प्रेम और संबंध
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संकल्प और अन्तर्द्वन्द, दुविधा साथ-साथ नहीं हो सकते ।
संकल्प अर्थात् निश्चय, निश्चय अर्थात् जो सुनिश्चित हो गया ।
यदि परिस्थितियों के बदल जाने पर वह बदल जाता है, अप्रासंगिक या अर्थहीन हो जाता है तो वह न तो निश्चय था न संकल्प था, केवल विचार के आधार पर लिया गया तात्कालिक अनुमान था । किसी आदर्श, कर्तव्य या आवेश में, किसी बाह्य दबाव में जिसे सोचा गया था । इसलिए निश्चय या संकल्प अटल और अडिग होता है और मूलतः स्वतन्त्र भी । इसलिए संकल्प आग्रह नहीं हो सकता । आग्रह दुविधा और अन्तर्द्वन्द्व, इच्छा और भय से युक्त होता है, आग्रह कल्पना से प्रभावित होता है और कल्पना परिस्थितियों से । प्रेम संकल्प है, संबंध व्यवस्था पर निर्भर है । इसलिए प्रेम में द्वन्द्व या आग्रह नहीं होता । संबंध में सदा आग्रह, भय और शंका, भावी के अनुमान तथा अतीत के अनुभव की छाया से प्रभावित होता है । इसलिए प्रेम वैराग्य है, अनासक्ति; जबकि संबंध है, राग - विराग ।
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संकल्प और अन्तर्द्वन्द, दुविधा साथ-साथ नहीं हो सकते ।
संकल्प अर्थात् निश्चय, निश्चय अर्थात् जो सुनिश्चित हो गया ।
यदि परिस्थितियों के बदल जाने पर वह बदल जाता है, अप्रासंगिक या अर्थहीन हो जाता है तो वह न तो निश्चय था न संकल्प था, केवल विचार के आधार पर लिया गया तात्कालिक अनुमान था । किसी आदर्श, कर्तव्य या आवेश में, किसी बाह्य दबाव में जिसे सोचा गया था । इसलिए निश्चय या संकल्प अटल और अडिग होता है और मूलतः स्वतन्त्र भी । इसलिए संकल्प आग्रह नहीं हो सकता । आग्रह दुविधा और अन्तर्द्वन्द्व, इच्छा और भय से युक्त होता है, आग्रह कल्पना से प्रभावित होता है और कल्पना परिस्थितियों से । प्रेम संकल्प है, संबंध व्यवस्था पर निर्भर है । इसलिए प्रेम में द्वन्द्व या आग्रह नहीं होता । संबंध में सदा आग्रह, भय और शंका, भावी के अनुमान तथा अतीत के अनुभव की छाया से प्रभावित होता है । इसलिए प्रेम वैराग्य है, अनासक्ति; जबकि संबंध है, राग - विराग ।
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