Saturday, 2 February 2019

पूर्व-वृत्तान्त

वो सात दिन 
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भृगु-वंश
काकभुशुण्डि उवाच :
ऋषि भृगु (शुक्राचार्य) के पुत्र भार्गव की पुत्री से राजा दण्ड द्वारा बलपूर्वक अनाचार किए जाने से पूर्व वह वन जिसे हाथियों की बहुतायत से पीलु-स्थान कहा जाता था, घोर वनस्थली था जहाँ कुमारी भार्गवपुत्री निवास करती थी।  उस अबोध निर्दोष बाला के पिता भृगुवंशोत्पन्न ऋषि भार्गव थे, और क्योंकि भृगु ही पुरुष-प्रकृति हैं; -सौर-मंडल में जिनका स्थान आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक रूप से शुक्र ग्रह के रूप में है, वे ही पृथ्वी के मृत्युलोक रूपी आधिभौतिक स्तर पर वनों और अरण्यों तथा जीवों के लिए संतति की कामनायुक्त भोग-विलास के कारक भी हैं। 
उन भृगुऋषि के वंश में उत्पन्न वह बाला वार्क्षी, वनदेवता का प्रत्यक्ष आधिभौतिक स्वरूप थी।
[भृगु ऋषि, राजा दण्ड, वह भृगुपुत्री तथा दण्डकारण्य या घोर वन ये कोई मनुष्य विशेष नहीं बल्कि 'प्रकृतियाँ' थे, और केवल उनकी कथा को समझने के लिए ही पुराण उनका मानवीकरण करते हैं।]
वह वार्क्षी नामक बाला ही भूमण्डल पर वनदेवता के रूप में निवास और विचरण करती थी।
वह दण्ड नामक राजा ही भूमण्डल पर आदिम समाज के रूप में निवास और विचरण किया करता था।
उस स्थान पर उस वन में, जहाँ पर यह प्रसंग घटित हुआ था,ऋषि के शाप से निरंतर सात दिनों सात दिनों तक धूलि-वर्षा होने का अर्थ है ऐसे अनेक सप्ताहों तक निरंतर धूलि बरसाना जिसके पश्चात् वह पीलु-स्थान नामक वह अरण्य, वह भौगोलिक क्षेत्र रेत से आवरित होकर रेगिस्तान बन गया।  उस बाला का नाम अरजा था । तात्पर्य यह कि अभी वह विशुद्ध प्रकृति थी। अरजा का दूसरा अर्थ यह कि अभी उसमें रजोगुण का प्राकट्य भी नहीं हुआ था। क्योंकि प्रकृति का सतोगुणी रूप ही उसके भावी रजोगुणी होने का संकेत है, जिसके बाद ही प्रकृति अपने पूर्ण विकास को प्राप्त होती है ।
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[उस स्थान पर तदनन्तर जो मरुस्थली बनी वही आज का अफ्रीका है, जिसमें सोमालिया / सोमालय / Somalia, आच्छाद / छाद  / Chad (धूलि से), यम / Yemen, और मिश्रित (मिस्र) / मस्र / Egypt आदि आते हैं।
Iraq / Iran  तो आर्य / Aryak / Aryaq  तथा Aryaan / आर्यान् के सज्ञाति / cognate मात्र हैं। 
गांधार और कुरु-पाञ्चाल पञ्चनद के पश्चिमवर्ती स्थान हैं जिन्हें आज अफ़गानिस्तान के नाम से जाना जाता है।
इसके पश्चात् ही उस क्षेत्र में यह्व ने मोज़ेस को उपदेश दिया, जिससे यवन जाति (creed) / कृति / संस्कृति हुई। इन्हीं के साथ ग्रीक-रोमन सभ्यता / साम्राज्य का प्रादुर्भाव हुआ। 
जैसे भगवान शुक्राचार्य के कुल से उत्पन्न यह कुल यवन हुआ, वैसे ही भगवान मंगल से मंगोल जाति (creed) का उद्भव जिस भौगोलिक क्षेत्र में हुआ उसे मंगोलिया (Mongolia) नाम प्राप्त हुआ।
सोमालिया / Somalia का उल्लेख पहले हो चुका है।
इसी प्रकार आज के ईरान में पहलवी जाति का उद्भव हुआ था।
शक / Czech, पहलवी, हूण आदि जातियों (संस्कृतियों) का उद्भव कैसे हुआ , -यह सारा वर्णन वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 54 में दृष्टव्य है।]
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मधु-कैटभ की कथा अगली किसी पोस्ट में।
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