ISRO
इसरो ईश्वरो इन्द्रो इन्दिरा भालचन्द्रौ च।
आख्यानमिदं पुण्यं मया अद्य विलोकितः।।
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भगवान् शिव की समाधि एक बार पुनः भंग हुई और उन्होंने नेत्र खोलकर इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई तो देखा कि माता पार्वती और पुत्र भगवान् श्रीगणेश परस्पर खेल में संलग्न थे। जब पार्वती और श्रीगणेश का ध्यान उनकी ओर गया तो पार्वती ने ही प्रश्न किया :
"प्रभो! क्या हमारी क्रीड़ा से आपकी ध्यान-समाधि में बाधा हुई?"
"नहीं देवी ! इसका रहस्य तो पुत्र से ही पूछो। "
भगवान् शिव ने शांतिपूर्वक कहा।
तब माता पार्वती ने भगवान् श्रीगणेश की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
भगवान् श्रीगणेश किञ्चित मुस्कुराते हुए बोले :
"माते! पिताजी और मैं भी तुम्हारी ही तरह त्रिनेत्र हैं। किन्तु तुम इन्दुमुख इन्दिरा हो, जबकि हम दोनों इन्दु को मस्तक पर धारण करते हैं इसीलिए हम दोनों का एक नाम भालचंद्र भी है।"
इससे माता पार्वती की जिज्ञासा शांत नहीं हुई तो उन्होंने पुनः भगवान् शिव की ओर देखा।
"पार्वती ! भारत देश में इस समय नरेंद्र मोदी शासन करते हैं। नाम के ही अनुरूप वे मनुष्यों में इंद्र हैं और स्वभाव से ही मोदप्रिय भी हैं। उनके ही देश में एक और इंद्रतुल्य विज्ञानेन्द्र भी है जिसे ईश्वरो अर्थात् लोक में प्रचलित इस्रो नाम से जाना जाता है। इन्दु से प्राप्त ऐन्दव नाम से प्रकीर्तित इस देश राष्ट्र (इंडिया) के राजा ने इसी विज्ञानेन्द्र ईश्वर (ISRO) के आशीर्वाद से एक यान चन्द्रमा की ओर भेजा। अवभृथ नामक यह मूनयान / मनोयान जब चन्द्रमा तक पहुँचा तो वह शास्त्रीय विधि से चन्द्रमा अर्थात् इन्दु की प्रदक्षिणा करने लगा।
तत्पश्चात् उसने अपने दूत विक्रम को उसके सहायक प्रज्ञान के साथ चंद्र के तल पर उतारना चाहा।
भारत देश में ही ऋषि भारद्वाज को इस तथ्य का पता चला तो उन्होंने अपने एक शिष्य को प्रेरणा दी जिससे वह इस पूरे घटनाक्रम पर चिंतन करने लगा।
प्रत्यक्षानुमानागमाप्रमाणाः प्रमाणानि (पातञ्जल योगसूत्र - समाधिपाद 7) न्याय के अनुसार उसने घटना को क्रमशः प्रत्यक्ष (इन्द्रिय-मन-बुद्धि की आधिभौतिक कसौटी पर) फिर अनुमान की (आधिदैविक कसौटी पर) और फिर आगम (आध्यात्मिक) कसौटी पर कसा।
आधिभौतिक स्तर पर उसे स्पष्ट हुआ कि जब विक्रम चंद्र की भूमि की ओर जा रहा था तो किसी ने उसके मार्ग में बाधा डाली। आधिदैविक स्तर पर उसे स्पष्ट हुआ कि उसकी अनुक्त / उक्त / निरुक्त वाणी इंद्र के कानों तक पहुँची। जैसे ही यह वार्ता कि यह कार्य भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किया जानेवाला पुण्यकार्य है, जिसकी महिमा अश्वमेध-तुल्य है, इंद्र के कानों तक पहुँची, उसे भय हुआ कि कहीं यह यज्ञ पूर्ण न हो जाए, क्योंकि इससे उसका सिंहासन हिलने लगा था। उसने विक्रम के मार्ग में बाधा डाली। विक्रम को कोई क्षति तो नहीं पहुँची, किन्तु वह अपने मार्ग से थोड़ा भटक गया। फिर भी विक्रम ने अपने उतरने के लिए अपनी प्रत्युत्पन्न मति और त्वरित बुद्धि (Artificial Intelligence) का प्रयोग कर उस भूमि पर एक अपेक्षाकृत निरापद तथा उचित स्थान खोज लिया। किन्तु वह संतुलित ढंग से न उतर सका और एक ओर लुढ़क गया। अब वह यह तो नहीं कह सकता था कि बहुत लम्बी यात्रा से वह थक चुका था और उसे कुछ आराम करना ज़रूरी था।
उसकी कर्तव्यनिष्ठा का पता मुझे चंद्र पर उसके लुढ़कते ही चल गया था और इसीलिए मेरी समाधि भी भंग हुई। मुझे इंद्र पर थोड़ा क्रोध भी हो रहा था किन्तु इन्द्र, इन्दु और इन्दिरा तत्वतः एक होने से मैंने प्रतिक्रिया नहीं की। "
तब भालचन्द्र भगवान् श्रीगणेश बोले :
"पिताजी ! क्या विक्रम पुनः अपने कार्य को प्रारम्भ कर सकेगा ?"
"यह तो इन्द्र को ही तय करना है !"
भगवान् शिव स्मितपूर्वक बोले।
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(कल्पित)
इसरो ईश्वरो इन्द्रो इन्दिरा भालचन्द्रौ च।
आख्यानमिदं पुण्यं मया अद्य विलोकितः।।
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भगवान् शिव की समाधि एक बार पुनः भंग हुई और उन्होंने नेत्र खोलकर इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई तो देखा कि माता पार्वती और पुत्र भगवान् श्रीगणेश परस्पर खेल में संलग्न थे। जब पार्वती और श्रीगणेश का ध्यान उनकी ओर गया तो पार्वती ने ही प्रश्न किया :
"प्रभो! क्या हमारी क्रीड़ा से आपकी ध्यान-समाधि में बाधा हुई?"
"नहीं देवी ! इसका रहस्य तो पुत्र से ही पूछो। "
भगवान् शिव ने शांतिपूर्वक कहा।
तब माता पार्वती ने भगवान् श्रीगणेश की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
भगवान् श्रीगणेश किञ्चित मुस्कुराते हुए बोले :
"माते! पिताजी और मैं भी तुम्हारी ही तरह त्रिनेत्र हैं। किन्तु तुम इन्दुमुख इन्दिरा हो, जबकि हम दोनों इन्दु को मस्तक पर धारण करते हैं इसीलिए हम दोनों का एक नाम भालचंद्र भी है।"
इससे माता पार्वती की जिज्ञासा शांत नहीं हुई तो उन्होंने पुनः भगवान् शिव की ओर देखा।
"पार्वती ! भारत देश में इस समय नरेंद्र मोदी शासन करते हैं। नाम के ही अनुरूप वे मनुष्यों में इंद्र हैं और स्वभाव से ही मोदप्रिय भी हैं। उनके ही देश में एक और इंद्रतुल्य विज्ञानेन्द्र भी है जिसे ईश्वरो अर्थात् लोक में प्रचलित इस्रो नाम से जाना जाता है। इन्दु से प्राप्त ऐन्दव नाम से प्रकीर्तित इस देश राष्ट्र (इंडिया) के राजा ने इसी विज्ञानेन्द्र ईश्वर (ISRO) के आशीर्वाद से एक यान चन्द्रमा की ओर भेजा। अवभृथ नामक यह मूनयान / मनोयान जब चन्द्रमा तक पहुँचा तो वह शास्त्रीय विधि से चन्द्रमा अर्थात् इन्दु की प्रदक्षिणा करने लगा।
तत्पश्चात् उसने अपने दूत विक्रम को उसके सहायक प्रज्ञान के साथ चंद्र के तल पर उतारना चाहा।
भारत देश में ही ऋषि भारद्वाज को इस तथ्य का पता चला तो उन्होंने अपने एक शिष्य को प्रेरणा दी जिससे वह इस पूरे घटनाक्रम पर चिंतन करने लगा।
प्रत्यक्षानुमानागमाप्रमाणाः प्रमाणानि (पातञ्जल योगसूत्र - समाधिपाद 7) न्याय के अनुसार उसने घटना को क्रमशः प्रत्यक्ष (इन्द्रिय-मन-बुद्धि की आधिभौतिक कसौटी पर) फिर अनुमान की (आधिदैविक कसौटी पर) और फिर आगम (आध्यात्मिक) कसौटी पर कसा।
आधिभौतिक स्तर पर उसे स्पष्ट हुआ कि जब विक्रम चंद्र की भूमि की ओर जा रहा था तो किसी ने उसके मार्ग में बाधा डाली। आधिदैविक स्तर पर उसे स्पष्ट हुआ कि उसकी अनुक्त / उक्त / निरुक्त वाणी इंद्र के कानों तक पहुँची। जैसे ही यह वार्ता कि यह कार्य भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किया जानेवाला पुण्यकार्य है, जिसकी महिमा अश्वमेध-तुल्य है, इंद्र के कानों तक पहुँची, उसे भय हुआ कि कहीं यह यज्ञ पूर्ण न हो जाए, क्योंकि इससे उसका सिंहासन हिलने लगा था। उसने विक्रम के मार्ग में बाधा डाली। विक्रम को कोई क्षति तो नहीं पहुँची, किन्तु वह अपने मार्ग से थोड़ा भटक गया। फिर भी विक्रम ने अपने उतरने के लिए अपनी प्रत्युत्पन्न मति और त्वरित बुद्धि (Artificial Intelligence) का प्रयोग कर उस भूमि पर एक अपेक्षाकृत निरापद तथा उचित स्थान खोज लिया। किन्तु वह संतुलित ढंग से न उतर सका और एक ओर लुढ़क गया। अब वह यह तो नहीं कह सकता था कि बहुत लम्बी यात्रा से वह थक चुका था और उसे कुछ आराम करना ज़रूरी था।
उसकी कर्तव्यनिष्ठा का पता मुझे चंद्र पर उसके लुढ़कते ही चल गया था और इसीलिए मेरी समाधि भी भंग हुई। मुझे इंद्र पर थोड़ा क्रोध भी हो रहा था किन्तु इन्द्र, इन्दु और इन्दिरा तत्वतः एक होने से मैंने प्रतिक्रिया नहीं की। "
तब भालचन्द्र भगवान् श्रीगणेश बोले :
"पिताजी ! क्या विक्रम पुनः अपने कार्य को प्रारम्भ कर सकेगा ?"
"यह तो इन्द्र को ही तय करना है !"
भगवान् शिव स्मितपूर्वक बोले।
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(कल्पित)
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