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ईश्वरोगुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने ।
व्योमवद्व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥
अर्थ :
एक ही परम सत्ता ईश्वर, गुरु तथा आत्मा (जीव) की तीन मूर्तियों के विभाजन की दृष्टि से तीन रूपों में देखी जाती है । किंतु वस्तुतः जैसे आकाश देह में (भीतर-बाहर) व्याप्त है, वैसी ही वह एक ही सत्ता इन तीनों में अविभाज्यतः ओत-प्रोत है । जब ’जीव’ परिपक्व होकर अनुसंधान से युक्त होता है तो उत्साहपूर्वक जान लेता है कि वह परम पावन सत्ता श्रीदक्षिणामूर्ति ही इस प्रकार इन तीन रूपों में प्रकट और प्रच्छन्न हैं । श्रीदक्षिणामूर्ति को प्रणाम !
ईश्वरोगुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने ।
व्योमवद्व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥
अर्थ :
एक ही परम सत्ता ईश्वर, गुरु तथा आत्मा (जीव) की तीन मूर्तियों के विभाजन की दृष्टि से तीन रूपों में देखी जाती है । किंतु वस्तुतः जैसे आकाश देह में (भीतर-बाहर) व्याप्त है, वैसी ही वह एक ही सत्ता इन तीनों में अविभाज्यतः ओत-प्रोत है । जब ’जीव’ परिपक्व होकर अनुसंधान से युक्त होता है तो उत्साहपूर्वक जान लेता है कि वह परम पावन सत्ता श्रीदक्षिणामूर्ति ही इस प्रकार इन तीन रूपों में प्रकट और प्रच्छन्न हैं । श्रीदक्षिणामूर्ति को प्रणाम !
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ईश्वरोगुरुरात्मेति मूर्तिभेदविभागिने ।
व्योमवद्व्याप्तदेहाय दक्षिणामूर्तये नमः ॥
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īśvarogururātmeti mūrtibhedavibhāgine |
vyomavadvyāptadehāya dakṣiṇāmūrtaye namaḥ ||
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Meaning :
One and the only Reality pervades in three forms as God, Guru and the 'self'.
Obeisances to Lord दक्षिणामूर्ति / dakṣiṇāmūrti Who assumes these 3 forms and the individual soul, when full of vigor and urge to find out discovers this.
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