कथम् चित् ?
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तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनः तत्वदर्शिनः।।34
(गीता अध्याय 4)
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।21
(गीता अध्याय 4)
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ऋषि उशन् के मन में प्रश्न उठा :
क्या मनुष्य इच्छा और संकल्प आदि करने के लिए स्वतंत्र होता है?
क्या मृत्यु को (स्वरूपतः) जान पाना इच्छा या संकल्प से संभव है?
क्या इच्छा तथा संकल्प इत्यादि अव्यक्त अहंवृत्ति का ही व्यक्त प्रकार मात्र नहीं होता?
वृत्तयस्त्वहं वृत्तिमाश्रिताः।
वृत्तयो अहं विद्ध्यहं मनः।।18
(उपदेशसार श्रीरमण महर्षिकृत)
इस प्रकार उन्हें 'मृत्यु (स्वरूपतः) क्या है?' इसकी जिज्ञासा होने पर भी उसे जान पाने के लिए प्रतीक्षा करना ही एकमात्र उचित कर्तव्य प्रतीत हुआ।
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तब वे वृत्ति के स्वरूप को समझने की चेष्टा करने में संलग्न हुए।
उनके मन में प्रश्न उठा :
यदि वृत्तिमात्र अहंवृत्ति होती है तो मृत्यु आने पर इस अहंवृत्ति का क्या होता है?
क्या वह संस्कारों को एकत्र कर प्राणों के माध्यम से वर्तमान शरीर को त्यागकर नए शरीर को वैसे ही धारण कर लेती है जैसा कि :
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।22
(गीता अध्याय 2) में कहा गया है?
यदि ऐसा भी है तो भी फिर इस वर्तमान शरीर के अस्तित्व में आने से पहले कोई पूर्वजन्म रहा होगा और यह शृँखला कहाँ से आरम्भ हुई होगी यह प्रश्न तो बना ही रहेगा।
शायद सिद्धान्ततः यह सत्य हो भी तो भी क्या यह जानना अधिक आवश्यक है कि क्या अहंवृत्ति मूलतः वृत्तियों के क्रमिक आगमन और प्रस्थान से ही कल्पित नहीं की जाती है?
क्या इस प्रकार वृत्तिमात्र के निरोध होने पर यह कल्पना भी स्वयं ही, स्वतः ही विलीन नहीं हो जाती ?
अहंवृत्ति अस्मिता है जबकि वृत्तिमात्र स्मृति का विषय।
पुनः स्मृति भी वृत्ति ही तो है।
दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतैवास्मिता।।6
(पातञ्जल योगसूत्र - साधनपाद)
--
[वृत्तिसारूप्यमितरत्र।।4
वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टाः।।5
प्रमाण-विपर्यय-विकल्प-निद्रा-स्मृतयः।।6
(पातञ्जल योगसूत्र - समाधिपाद)
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प्रमाण - criteria,
वृत्ति - mode of mind
सारूप्यम् -identification,
अस्मिता - अहंवृत्ति - sense of 'I',
अहं - Self,
चित्त - self, consciousness,
प्रणिपात - Emptying of mind / consciousness of its content,
चित् - दृष्टा - Consciousness,
परिप्रश्न - आत्मान्वेषण - Enquiry, Quest into the Self,
कथम् about,
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तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनः तत्वदर्शिनः।।34
(गीता अध्याय 4)
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।21
(गीता अध्याय 4)
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ऋषि उशन् के मन में प्रश्न उठा :
क्या मनुष्य इच्छा और संकल्प आदि करने के लिए स्वतंत्र होता है?
क्या मृत्यु को (स्वरूपतः) जान पाना इच्छा या संकल्प से संभव है?
क्या इच्छा तथा संकल्प इत्यादि अव्यक्त अहंवृत्ति का ही व्यक्त प्रकार मात्र नहीं होता?
वृत्तयस्त्वहं वृत्तिमाश्रिताः।
वृत्तयो अहं विद्ध्यहं मनः।।18
(उपदेशसार श्रीरमण महर्षिकृत)
इस प्रकार उन्हें 'मृत्यु (स्वरूपतः) क्या है?' इसकी जिज्ञासा होने पर भी उसे जान पाने के लिए प्रतीक्षा करना ही एकमात्र उचित कर्तव्य प्रतीत हुआ।
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तब वे वृत्ति के स्वरूप को समझने की चेष्टा करने में संलग्न हुए।
उनके मन में प्रश्न उठा :
यदि वृत्तिमात्र अहंवृत्ति होती है तो मृत्यु आने पर इस अहंवृत्ति का क्या होता है?
क्या वह संस्कारों को एकत्र कर प्राणों के माध्यम से वर्तमान शरीर को त्यागकर नए शरीर को वैसे ही धारण कर लेती है जैसा कि :
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही।।22
(गीता अध्याय 2) में कहा गया है?
यदि ऐसा भी है तो भी फिर इस वर्तमान शरीर के अस्तित्व में आने से पहले कोई पूर्वजन्म रहा होगा और यह शृँखला कहाँ से आरम्भ हुई होगी यह प्रश्न तो बना ही रहेगा।
शायद सिद्धान्ततः यह सत्य हो भी तो भी क्या यह जानना अधिक आवश्यक है कि क्या अहंवृत्ति मूलतः वृत्तियों के क्रमिक आगमन और प्रस्थान से ही कल्पित नहीं की जाती है?
क्या इस प्रकार वृत्तिमात्र के निरोध होने पर यह कल्पना भी स्वयं ही, स्वतः ही विलीन नहीं हो जाती ?
अहंवृत्ति अस्मिता है जबकि वृत्तिमात्र स्मृति का विषय।
पुनः स्मृति भी वृत्ति ही तो है।
दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतैवास्मिता।।6
(पातञ्जल योगसूत्र - साधनपाद)
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[वृत्तिसारूप्यमितरत्र।।4
वृत्तयः पञ्चतय्यः क्लिष्टाक्लिष्टाः।।5
प्रमाण-विपर्यय-विकल्प-निद्रा-स्मृतयः।।6
(पातञ्जल योगसूत्र - समाधिपाद)
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प्रमाण - criteria,
वृत्ति - mode of mind
सारूप्यम् -identification,
अस्मिता - अहंवृत्ति - sense of 'I',
अहं - Self,
चित्त - self, consciousness,
प्रणिपात - Emptying of mind / consciousness of its content,
चित् - दृष्टा - Consciousness,
परिप्रश्न - आत्मान्वेषण - Enquiry, Quest into the Self,
कथम् about,
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