Sunday, 19 July 2015

Pluto!

प्लूटो !
--
©

प्लवमानः प्लुतोऽपि,
रमते अन्तरिक्षलोके,
स्वकक्षायाम् परिःसूर्यम्
स्वच्छन्दतः स्वानन्दे ॥
--
यथा छन्दाँसि क्रीडन्ति
स्वकक्षाःसु उत्स्फूर्तया ।
तथापि स्वमर्यादाम्
न त्यजन्ति कदाचन ॥
--
सुदूर अन्तरिक्ष में तैरता हुआ सा प्लूटो अपने ही आनन्द में मग्न अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हुए, स्वच्छन्द-भाव से खेलता रहता है, 
स्वच्छन्दतः किन्तु उच्छ्रँखल नहीं, ’कक्षा’ ही उसकी मर्यादा है,
जैसे वैदिक मन्त्र अपनी मात्रा-योजना में मर्यादा में रहते हुए उत्साह से खेलते हैं और मर्यादा का उल्लँघन नहीं करते ।
--

Pluto!
--
©


plavamānaḥ pluto:'pi,
ramate antarikṣaloke,
svakakṣāyām pariḥsūryam
svacchandataḥ svānande ||

yathā chandām̐si krīḍanti
svakakṣāḥsu utsphūrtayā |
tathāpi svamaryādām
na tyajanti kadācana ||
--

--
Extending to great distances, Pluto, The planet, keeps revolving around The Sun, in His own orbit, freely though with no compulsion, in His own joy!
--
svacchandataḥ - In one's own mood, but not delinquent ! Though playing but not transcending the orbit.
Discipline self-born.
Just as the  chandām̐s (veda-mantra) follow their own discipline freely, though not violating their strict form .
--

No comments:

Post a Comment