Friday, 3 May 2019

महर्षि जाबालि नास्तिक नहीं !

वाल्मीकि-रामायण,
अयोध्याकाण्ड, सर्ग ११०,
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क्रुद्धमाज्ञाय रामं तु वसिष्ठः प्रत्युवाच ह ।
जाबालिरपि जानीते लोकस्यास्य गतागतिम् ।।१   
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अर्थ :
श्रीरामचन्द्रजी को रुष्ट जानकर महर्षि वसिष्ठ ने उनसे कहा --
"रघुनन्दन ! महर्षि जाबाल भी यह जानते हैं कि इस लोक के प्राणियों का परलोक में जाना और आना होता रहता है (अतः ये नास्तिक नहीं हैं )।
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निवर्तयितुकामस्तु त्वामेतद् वाक्यमब्रवीत ।
इमां लोकसमुत्पत्तिं लोकनाथ निबोध मे ।।२
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अर्थ :
जगदीश्वर ! इस समय तुम्हें लौटाने की इच्छा से ही इन्होंने यह नास्तिकतापूर्ण बातकही थी।  तुम मुझसे इस लोक की उत्पत्ति का वृत्तान्त सुनो !
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