Wednesday, 22 July 2015

Vedika Science -5.

Vedika Science -5.
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द्विजवर! यह तो मैंने आपसे अक्षरों की संख्या बतायी है । अब इनका अर्थ सुनिये । इस अर्थ के विषय में पहले आपसे एक इतिहास कहूँगा ।
पूर्वकाल की बात है, मिथिलानगरी में कौथुम नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहते थे । उन्होंने इस पृथ्वी पर प्रचलित हुई सम्पूर्ण विद्याओं को पढ़ लिया था । वे इकतीस हजार वर्षों तक आदरपूर्वक अध्ययन में लगे रहे । उनका एक क्षण भी कभी व्यर्थ नहीं हुआ । अध्ययन पूरा करके जब वे गृहस्थ हुए, तब कुछ काल के बाद उनके (द्वारा) एक पुत्र हुआ । उसके सारे वर्ताव जड की भाँति होते थे । उसने केवल मातृका पढ़ी । मातृका पढ़ने के बाद वह किसी प्रकार कोई बात नहीं याद करता था । इससे उसके पिता बहुत खिन्न हुए और उस जड बालक से कहने लगे - ’बेटा! पढ़ो, पढ़ो, मैं तुम्हें मिठाई दूँगा । नहीं पढ़ोगे तो यह मिठाई दूसरे को दे दूँगा और तुम्हारे दोनों कान उखाड़ लूँगा ।’
यह सुनकर पुत्र ने कहा - पिताजी! क्या मिठाई लेने के लिए ही पढ़ा जाता है? क्या लोभ की पूर्ति ही अध्ययन का उद्देश्य है? अध्ययन तो उसका नाम है, जो मनुष्यों को परलोक में लाभ पहुँचानेवाला हो ।
कौथुम बोले - वत्स! ऐसी बातें कहनेवाले, तेरी आयु बढ़े । तेरी यह बुद्धि बहुत अच्छी है । पर तू पढ़ता क्यों नहीं है?
पुत्र ने कहा - पिताजी! जानने-योग्य जितनी भी बातें हैं, वे सब तो मैंने मातृका में ही जान ली । बताइये, इसके बाद किसलिए कण्ठ सुखाया जाए?
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Vedika Science -5.
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'dwijavara! I told you how many letters are there in the 'Matrix'.
Now let me explain their meaning (essence). First, I shall narrate to you an ancient history that serves as a reference and to support for that.
In the old times, In the city of  मिथिला नगरी / mithilā nagarī, there lived a renowned ब्राह्मण / brāhmaṇa named कौथुम /kauthuma. He had learnt all the knowledge-skills that was available on earth in those times.He kept studying with due respect for thirty-one thousand years. He never let a moment go in vain in laziness. After completion of study, when he got into गृहस्थ-धर्म / gṛhastha-dharma, that means when he accepted the responsibilities of being a household, after some time, he begot a son. The son seemed like a retarded-mind. He learnt only the मातृका / mātṛkā. After learning this मातृका / mātṛkā, he never touched anything related with learning. His father was very much disappointed by his such attitude. One day he said to his son :
"My child, Study! Learn! Have knowledge! I shall give you sweets. And if you don't study, I shall give these sweets to some other boy and stretch and pull out your both the ears."
The son replied :
"O Father! Should one study only to enjoy the sweets? Is the fulfilling of greed is the only motive behind the learning? Real learning is that which helps one in the next world."
Kauthuma said :
"O Son! Your words are wise, May you live long! Your intentions are auspicious. But why don't pay attention to study?"
The son replied :
"O Father! Whatever there is worth-knowing, I knew that all in learning the मातृका / mātṛkā ! Please tell, for what purpose, one should parch the throat any more in vain?"
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