श्रुति-स्वर / śruti-svara
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डी.एन.ए. के संवर्धन के कुछ उदाहरण शायद सनातन-धर्म में कुरु-वंश के विस्तार में (अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका) के प्रसंग में, परशुराम और भगवान् श्री राम के प्रसंग में ’चरु’ में देखे जा सकते हैं । कुंभज ऋषि की कथा भी इससे मिलती जुलती है । गरुड और सर्प की कहानी (विनता और कद्रु) भी उल्लेखनीय है । किंतु जहाँ तक ’नस्ल’ या वंश को शुद्ध रखना आवश्यक है उसके लिए आज के तथाकथित ’आनुवांशिकी-वैज्ञानिकों’ को अभी बहुत दूर तक प्रयास करने होंगे । ’म्यूटेशन’ तो सीधा तरीका है जो तप और वैदिक अनुष्ठान से भी संभव है, जो आज के युग में केवल अपने लिए ही किया जा सकता है, वह भी बहुत कठिन है । रिकॉम्बिनेशन का अर्थ हुआ गुणसूत्रों का संयोजन । व्यावहारिक और दूसरे अर्थों में यह केवल ’वर्ण’ को शुद्ध रखने से ही संभव है, न कि प्रयोगशाला के माध्यम से । संभवतः ’स्पर्म’ (sperm) और ’एम्ब्रायो’ (embryo) के संरक्षण से भी हो सकता है । किंतु ’वर्ण’ की ’लिंक’ link तो ओरिजिनल होनी ही चाहिए ।
प्रसंगवश इस पर दृष्टि गई तो पोस्ट करने का विचार आया ।
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’सोम’ पर आपने बहुत अध्ययन किया है । यह चेतना ही सोम है । मूर्धा का एक नाम सुषुम्ना भी है ।
गामाविष्य च भूतानिधारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥
(गीता अध्याय १५, श्लोक १३)
यही सोम गुण-सूत्रों (genes, genomes, genetics > गुण, जननम्) का आधार है । या तो भौतिक वैज्ञानिक विधियों से ’म्यूटेशन’ घटित किया जाए, या प्रत्यक्ष अपनी आत्मा में ही ’सोम’ के आवाहन से, या वैदिक अनुष्ठान के द्वारा, इन सभी से यह संभव जान पड़ता है ।
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डी.एन.ए. के संवर्धन के कुछ उदाहरण शायद सनातन-धर्म में कुरु-वंश के विस्तार में (अम्बा, अम्बिका, अम्बालिका) के प्रसंग में, परशुराम और भगवान् श्री राम के प्रसंग में ’चरु’ में देखे जा सकते हैं । कुंभज ऋषि की कथा भी इससे मिलती जुलती है । गरुड और सर्प की कहानी (विनता और कद्रु) भी उल्लेखनीय है । किंतु जहाँ तक ’नस्ल’ या वंश को शुद्ध रखना आवश्यक है उसके लिए आज के तथाकथित ’आनुवांशिकी-वैज्ञानिकों’ को अभी बहुत दूर तक प्रयास करने होंगे । ’म्यूटेशन’ तो सीधा तरीका है जो तप और वैदिक अनुष्ठान से भी संभव है, जो आज के युग में केवल अपने लिए ही किया जा सकता है, वह भी बहुत कठिन है । रिकॉम्बिनेशन का अर्थ हुआ गुणसूत्रों का संयोजन । व्यावहारिक और दूसरे अर्थों में यह केवल ’वर्ण’ को शुद्ध रखने से ही संभव है, न कि प्रयोगशाला के माध्यम से । संभवतः ’स्पर्म’ (sperm) और ’एम्ब्रायो’ (embryo) के संरक्षण से भी हो सकता है । किंतु ’वर्ण’ की ’लिंक’ link तो ओरिजिनल होनी ही चाहिए ।
प्रसंगवश इस पर दृष्टि गई तो पोस्ट करने का विचार आया ।
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’सोम’ पर आपने बहुत अध्ययन किया है । यह चेतना ही सोम है । मूर्धा का एक नाम सुषुम्ना भी है ।
गामाविष्य च भूतानिधारयाम्यहमोजसा ।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः ॥
(गीता अध्याय १५, श्लोक १३)
यही सोम गुण-सूत्रों (genes, genomes, genetics > गुण, जननम्) का आधार है । या तो भौतिक वैज्ञानिक विधियों से ’म्यूटेशन’ घटित किया जाए, या प्रत्यक्ष अपनी आत्मा में ही ’सोम’ के आवाहन से, या वैदिक अनुष्ठान के द्वारा, इन सभी से यह संभव जान पड़ता है ।
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