञता है ।
इस विवेक की सिद्धि के लिए अभ्यास आवश्यक है ।
स्वेच्छाचारी अपने-आपको स्वतंत्र समझता है किंतु वह इच्छा के वश में अपने हित-अहित पर ध्यान दिए बिना इच्छा को पूर्ण करने को स्वतंत्रता समझ बैठता है और इसे ’स्वतंत्रता’ कहकर अंततः दुःखी और निराश ही होता है ।
विवेकवान मनुष्य स्त्री हो या पुरुष कार्य / कर्म के शुभ-अशुभ परिणाम को दृष्टि में रखकर ही ऐसा कार्य करने में प्रवृत्त होता है जिसके परिणाम में क्लेश की प्राप्ति न हो । संसार के विषय में इतना ही पर्याप्त है । किंतु जिस विवेकवान को संसार के विषयों और विषय-सुखों की, इन्द्रियों के उपभोग करने की क्षमता की सीमा का, उनकी अनित्यता का स्मरण होता है वह ऐसा कार्य करने में प्रवृत्त होता है जिससे क्लेशमात्र की आत्यन्तिक निवृत्ति हो सके ।
वेद किसी को कर्म करने से न तो रोकते हैं न किसी कर्म को करने का आग्रह करते हैं ।
वेद केवल इतनी शिक्षा देते हैं कि किस कर्म का क्या शुभ, अशुभ और मिश्रित परिणाम होगा ।
तय तो मनुष्य को ही करना है ।
इसे ’स्वतंत्रतापूर्वक’, विवेक से करना है या स्वेच्छाचारिता से ।
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क्या स्त्री-स्वातंत्र्य के पक्ष-विपक्ष पर विचार करनेवाले इस संदर्भ पर ध्यान देते हैं ?
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