वर्तनी और उच्चारण
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खुशी की बात है कि कुछ भाषाशास्त्री अब इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि किसी भी भाषा के लिखे जानेवाले और बोले जानेवाले रूप अर्थात् शब्दों की वर्तनी और उच्चारण में समानता होनी चाहिए । जिन्होंने संस्कृत का आविष्कार किया क्या वे इसकी आवश्यकता से अनभिज्ञ थे? संस्कृत का एक एक शब्द (पद) यहाँ तक कि प्रत्येक वर्ण (स्वर, व्यञ्जन, मात्रा - दीर्घ, अर्ध आदि) कंप्यूटरीय / गणितीय सूक्ष्मता से नियोजित किया जाना यही दर्शाता है कि उपरोक्त तथ्य / निष्कर्ष तक वे बहुत पहले पहुँच चुके थे ।
और कमोबेश यह बात दूसरी भी प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में भी देखी जा सकती है । हिंदी से अधिक प्रशंसा करना चाहूँगा तमिऴ् भाषा की, और संभवतः तेलुगु, कन्नड तथा मलयालम की भी, क्योंकि उन भाषाओं में ए ऎ और ऐ, ओ ऒ तथा औ के लिए तथा व्यञ्जनों के साथ उन मात्राओं के लिए विशेष चिह्न हैं ।
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ए ऎ ऐ ओ ऒ औ
ஏ எ ஐ ஓ ஒ ஔ
ఏ ఎ ఐ ఓ ఒ ఔ
ಏ ಎ ಐ ಓ ಒ ಔ
ഏ എ ഐ ഓ ഒ ഔ
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के कॆ कै को कॊ कौ
கே கெ கை கோ கொ கௌ
కే కె కై కో కొ కౌ
ಕೇ ಕೆ ಕೈ ಕೋ ಕೊ ಕೌ
കേ കെ കൈ കോ കൊ കൗ
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खुशी की बात है कि कुछ भाषाशास्त्री अब इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि किसी भी भाषा के लिखे जानेवाले और बोले जानेवाले रूप अर्थात् शब्दों की वर्तनी और उच्चारण में समानता होनी चाहिए । जिन्होंने संस्कृत का आविष्कार किया क्या वे इसकी आवश्यकता से अनभिज्ञ थे? संस्कृत का एक एक शब्द (पद) यहाँ तक कि प्रत्येक वर्ण (स्वर, व्यञ्जन, मात्रा - दीर्घ, अर्ध आदि) कंप्यूटरीय / गणितीय सूक्ष्मता से नियोजित किया जाना यही दर्शाता है कि उपरोक्त तथ्य / निष्कर्ष तक वे बहुत पहले पहुँच चुके थे ।
और कमोबेश यह बात दूसरी भी प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में भी देखी जा सकती है । हिंदी से अधिक प्रशंसा करना चाहूँगा तमिऴ् भाषा की, और संभवतः तेलुगु, कन्नड तथा मलयालम की भी, क्योंकि उन भाषाओं में ए ऎ और ऐ, ओ ऒ तथा औ के लिए तथा व्यञ्जनों के साथ उन मात्राओं के लिए विशेष चिह्न हैं ।
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भाषा-व्यवहार
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