Sunday, 11 July 2021

संयोगवश

।। ज्ञानबलक्रिया च तत्सांख्ययोगाधिगम्यम् ।।

"भक्तिदर्शनम्" पोस्ट शेयर करने के बाद सोच रहा था कि सूत्रों का यथासंभव भावार्थ लिखूँ। किन्तु सुबह 03:49 पर नींद खुली तो "दो ध्रुव" कविता के शब्द मन में उमड़ रहे थे। 

उसे पूरा किया और उसके संदर्भ के लिए मेरा प्रिय वाक्य :

"य एषः सुप्तेषु जागर्ति।।"

कहाँ है, -इसे खोज रहा था।  पर नहीं मिला।  किन्तु एकाएक श्वेताश्वतरोपनिषद् के छठे अध्याय के एक श्लोक पर दृष्टि पड़ी तो पूरा अध्याय ही छाप दिया!

वैसे खुशी ही हुई।  तय नहीं कर पा रहा था कि उसमें से कौन सा श्लोक अधिक महत्वपूर्ण है और कौन सा कम! 

भक्ति-सूत्र फिर कभी! 

अभी तो इसी के रसास्वादन में निमग्न हूँ!

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