Monday, 20 November 2017

काल / kāla / Time. and 'Death'.

काल / kāla / Time. and 'Death'.
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अक्षरात् संजायते कालः कालात् व्यापक उच्यते ...
व्यापको हि भगवान् रुद्रो भोगायमानो  ...
यदा शेते रुद्रो संहरति प्रजाः ...
(शिव अथर्वशीर्षम्)
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यह दृष्टव्य है कि ’काल’ शब्द का प्रयोग ही समय तथा मृत्यु दोनों अर्थ में किया जाता है ।
’अक्षर’ अर्थात् ’अविनाशी’ से ’काल’ का सृजन होता है ।
’काल’ (कलन से) व्यापक रूप में ’समय’ तथा ’स्थान’ की तरह से व्यक्त होता है ।
यह व्यापक रूप शिव का भगवान् रुद्र रूप है,
जब इस रूप को शिव स्वयं में समेट लेते हैं अर्थात् स्वयं में इसका संहरण कर लेते हैं तब भोगायमान अर्थात् जगत् की तरह विलास में संलग्न होते हैं । यही ’प्रजा’ अर्थात् ’समय’ तथा ’स्थान’ रूपी व्यक्त जगत् लय हो जाता है । इस प्रकार जागतिक काल तथा स्थान ’विचार’ और कल्पना में ही है, जो प्रत्येक ’जीव’ में भिन्न-भिन्न रूप ग्रहण करता है, किंतु उसका संयुक्त वह वैश्विक रूप है ही नहीं जिसका वैज्ञानिक आकलन करते हैं ।
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akṣarāt saṃjāyate kālaḥ kālāt vyāpaka ucyate,
vyāpako hi bhagavān rudro bhogāyamāno ...
yadā śete  rudro saṃharati prajāḥ ...

(śiva atharvaśīrṣam)
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The word काल / kāla in संस्कृत / saṃskṛta  /   is used in the sense of ‘Time’ as well as ‘Death’.
This काल / kāla is ‘generated’ when शिव / śiva, in His rudra aspect is engaged in enjoyin the play of manifestation.
When asleep He (शिव / śiva) withdraws this काल / kāla within.
This काल / kāla is of the nature of expansion and is at once ‘Time’ and ‘Space’ together. So, काल / kāla and Time exist in the individual imagination only, and not at the world-level, which ‘science’ tries to study about. The individual too as ‘person’ is likewise in imagination only, really there exists no such person as an individual or the collective Truth. So death is never a Reality, Neither is birth or rebirth. Where can then be there 'past' and future?

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