स इमाँल्लोकानसृजत।
अम्भो मरीचीर्मरमापोऽदोम्भः परेण दिवं द्यौः प्रतिष्ठान्तरिक्षं
मरीचयः पृथिवी मरो या अधस्तात्ता आपः।।२
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[स = आत्मा (अहम्) वा इदम्]
अम्भः (वरुण / विद्युत् -electron, proton and nucleus -- तथा वरुण जिसका अधिष्ठाता है) से मरीचियाँ (किरण / ray / रेख / रेखा, किर्यते / कीर्त्यते - फैलाना, व्याप्त होना), मरीचि से जल; एवं इनसे भिन्न स्वर्ग (देवताओं का लोक) तथा अन्तरिक्ष (Space), पृथिवी (तत्व) मरु / मृत्युलोक, तथा अन्य नीचे के लोक वे सभी।
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स ईक्षतेमे नु लोका लोकपालान्नु सृजा इति सोऽद्भ्यः एव पुरुषं समुद्धृत्यामूर्च्छयत्।।३
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ईक्षण का अर्थ है आत्मा की वह शक्ति जो तत्वतः उससे अभिन्न होते हुए भी उससे विकीर्ण होकर 'इदम्' का रूप लेती है। इसलिए ईक्षण का पर्याय है तप। यह तप कृत्य न होकर आत्मा का स्वभाव, स्वरूप ही है जिसमें सब कुछ अनायास होता है तथा जो कार्य-कारण से परिभाषित नहीं होता।
इस ईक्षण-रूपी तप से सृष्टि होती है जो आदि तथा अंत से रहित है। इसलिए काल भी सृष्टि की रचना है। इस प्रकार सृष्टि नित्य, सनातन और शाश्वत है।
विभिन्न लोकों में विभिन्न प्राणी (अहंकार) अपनी परिस्थितियों के अनुसार इस सृष्टि के अंतर्गत व्यक्त होते हैं और अव्यक्त में लौट जाते हैं।
उस (आत्मा-अहम वा इदम्) के ईक्षणाख्य तप से उसमें संकल्प हुआ कि इन लोकों की रचना हो।
ऐसा संकल्प उठाते ही जल से ही पुरुष का उद्भव हुआ जिसे 'विज्ञानमय-पुरुष' कहा जाता है।
'नृ' धातु से ही नारा (जल), नारद, नारायण, नर तथा नारी) बना है जबकि 'नृ' से ही नट, नाट्य, नद, नाद, नृत्य, नाडी भी बने हैं।
अंग्रेज़ी का nature, nation, Nazi, nazion (German), natal, तमिळ 'नाड' भी इसी के सज्ञात (cognate) हैं।
नृषु -- नृषुलः -- नस्ल (race) भी इसी प्रकार हैं।
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इस प्रकार जल से विज्ञानमय अर्थात मनोमय पुरुष को अव्यक्त से व्यक्त (समुद्धृत) कर उसे मूर्तिमान किया। उस मूर्त प्रतिमा जो मूर्च्छित थी, उसमें चेतना अर्थात् अहम्-बुद्धि (ego) की सृष्टि हुई।
अहम्-बुद्धि अहंकार (ego) के रूप में व्यक्त हुई। जिसके साथ इदम्-बुद्धि जगत / विश्व के रूप में 'Id' के रूप में व्यक्त हुई। इस प्रकार पृथ्वी तत्व इडा/ इरा/ इला के रूप में व्यक्त हुआ। इडा-पिङ्गला नाड़ियों का भी व्यक्त रूप इसी प्रकार हुआ। चित्त और प्राणों के प्रवाह से वह मूर्ति चेतनतत्व से प्राणवान जीव हुई।
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ऐतरेय
अम्भो मरीचीर्मरमापोऽदोम्भः परेण दिवं द्यौः प्रतिष्ठान्तरिक्षं
मरीचयः पृथिवी मरो या अधस्तात्ता आपः।।२
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[स = आत्मा (अहम्) वा इदम्]
अम्भः (वरुण / विद्युत् -electron, proton and nucleus -- तथा वरुण जिसका अधिष्ठाता है) से मरीचियाँ (किरण / ray / रेख / रेखा, किर्यते / कीर्त्यते - फैलाना, व्याप्त होना), मरीचि से जल; एवं इनसे भिन्न स्वर्ग (देवताओं का लोक) तथा अन्तरिक्ष (Space), पृथिवी (तत्व) मरु / मृत्युलोक, तथा अन्य नीचे के लोक वे सभी।
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स ईक्षतेमे नु लोका लोकपालान्नु सृजा इति सोऽद्भ्यः एव पुरुषं समुद्धृत्यामूर्च्छयत्।।३
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ईक्षण का अर्थ है आत्मा की वह शक्ति जो तत्वतः उससे अभिन्न होते हुए भी उससे विकीर्ण होकर 'इदम्' का रूप लेती है। इसलिए ईक्षण का पर्याय है तप। यह तप कृत्य न होकर आत्मा का स्वभाव, स्वरूप ही है जिसमें सब कुछ अनायास होता है तथा जो कार्य-कारण से परिभाषित नहीं होता।
इस ईक्षण-रूपी तप से सृष्टि होती है जो आदि तथा अंत से रहित है। इसलिए काल भी सृष्टि की रचना है। इस प्रकार सृष्टि नित्य, सनातन और शाश्वत है।
विभिन्न लोकों में विभिन्न प्राणी (अहंकार) अपनी परिस्थितियों के अनुसार इस सृष्टि के अंतर्गत व्यक्त होते हैं और अव्यक्त में लौट जाते हैं।
उस (आत्मा-अहम वा इदम्) के ईक्षणाख्य तप से उसमें संकल्प हुआ कि इन लोकों की रचना हो।
ऐसा संकल्प उठाते ही जल से ही पुरुष का उद्भव हुआ जिसे 'विज्ञानमय-पुरुष' कहा जाता है।
'नृ' धातु से ही नारा (जल), नारद, नारायण, नर तथा नारी) बना है जबकि 'नृ' से ही नट, नाट्य, नद, नाद, नृत्य, नाडी भी बने हैं।
अंग्रेज़ी का nature, nation, Nazi, nazion (German), natal, तमिळ 'नाड' भी इसी के सज्ञात (cognate) हैं।
नृषु -- नृषुलः -- नस्ल (race) भी इसी प्रकार हैं।
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इस प्रकार जल से विज्ञानमय अर्थात मनोमय पुरुष को अव्यक्त से व्यक्त (समुद्धृत) कर उसे मूर्तिमान किया। उस मूर्त प्रतिमा जो मूर्च्छित थी, उसमें चेतना अर्थात् अहम्-बुद्धि (ego) की सृष्टि हुई।
अहम्-बुद्धि अहंकार (ego) के रूप में व्यक्त हुई। जिसके साथ इदम्-बुद्धि जगत / विश्व के रूप में 'Id' के रूप में व्यक्त हुई। इस प्रकार पृथ्वी तत्व इडा/ इरा/ इला के रूप में व्यक्त हुआ। इडा-पिङ्गला नाड़ियों का भी व्यक्त रूप इसी प्रकार हुआ। चित्त और प्राणों के प्रवाह से वह मूर्ति चेतनतत्व से प्राणवान जीव हुई।
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ऐतरेय
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