Sunday, 24 February 2019

राजा निमि तथा वसिष्ठ

काल-आख्यान
इक्ष्वाकुवंश की पुरा-कथा
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पुरा अर्थात् पुराणोक्त कथा वह है जो काल के ऐतिहासिक आयाम से भिन्न उस दूसरे आयाम में घटित होती है जो यद्यपि नित्य और सनातन है किन्तु ऐतिहासिक रूप से भी कथा के रूप में कही-सुनी जा सकती है।  वस्तुतः जिसे 'प्राचीन' इतिहास कहा जाता है वह किसी कुल का इतिहासमात्र होता है और ऐसे अनेक कुलों का सम्मिलित / समग्र इतिहास किसी सभ्यता का इतिहास होता है जिसका अंतिम सिरा हमारा यह क्षण और समय होता है। इस प्रकार काल का ऐतिहासिक आयाम उस वृहत समय का एक आयाम है जो सभ्यता तक सीमित है । काल का पुराणोक्त आयाम वह है जिसमें किसी अन्य सभ्यता के बारे में वर्णन किया जाता है और वह जब अस्तित्व में होती है उसे 'कल्प' कहा जाता है । इस आयाम में अनेक भिन्न भिन्न सभ्यताओं का उल्लेख होता है जो 'हमारे समय में' हमें उपलब्ध नहीं होती ।
इसे और स्पष्ट करने के लिए काल के उस आयाम की 'पहचान' [निमि  / निमेष, वसिष्ठ, जयंत, वैजयंत, अत्रि, अङ्गिरा, भृगु, वरुण, उर्वशी, पुरूरवा, मित्र, बुध, इन्द्र, सूर्य (विवस्वान्) अगस्त्य, कुम्भ, तेज, मित्रावरुण, वायु, ओज, मिथि / जनक (सर्ग 57 श्लोक 20), मिथिला / मैथिल / मैथिलि, नहुष, नहुषपुत्र ययाति, शुक्राचार्य (भृगुपुत्र), आयु (पुरूरवा का उर्वशी से उत्पन्न पुत्र) ययाति की पत्नियाँ शर्मिष्ठा तथा देवयानी, पूरु (शर्मिष्ठा का पुत्र), यदु (देवयानी का पुत्र), शर्मिष्ठा दैत्यकुल की कन्या और वृषपर्वा की पुत्री थी / है, देवयानी शुक्राचार्य की पुत्री है] के माध्यम से की जाती है। सर्ग 58 में उपरोक्त जिन चरित्रों का वर्णन है उनका काल ऐतिहासिक के रूप भी यद्यपि सत्य है किन्तु ऐतिहासिक तक सीमित नहीं बल्कि इतिहास की धारा की आधारभूमि है ।
इस प्रकार उपरोक्त चरित्रों के वर्णन को ठीक से समझने के लिए यह आवश्यक है कि उपरोक्त चरित्रों का उल्लेख किस सन्दर्भ में है; - काल के ऐतिहासिक सन्दर्भ में, या पौराणिक / पुरा-सन्दर्भ में।
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राजा निमि, इक्ष्वाकु वंश में राजा इक्ष्वाकु के बारहवें पुत्र थे।
वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड,  सर्ग 55 के प्रारंभिक श्लोक इस प्रकार हैं :
एष ते नृगशापस्य विस्तरोऽभिहितो मया ।
यद्यस्ति श्रवणे श्रद्धा शृणुष्वेहापरां कथाम् ।।1
अर्थ :
(श्रीराम ने कहा --) 'लक्ष्मण ! इस तरह मैंने तुम्हें राजा नृग के शाप का प्रसंग (पिछले 54 वें सर्ग में) विस्तारपूर्वक बताया है।  यदि सुनने की इच्छा हो तो दूसरी कथा भी सुनो।
एवमुक्तस्तु रामेण सौमित्रिः पुनरब्रवीत्।
तृप्तिराश्चर्य भूतानां कथानां नास्ति मे नृप।।2
अर्थ :
श्रीराम के ऐसा कहने पर सुमित्राकुमार श्रीलक्ष्मण बोले -
"नरेश्वर! इन आश्चर्यजनक कथाओं के सुनने से मुझे कभी तृप्ति नहीं होती है ।
लक्ष्मणेनैवमुक्तस्तु राम इक्ष्वाकुनन्दन ।
कथां परमधर्मिष्ठां व्याहर्तुमुपचक्रमे ।।3
अर्थ :
लक्ष्मण के इस प्रकार कहने पर इक्ष्वाकुनन्दन श्रीराम ने पुनः उत्तम धर्म से युक्त कथा कहनी प्रारंभ की ।
आसीद् राजा निमिर्नाम इक्ष्वाकूणां महात्मनाम् ।
पुत्रो द्वादशमो वीर्ये धर्मे च परिनिष्ठितः।।4
"सुमित्रानन्दन ! महात्मा इक्ष्वाकु-पुत्रों में निमि नामक एक राजा हो गए हैं, जो इक्ष्वाकु के बारहवें पुत्र थे । वे पराक्रम और धर्म में पूर्णतः स्थिर रहनेवाले थे ।"
टिप्पणी :
1. श्रीमद्भागवत (नवम स्कंध 6 /4) में, विष्णुपुराण (4 /2 /11) में तथा महाभारत (अनुशासनपर्व 2/5) में इक्ष्वाकु के सौ पुत्र बताये गये हैं।  इनमें प्रधान थे -- विकुक्षि, निमि और दण्ड । इस दृष्टि से निमि द्वितीय पुत्र सिद्ध होते हैं; परंतु यहाँ मूल में इनको बारहवाँ (द्वादशमः) कहा गया है । संभव है कि गुण-विशेष के कारण ये तीन प्रधान कहे गए हों और अवस्था-क्रम से बारहवें ही हों ।
(यहाँ गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित वाल्मीकि-रामायण - द्वितीय भाग पृष्ठ 735 से उद्धृत)
2. यहाँ पर गीता अध्याय ४ श्लोक प्रथम का सन्दर्भ देना प्रासंगिक होगा --
श्रीभगवानुवाच :
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ।।
अर्थ :
इस अविनाशी योग को मैंने पूर्व में (पुरातन काल में) विवस्वान् (सूर्य) से कहा था, विवस्वान् (सूर्य)  ने मनु से कहा था और इसे ही बाद में मनु ने इक्ष्वाकु से कहा था ।
3. इस प्रकार राजा निमि ने जिनका जन्म इक्ष्वाकुकुल में हुआ था, कुछ काल तक के लिए, वसिष्ठ के शाप से विदेह (अशरीरी) अस्तित्व पाया था, और राजा निमि के शाप से महर्षि वसिष्ठ ने भी इसी प्रकार कुछ काल तक के लिए विदेह (अशरीरी) अस्तित्व पाया था।  (परस्परं शापयन्तौ।)
इस प्रकार ऋषि कुम्भज (अगस्त्य) तथा वसिष्ठ भी पूर्व में कुछ काल तक अशरीरी रहे। 'आयु' 'ययाति' 'पूरूरवा' आदि भी इसी प्रकार कालवाचक अशरीरी सत्ताएँ (entities) हैं, जो मनुष्यमात्र के जीवन में उसके माध्यम से जीवन जीती हैं। उर्वशी (अप्सरा) और मित्र, वरुण आदि देवता भी किसी तल पर शरीरी तो दूसरे किसी तल पर अशरीरी रूप से अस्तित्व में होते हैं। उल्लेखनीय है कि अंत में राजा निमि को अपने लिए मनुष्य के नेत्रों में सदा के लिए रहने का स्थान प्राप्त हुआ, जहाँ वे काल से अछूते रहकर देवता की तरह अजर-अमर हैं ।  
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