Sunday, 12 November 2017

J.Krishnamurti : Talks (Meditation)

The Hindi Translation of the original English text., 
(as is given below the Hindi text).
ध्यान : मन के रिक्त होने की एक प्रक्रिया
ध्यान अतीव महत्वपूर्ण है । ध्यान क्या है, इसे न जानना उस फूल की तरह होना है, जिसमें सुगंध न हो । ध्यान जीवन की सुगंध है ; इसमें असीम सौन्दर्य है । यह उस द्वार को खोलता है जिसे मन कभी नहीं खोल सकता ; यह उस गहनता तक जाता है जिसे कोई सुसंस्कृत मन कभी छू तक नहीं सकता । इसलिए ध्यान बहुत महत्वपूर्ण है । किंतु हम हमेशा गलत प्रश्न करते हैं और उसके परिणाम में कोई गलत उत्तर ही हमें मिलता है । हम कहते हैं, "मैं ध्यान कैसे करूँ?" और तब हम किसी स्वामी के पास जाते हैं, किसी मूढ मनुष्य के पास जाते हैं, या हम कोई किताब उठाकर पढ़ने लगते हैं, या इस आशा से किसी प्रणाली का अनुसरण करने लगते हैं, कि ध्यान कैसे किया जाता है इसे सीखें । अब, यदि हम स्वामियों, योगियों,  व्याख्याकारों, श्वास का और निश्चल-स्थिर बैठने का अभ्यास करनेवालों, और ऐसे दूसरों को, इन सबको एक ओर रख दें, तो हम अपरिहार्यतः "ध्यान क्या है?" इस प्रश्न पर आएँगे ।
इसलिए, कृपया ध्यानपूर्वक सुनिए । तो अब हम "ध्यान कैसे करें, या जागरूक होने की क्या तकनीक है?"  यह नहीं, बल्कि यह पूछ रहे हैं : "ध्यान क्या है?" ... जो कि प्रश्न को सही ढंग से पूछना हुआ ।
ध्यान क्या है? इसे आप नहीं जानते । और इसी आधार पर ध्यान करने का आपका प्रश्न अवलंबित है । [हँसी..] कृपया सुनिए! इसे हँसी में मत उड़ाइए !
क्या आप "मैं नहीं जानता ।" की सुन्दरता देख पाते हैं?  इसका मतलब यह हुआ कि तब मेरा मन समस्त तकनीकों से, ध्यान से संबंधित समस्त जानकारियों से, दूसरों ने इस बारे में क्या कहा है, आदि सबसे पूरी तरह मुक्त है । मेरा मन नहीं जानता । ध्यान क्या है, इसका पता करने के लिए हम तभी तत्पर हो सकते हैं जब हम ईमानदारी से यह कह सकें कि हम नहीं जानते; और जब तक कि आपके मन में उधार की जानकारियों, गीता या बाइबिल या सैंट फ़्रैन्सिस ने चिन्तन-मनन या प्रार्थना के फल के बारे में-- जैसा कि आधुनिकतम प्रचलन है, जिसकी चर्चा लगभग हरेक पत्रिका में पाई जाती है  -- क्या कहा है, आदि का महत्व है, ...
-तब तक आप, "मैं नहीं जानता" नहीं कह सकते ।
अतः (प्रश्न यह है कि) क्या मन ऐसी अवस्था में हो सकता है जहाँ यह कह सके "मैं नहीं जानता"?
यह अवस्था ही ध्यान का आरंभ और अन्त है क्योंकि उसी अवस्था में प्रत्येक अनुभव को , -- प्रत्येक अनुभव को -- समझ लिया जाता है,  संचित नहीं किया जाता ।
आप समझ रहे हैं? क्या आप यह देख पाते हैं कि आप अपने विचार पर नियंत्रण करना चाहते हैं और जब आप अपने विचार पर नियंत्रण करते हैं जब इसे भटकने से रोक लेते हैं तब आपकी ऊर्जा विचार में नहीं, बल्कि नियंत्रण करने में लगी होती है । समझ रहे हैं न?  ऊर्जा का संग्रहण तभी हो सकता है जब नियंत्रण, किसी प्रकार की दासता, भटकावों (विक्षेपों) से संघर्ष, मान्यताओं, लक्ष्य-प्राप्ति की चेष्टाओं और विभिन्न प्रेरणाओं में इसका अपव्यय न होने दिया जाए; और विचार की यह प्रचंड संचित ऊर्जा अचल होती है ।
समझ रहे हैं न आप? जब आप कहते हैं, "मैं नहीं जानता", तब विचार का वेग नहीं रह जाता, या कि रह जाता है? विचार का वेग केवल तभी होता है जब आप पूछते हैं, कुछ पता लगाना चाहते हैं, और आपका यह पूछना, यह पता लगाना ज्ञात से ज्ञात तक होता है । यदि आप नहीं समझ पा रहे हों तो शायद बाद में इस बारे में सोचिए ।
ध्यान मन के रिक्त होने की एक प्रक्रिया है । मन का रिक्त हो पाना केवल तभी संभव होता है जब कोई नियंत्रणकर्ता न हो; नियंत्रण द्वारा, नियंत्रणकर्ता ऊर्जा को बिखरा देता है  ... अब, जब आप कहते हैं, "मैं नहीं जानता", तब विचार उत्तर पाने के लिए किसी दिशा में नहीं दौड़ता;  मन पूर्णतः निश्चल होता है ।
जे.कृष्णमूर्ति
ओक-ग्रोव, आठवीं वार्ता,
अगस्त 28, 1955
पृष्ठ : 144-146
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The original J.Krishnamurti-Talk.                         

It is enormously important to meditate. If you do not know what meditation is, it is like having a flower without scent.. . Meditation is the perfume of life; it has immense beauty. It opens doors to that the mind can never open; it goes to the depths that the merely cultured mind can never touch. So meditation is very important. But we always put the wrong question and therefore get a wrong answer. We say, "How am I to meditate? " so we go to swami, some foolish person, or we pick up a book, or follow a system, hoping to learn how to meditate. Now, if we can brush all that aside, the swamis, the yogis, the interpreters, the breathers, the "sitting - stillers", and all the rest of it, then we must inevitably come to this question: What is meditation?
So, please listen carefully. We are now asking, not how to meditate, or what the technique of awareness is, but what is meditation? -- which is the right question.. . . What is meditation? You don't know. And that is the basis on which to meditate.[ Laughter ] Please listen, don't laugh it off. " I don't know." Do you understand the beauty of that? It means that my mind is stripped of all techniques, of all information about meditation, of everything others have said about it. My mind does not know. We can proceed with finding out what is meditation only when you can honestly say that you do not know; and you cannot say, "I do not know", if there is in your mind the glimmer of secondhand information, of what the Gita or the Bible or Saint Francis has said about contemplation or the results of prayer -- which is the latest fashion; in every magazine they are talking about it.. .
So, can the mind be in a state in which it says, " I do not know "? That state is the beginning and the end of meditation because in that state every experience -- every experience -- is understood and not accumulated. Do you understand? You see you want to control your thinking, and when you control your thinking, hold it from distraction, your energy has gone into the control and not into thinking. Do you follow? There can be the gathering of energy only when energy is not wasted in control, in subjugation, in fighting distractions, in suppositions, in pursuits, in motivations; and this enormous gathering of energy, of thought, is without motion. Do you understand? When you say, " I do not know ", then there is no movement of thought, is there? There is a movement of thought only when you begin to inquire, to find out, and your inquiry is from the known to the known. If you don't follow this, perhaps you will think it out afterwards.
Meditation is a process of purgation of the mind. There can be purgation of the mind only when there is no controller; in controlling, the controller dissipates energy.. . . Now, when you say, " I do not know ", there is no movement of thought in any direction to find an answer; the mind is completely still.
J. Krishnamurti
Eighth Talk in the Oak Grove, August 28, 1955, From: As One Is, pp. 144-146

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