मनोयान / Moonyan?
क्या कहलाता है ये रिश्ता?
--
मेरी तरह सारे भारतवासियों की साँसे थमी हुई हैं।
विक्रम से संपर्क नहीं हो पा रहा है।
"चन्द्रमा अपने अक्ष पर पृथ्वी के लगभग 27 सौर-दिवसों की अवधि में एक परिभ्रमण पूर्ण करता है।
(संभवतः / शायद / स्यात् ) इसी आधार पर पृथ्वी पर चन्द्रमा का एक माह पृथ्वी के सूर्य के चतुर्दिक् परिभ्रमण करने के समय (एक माह या लगभग 30 दिन) से 2 से 3 दिन छोटा होता है।
इसीलिए यद्यपि चन्द्रमा पृथ्वी के चतुर्दिक् परिभ्रमण करता हुआ अपने अक्ष पर भी वैसे ही घूमता है, जैसे कि स्वयं पृथ्वी भी स्वयं के अपने अक्ष पर घूमती हुई, सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में एक सौर-वर्ष में (लगभग 12 माह या 365-366 दिनों में) पूरा परिभ्रमण करती है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी से ही हुई है।
यह सिद्धान्त उस सिद्धान्त के समानान्तर है जिसके अनुसार मन की उत्पत्ति पृथ्वी तत्व से हुई है।
इसी प्रकार सूर्य को व्यक्त स्थूल जगत की 'आत्मा' कहा जाता है।
मनुष्य का स्थूल शरीर पृथ्वी-तत्व से बना है, सूर्य अग्नि तत्व है, अंतरिक्ष आकाशतत्व है।
श्वास वायुतत्व है, मन जलतत्व है।"
मनोयान विक्रम को लेकर चन्द्रमा पर पहुँचता है,
विक्रम के कंधे पर स्थित वेताल (प्रज्ञान) विक्रम को उपरोक्त कथा सुनाता है और पूछता है:
"राजन् !
क्या यह मनुष्य का दुस्साहस है, या जिज्ञासा कि वह चन्द्र (मन) के अन्धकार में छिपे हिस्से (अचेतन मन) के बारे में जानने के लिए उत्सुक है? क्या यह संयोग है कि स्त्रियों के रजोधर्म का काल एक चाँद्र-मास अर्थात् लगभग 27 दिनों का होता है? क्या भ-चक्र (Zodiac / द्यु-दिक्त) का 27 नक्षत्रों में विभाजन इसी आधार पर नहीं है? क्या इसीलिए शबरीमालै के अय्यप्पा या शिंगणापुर के शनि-मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश का निषेध है? शनि स्वयं भगवान् सूर्य की छाया से उत्पन्न संतान है, और छाया संज्ञा की सौत, क्या अय्यप्पा; - स्कन्द अर्थात् 'कुमार', अर्थात् मंगल नहीं हैं ? क्या पृथ्वी स्वयं लक्ष्मी नहीं है, जिसकी उत्पत्ति समुद्र से हुई है?
क्या आध्यात्मिक और आधिदैविक दृष्टि से चन्द्रमा और मंगल पृथ्वी की ही संतान नहीं हैं ?
क्या सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जातक (विशेषकर स्त्री) की जन्म-कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति को महत्त्व नहीं दिया जाता?
जानते हुए भी यदि तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो ... तो वेताल (मैं, -प्रज्ञान) से तुम्हारा संपर्क हो या न हो, तुम्हारा पृथ्वी से संपर्क अवश्य टूट जाएगा। ... "
विक्रम का संपर्क पृथ्वी से हो या न हो, वैज्ञानिकों को निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
सफलता / असफलता भी एक सोपान है।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निसान। --
चलते-चलते :
मैंने कल ही अपने एक ब्लॉग का नाम बदलकर 'प्रशस्त-समग्र' किया और आज ही एक अन्य ब्लॉग का नाम बदलकर 'मनोयान' कर दिया !
पिछली रात मेरे लिए एक और विशेष घटना यह भी हुई कि इस ब्लॉग के views का आँकड़ा 200,000 को पार कर गया।
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क्या कहलाता है ये रिश्ता?
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मेरी तरह सारे भारतवासियों की साँसे थमी हुई हैं।
विक्रम से संपर्क नहीं हो पा रहा है।
"चन्द्रमा अपने अक्ष पर पृथ्वी के लगभग 27 सौर-दिवसों की अवधि में एक परिभ्रमण पूर्ण करता है।
(संभवतः / शायद / स्यात् ) इसी आधार पर पृथ्वी पर चन्द्रमा का एक माह पृथ्वी के सूर्य के चतुर्दिक् परिभ्रमण करने के समय (एक माह या लगभग 30 दिन) से 2 से 3 दिन छोटा होता है।
इसीलिए यद्यपि चन्द्रमा पृथ्वी के चतुर्दिक् परिभ्रमण करता हुआ अपने अक्ष पर भी वैसे ही घूमता है, जैसे कि स्वयं पृथ्वी भी स्वयं के अपने अक्ष पर घूमती हुई, सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा में एक सौर-वर्ष में (लगभग 12 माह या 365-366 दिनों में) पूरा परिभ्रमण करती है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी से ही हुई है।
यह सिद्धान्त उस सिद्धान्त के समानान्तर है जिसके अनुसार मन की उत्पत्ति पृथ्वी तत्व से हुई है।
इसी प्रकार सूर्य को व्यक्त स्थूल जगत की 'आत्मा' कहा जाता है।
मनुष्य का स्थूल शरीर पृथ्वी-तत्व से बना है, सूर्य अग्नि तत्व है, अंतरिक्ष आकाशतत्व है।
श्वास वायुतत्व है, मन जलतत्व है।"
मनोयान विक्रम को लेकर चन्द्रमा पर पहुँचता है,
विक्रम के कंधे पर स्थित वेताल (प्रज्ञान) विक्रम को उपरोक्त कथा सुनाता है और पूछता है:
"राजन् !
क्या यह मनुष्य का दुस्साहस है, या जिज्ञासा कि वह चन्द्र (मन) के अन्धकार में छिपे हिस्से (अचेतन मन) के बारे में जानने के लिए उत्सुक है? क्या यह संयोग है कि स्त्रियों के रजोधर्म का काल एक चाँद्र-मास अर्थात् लगभग 27 दिनों का होता है? क्या भ-चक्र (Zodiac / द्यु-दिक्त) का 27 नक्षत्रों में विभाजन इसी आधार पर नहीं है? क्या इसीलिए शबरीमालै के अय्यप्पा या शिंगणापुर के शनि-मंदिर में स्त्रियों के प्रवेश का निषेध है? शनि स्वयं भगवान् सूर्य की छाया से उत्पन्न संतान है, और छाया संज्ञा की सौत, क्या अय्यप्पा; - स्कन्द अर्थात् 'कुमार', अर्थात् मंगल नहीं हैं ? क्या पृथ्वी स्वयं लक्ष्मी नहीं है, जिसकी उत्पत्ति समुद्र से हुई है?
क्या आध्यात्मिक और आधिदैविक दृष्टि से चन्द्रमा और मंगल पृथ्वी की ही संतान नहीं हैं ?
क्या सुखी वैवाहिक जीवन के लिए जातक (विशेषकर स्त्री) की जन्म-कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति को महत्त्व नहीं दिया जाता?
जानते हुए भी यदि तुमने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो ... तो वेताल (मैं, -प्रज्ञान) से तुम्हारा संपर्क हो या न हो, तुम्हारा पृथ्वी से संपर्क अवश्य टूट जाएगा। ... "
विक्रम का संपर्क पृथ्वी से हो या न हो, वैज्ञानिकों को निराश होने की आवश्यकता नहीं है।
सफलता / असफलता भी एक सोपान है।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात है, सिल पर पड़त निसान। --
चलते-चलते :
मैंने कल ही अपने एक ब्लॉग का नाम बदलकर 'प्रशस्त-समग्र' किया और आज ही एक अन्य ब्लॉग का नाम बदलकर 'मनोयान' कर दिया !
पिछली रात मेरे लिए एक और विशेष घटना यह भी हुई कि इस ब्लॉग के views का आँकड़ा 200,000 को पार कर गया।
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