अथ पृथ्वी सूक्तम् स्तोत्रम्
--
त्वमस्यावपनी जनानामदितिः कामदुघा पप्रथाना ।
यत् त ऊनं तत् त आ पूरयाति
प्रजापतिः प्रथमजा ऋतस्य ।।६१।।
(हे पृथिवि! तुम सृष्टि में सर्वप्रथम उत्पन्न होनेवाली, अदिति हो, मनुष्यों की कामनाओं को पूर्ण करनेवाली कामधेनु हो। यदि मनुष्य कोई अंश तुमसे प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं तो वह अंश उन्हें सृष्टि के आदि में उत्पन्न हुए प्रजापति ब्रह्मा से प्राप्त हो जाता है।)
उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अस्मभ्यं सन्तु पृथिवि प्रसूताः ।
दीर्घं न आयुः प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहृतः स्याम ।।६२।।
(हे पृथिवि ! तुमसे उत्पन्न होनेवाले तुममें निवास करनेवाले सभी मनुष्य नीरोग-निरामय, यक्ष्मा -क्षय रोग से रहित हों। तुम्हारे लिए हवि प्रदान करते हुए हम दीर्घायु और स्वस्थ हों।।)
भूमे मातर्नि धेहि मा भद्रया सुप्रतिष्ठितम् ।
संविदाना दिवा कवे श्रिया मा धेहि भूम्याम् ।।६३।।
(हे भूमि माता! हमें मंगल और कल्याणकारी सुप्रतिष्ठा से युक्त करें । हे कवे! -हे परमेश्वर! हे देवि! हमें भूमि के ऐश्वर्य लक्ष्मी आदि से समृद्ध करें।।)
।। इति पृथ्वी सूक्तम् स्तोत्रम् संपूर्णम् ।।
***
No comments:
Post a Comment