अथ पृथ्वी सूक्तम् स्तोत्रम्
--
सा नो भूमि रादिशतु यद्धनं कामयामहे।
भगो अनुप्रयुङ्क्तामिन्द्र एतु पुरोगवः।।४०।।
(हमें जिस धन की प्राप्ति की कामना है, भूमि हमारे लिए वह धन प्रदान करे। इन्द्र हमारे संकल्पों को पूर्ण करने के लिए स्वयं अग्रणी होकर हमें सहायक हो।)
यस्यां गायन्ति नृत्यन्ति भूम्यां मर्त्या व्यैलबाः ।
युद्ध्यन्ते यस्माक्रन्दो यस्यां वदति दुन्दुभिः ।
सा नो भूमिः प्र णुदतां सपत्नानसपत्नं
मा पृथिवी कृणोतु ।।४१।।
(जिस भूमि पर मर्त्य वीर उत्साहपूर्वक नृत्य गान आदि करते हुए युद्धोत्सव में सम्मिलित होते हैं, जिस पर दुन्दुभियाँ ढोल-नगाडे़ उन वीरों में उत्साह जगाती हुई ध्वनिनाद करती हैं, वह धरती माता हमारे सभी कंटकरूपी शत्रुओं का नाश करे और हमारे लिए इस प्रकार निष्कंटक हो।)
यस्यामन्नं व्रीहियवौ यस्या इमाः पञ्चकृष्टयः।
भूम्यै पर्जन्यपत्न्यै नमोऽस्तु वर्षमेदसे ।।४२।।
(इस मंत्र का तात्पर्य मंत्र १५ के साथ ग्राह्य है, जहाँ पाँच प्रकार के उन श्रेष्ठ मानवों का उल्लेख है, जो सूर्य की रश्मियों से प्रेरणा तथा ऊर्जा लेकर विशेष पराक्रम करते हैं।
जिस भूमि में अन्न, चाँवल तथा जौ इत्यादि उत्पन्न होते हैं, जिस भूमि पर ये पाँच प्रकार के पराक्रम-शील मानव अनेक प्रकार के महान कार्य संपन्न करते हैं, जिस भूमि पर पर्जन्य समयानुकूल जलवृष्टि करते हैं, उस धरती माता के लिए नमस्कार।)
***
No comments:
Post a Comment