Monday, 13 July 2015

विश्वविजय के स्वप्न

विश्वविजय के स्वप्न
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©ताकि सनद रहे!
 जब कोई व्यक्ति या समुदाय अपने आचार-विचार, सच्चे-झूठे विश्वासों और मतों-मान्यताओं को, अपनी संस्कृति और जीवन-शैली को, बल-पूर्वक, हिंसा से या छल-कपट से, लोभ या भय दिखाकर या बस येन-केन-प्रकारेण भ्रमित कर शेष विश्व पर थोपना चाहता है, और जान-बूझकर या भ्रमवश किसी भय से बाध्य होकर, या किसी तात्कालिक लाभ से लुब्ध होकर ऐसा करता है, तो वह  व्यक्ति या समुदाय स्वयं ही अपने आपको शेष जगत् से पृथक् और उसका विरोधी बना लेता है । जब तक दुनिया में ऐसा कोई भी समुदाय है, तब तक मनुष्यों में परस्पर अविश्वास और वैमनस्य पनपता रहेगा और कोई भी  शान्ति से नहीं जी सकता ।
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दुर्भाग्य से अब तक के मानव-इतिहास में मनुष्य बहुत हद तक इसी तरीके से जीता चला आ रहा है और जब तक मनुष्य और मनुष्य-समाज को संचालित करनेवाला नेतृत्व इस ग्रंथि से मुक्त नहीं होता, मनुष्य के लिए किसी सार्थक शांतिपूर्ण उज्जवल भविष्य की कोई संभावना नहीं नज़र आती।
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ताकि सनद रहे! 

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