Vedika Science -8
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प्रश्न 3 -
अनेकरूपवाली स्त्रीको एकरूपवाली बनाने की कला किसको ज्ञात है?
उत्तर :
वेदान्तवादी विद्वान् बुद्धि को ही अनेकरूपोंवाली स्त्री कहते हैं; क्योंकि वही नाना प्रकार के विषयों अथवा पदार्थों का सेवन करने से अनेक रूप ग्रहण करती है । किंतु अनेकरूपा होने पर भी वह एकमात्र धर्म के संयोग से एकरूपा ही रहती है । जो इस तत्वार्थ को जानता है, वह (धर्म का आश्रय लेने के कारण) कभी नरक में नहीं पड़ता ।
बहुरूपा स्त्रियं प्राहुर्बुद्धिं वेदान्तवादिनः ।
सा हि नानार्थभजनान्नानारूपं प्रपद्यते ॥
धर्मैकस्य संयोगाद्बहुधाप्येकिकैव सा ।
इति यो वेद तत्त्वार्थं नासौ नरकमाप्नुयात् ॥
मुनिभिर्यच्च न प्रोक्तं यन्न मन्येत देवताम् ।
वचनं तद् बुधाः प्राहुर्बन्धं चित्रकथ्ं त्विति ॥
(स्कन्दपुराण, माहेश्वर कुमारिकाखण्ड 3- 274, 3-275, 3-279, 3-277)
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प्रश्न 4 -
संसार में रहनेवाला कौन पुरुष विचित्र कथावाली वाक्यरचना को जानता है?
उत्तर -
मुनियों ने जिसे नहीं कहा है तथा जो वचन देवताओं की मान्यता नहीं स्वीकार करता, उसे विद्वानों ने विचित्र कथा से युक्त बन्ध (वाक्यविन्यास) कहा है, तथा जो कामयुक्त वचन है वह भी इसी श्रेणी में है (ऐसा वचन सुनने और मानने योग्य नहीं है) ।
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Q. 3 :
Who has mastered the art of transforming the woman with many changing forms into a woman with one unchangeable form only?
Answer :
A man with profound understanding of Vedanta knows that intellect बुद्धि alone is the woman which takes and rejects many forms, according to the effect of the intake of the things of different gross and subtle nature. but because of the association of dharma धर्म of the Self has in fact Reality as the only true form.
bahurūpā striyaṃ prāhurbuddhiṃ vedāntavādinaḥ |
sā hi nānārthabhajanānnānārūpaṃ prapadyate ||
dharmaikasya saṃyogādbahudhāpyekikaiva sā |
iti yo veda tattvārthaṃ nāsau narakamāpnuyāt ||
munibhiryacca na proktaṃ yanna manyeta devatām |
vacanaṃ tad budhāḥ prāhurbandhaṃ citrakathṃ tviti ||
(skandapurāṇa, māheśvara kumārikākhaṇḍa 3- 274, 3-275, 3-279, 3-277)
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Q.4 :
Who is the man that knows the (hidden truth) of the strange, cryptic, mystic esoteric fiction, such fanciful stories (that allure the common man and diverts his attention from the real dharma धर्म)?
Answer :
Such a man who knows the various forms of intellect, knows well that whatever that bears no evidence and support from the (vedika) sages, which does not accept the authority and authenticity of Vedika, that ridicules and denounces / condemns veda, the teachings mixed up with perverted motives behind them, such a verbal text in any form belongs to this category.
Note All such teachings should be at once rejected by one who follows the path of Vedanta.
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प्रश्न 3 -
अनेकरूपवाली स्त्रीको एकरूपवाली बनाने की कला किसको ज्ञात है?
उत्तर :
वेदान्तवादी विद्वान् बुद्धि को ही अनेकरूपोंवाली स्त्री कहते हैं; क्योंकि वही नाना प्रकार के विषयों अथवा पदार्थों का सेवन करने से अनेक रूप ग्रहण करती है । किंतु अनेकरूपा होने पर भी वह एकमात्र धर्म के संयोग से एकरूपा ही रहती है । जो इस तत्वार्थ को जानता है, वह (धर्म का आश्रय लेने के कारण) कभी नरक में नहीं पड़ता ।
बहुरूपा स्त्रियं प्राहुर्बुद्धिं वेदान्तवादिनः ।
सा हि नानार्थभजनान्नानारूपं प्रपद्यते ॥
धर्मैकस्य संयोगाद्बहुधाप्येकिकैव सा ।
इति यो वेद तत्त्वार्थं नासौ नरकमाप्नुयात् ॥
मुनिभिर्यच्च न प्रोक्तं यन्न मन्येत देवताम् ।
वचनं तद् बुधाः प्राहुर्बन्धं चित्रकथ्ं त्विति ॥
(स्कन्दपुराण, माहेश्वर कुमारिकाखण्ड 3- 274, 3-275, 3-279, 3-277)
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प्रश्न 4 -
संसार में रहनेवाला कौन पुरुष विचित्र कथावाली वाक्यरचना को जानता है?
उत्तर -
मुनियों ने जिसे नहीं कहा है तथा जो वचन देवताओं की मान्यता नहीं स्वीकार करता, उसे विद्वानों ने विचित्र कथा से युक्त बन्ध (वाक्यविन्यास) कहा है, तथा जो कामयुक्त वचन है वह भी इसी श्रेणी में है (ऐसा वचन सुनने और मानने योग्य नहीं है) ।
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Q. 3 :
Who has mastered the art of transforming the woman with many changing forms into a woman with one unchangeable form only?
Answer :
A man with profound understanding of Vedanta knows that intellect बुद्धि alone is the woman which takes and rejects many forms, according to the effect of the intake of the things of different gross and subtle nature. but because of the association of dharma धर्म of the Self has in fact Reality as the only true form.
bahurūpā striyaṃ prāhurbuddhiṃ vedāntavādinaḥ |
sā hi nānārthabhajanānnānārūpaṃ prapadyate ||
dharmaikasya saṃyogādbahudhāpyekikaiva sā |
iti yo veda tattvārthaṃ nāsau narakamāpnuyāt ||
munibhiryacca na proktaṃ yanna manyeta devatām |
vacanaṃ tad budhāḥ prāhurbandhaṃ citrakathṃ tviti ||
(skandapurāṇa, māheśvara kumārikākhaṇḍa 3- 274, 3-275, 3-279, 3-277)
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Q.4 :
Who is the man that knows the (hidden truth) of the strange, cryptic, mystic esoteric fiction, such fanciful stories (that allure the common man and diverts his attention from the real dharma धर्म)?
Answer :
Such a man who knows the various forms of intellect, knows well that whatever that bears no evidence and support from the (vedika) sages, which does not accept the authority and authenticity of Vedika, that ridicules and denounces / condemns veda, the teachings mixed up with perverted motives behind them, such a verbal text in any form belongs to this category.
Note All such teachings should be at once rejected by one who follows the path of Vedanta.
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