Thursday, 12 October 2017

From : श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् / śrīdakṣiṇāmūrtistotram -

From :
श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् / śrīdakṣiṇāmūrtistotram
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वटविटपसमीपे भूमिभागे निषण्णम्
सकलमुनिजनानां ज्ञानदातारमारात् ।
त्रिभुवनगुरुमीशं दक्षिणामूर्तिदेवं
जननमरणदुःखच्छेददक्षं नमामि ॥
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Beneath the vat-tree, Seated on the ground,
The One who Bestows the wisdom,
Upon the Sages gathered around,
The Preceptor Supreme,
the Lord of the 3 worlds,
dakṣiṇāmūrtideva,
The One who is Expert in severing,
The bondage of the sorrow,
Of repeated births, deaths and rebirths,
To Him I offer obeisances.
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vaṭaviṭapasamīpe bhūmibhāge niṣaṇṇam
sakalamunijanānāṃ jñānadātāramārāt |
tribhuvanagurumīśaṃ dakṣiṇāmūrtidevaṃ
jananamaraṇaduḥkhacchedadakṣaṃ namāmi ||
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अर्थ :
जो वटवृक्ष के तले भूमि पर विराजित हैं,
जो शरण में आए सकलमुनिजनों के लिए ज्ञानदाता हैं,
तीनों लोकों के परमेश्वर श्रीदक्षिणामूर्ति देव,
जन्ममरण के क्लेश का नाश करने में दक्ष हैं,
श्रीदक्षिणामूर्ति को मेरा प्रणाम !!
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