Monday, 15 August 2016

The Human-consciousness.

‘What Is’, 
‘What should be’, 
and The Human-consciousness.
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For me, Here lies the importance of understanding What J.Krishnamurti has tried to draw our attention to. To 'What Is' and this attention should not be in terms of 'What should be'. 'What Is' is Fact. This fact when translated into words is not 'What Is', but only an interpretation of 'What Is' / Fact.. 'Man' / Mankind needs to look at 'What Is' with attention focused with this perspective as the point of reference. 'Politics' is always centered around a 'Thought' about 'What should be'. And there lies the root-cause of fragmentation of human-consciousness in the individual.Many a great thinkers and 'Gurus' / teachers of all kinds have tried to find out and teach in their own way, way of attaining 'enlightenment' which is but in the ambit of 'What should be' and is a diversion from 'What Is'. So long as 'one' seeks one's own enlightenment / Spiritual growth, one can not overcome the obstacle of 'Thought' / the fragmentation of human consciousness . Once this fact enters the perception of the individual, ‘Thought’ comes to end on its own. This is truly, ‘The awakening of Intelligence’. One who has come across this Intelligence is no more an individual but only an Intelligent expression of ‘What Is’. Though one, who has understood 'Thought' / this fragmentation is not in a situation to make 'the world' undergo change. For him, there is no such a world which needs to be ‘reformed’ or transformed. For him, 'our world' / individual-world is a hypothetical entity / myth only.
'What Is' reigns Supreme, as is Timelessly, devoid of any description / interpretation.
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'जो है',
'जो होना चाहिए',
और मानव-चेतना 
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लगता है यही ठीक वह बिंदु है, जहाँ उस सन्दर्भ की ओर जे. कृष्णमूर्ति ने हमारा ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है और उनके वचनों को उस परिप्रेक्ष्य में समझा जाना महत्वपूर्ण और समीचीन है । अर्थात् 'जो है', को सीधे समझा जाना, न कि 'जो होना चाहिए' के विचार, कल्पना या अनुमान को माध्यम बनाकर,  'जो होना चाहिए' के विचार, कल्पना या अनुमान आदि के सहारे विवेचना द्वारा वैचारिक ऊहापोह के माध्यम से समझने का प्रयास करना ।
'जो है' तथ्य है । इस तथ्य को जब शब्द प्रदान किये जाते हैं तो उन शब्दों से तथ्य का, अर्थात् उसका वर्णन संभव नहीं है 'जो है' । तब शब्द 'जो है' की, -तथ्य की व्याख्या भर बनकर रह जाते हैं और तथ्य के / 'जो है' के वास्तविक तत्व का यथावत् सम्प्रेषण हो पाना असंभव नहीं तो कठिन तो हो ही जाता है ।
 ज़रूरत यह है कि आज का मनुष्य अपना ध्यान समुचित रूप से ’जो है’ / ’तथ्य’ के सही सन्दर्भ में इसके तात्पर्य को समझने पर केन्द्रित रखे । राजनीति / राजनीतिक विचार हमेशा ही ’जो होना चाहिए’ / किसी आदर्श किन्तु काल्पनिक स्थिति को केन्द्र में रखकर गतिशील होता है । और यही भूल मनुष्य / व्यक्ति मात्र में विद्यमान सार्वलौकिक सर्वनिष्ठ सामान्य मानव-चेतना के विखण्डन का मूल कारण है ।
अनेक प्रकार के असंख्य महान विचारकों और शिक्षकों ने उनके अपने तरीके से ’आत्म-ज्ञान’ कैसे प्राप्त किया जाए, इस बारे में प्रयास किया है और इसकी शिक्षा भी दी है  किन्तु हम यह भूल जाते हैं कि ऐसा प्रयास ’जो होना चाहिए’ के दायरे में सीमित रह जाता है, उस दायरे को तोड़ नहीं पाता, इसलिए ’जो है’ / तथ्य से भटकाव और उसका विरूपण ही सिद्ध होता है ।
जब तक कोई अपनी ही आध्यात्मिक प्रगति और अपने-आपके ’आत्म-ज्ञान’की खोज में संलग्न रहता है तब तक ’अहं-केन्द्रित’ इस प्रयास का निष्फल होना स्वाभाविक है । और वह इस बुद्धि की बाधा को न तो समझ पाता है, न उसे पार कर पाता है ।  और मनुष्य-मन (चेतना) का मूल विखण्डन इसी तथ्य में   निहित है ।  जब यह तथ्य एक बार मनुष्य के  संवेदन में ग्रहण कर लिया जाता है तो 'विचार' अनायास, स्वतः ही पर्यवसित हो जाता है । वास्तव में यही प्रज्ञा / अंतःप्रज्ञा का प्रस्फुटन (‘The awakening of Intelligence’) भी है ।  जिस मानव (मन) में ऐसा आमूल परिवर्तन घटित हो जाता है वह कोई व्यक्ति-विशेष नहीं रह जाता बल्कि उस अंतःप्रज्ञा (Intelligence Supreme) की ही एक प्रकट अभिव्यक्ति होता है । जिसने विचार के इस अंत को देख लिया होता है, उसके लिए ऐसा कोई संसार कहीँ होता ही नहीं जिसे सुधारने या बदलने बारे में  सोचने की  ज़रूरत उसे महसूस होती हो ।  'हमारा संसार', 'हमारा वैयक्तिक जगत' तो उसकी दृष्टि में हमारा व्यक्तिगत विचार / कल्पना भर होता है जिससे वह नितांत अपरिचित होता है ।
'जो है' का, -तथ्य का, काल से अछूता सदा और सर्वत्र एकछत्र सार्वभौम साम्राज्य है ।
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