शास्त्रमर्यादा / śāstramaryādā
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शास्त्राणि सूचयन्ति तत्वं धर्ममधर्मौ तथा ।
फलानि शुभाशुभानि एषा हि शास्त्रमर्यादा ॥1
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अधिकारी च शास्त्रज्ञः आचार्यशिष्यौ उभौ ।
आचरित्वा विवेकेन निःश्रेयसमाप्नुयात् ॥2
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adhikārī ca śāstrajñaḥ ācāryaśiṣyau ubhau |
ācaritvā vivekena niḥśreyasamāpnuyāt ||2
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अर्थ 1:
वेद (शास्त्र) तत्व धर्म क्या है और अधर्म क्या है, उस धर्म-अधर्म का आचरण करने से कौन से शुभ-अशुभ फल प्राप्त होते हैं इस बारे में शिक्षा देते हैं, यही वेद (शास्त्र) की मर्यादा है ।
अर्थ 2:
(किंतु) आचार्य तथा शिष्य दोनों ही अधिकारी / सुपात्र हों तो तदनुसार अपने विवेक द्वारा धर्म का आचरण और अधर्म का त्याग कर वाञ्छित निःश्रेयस् (परमार्थ) / (धर्म अर्थ काम, मोक्ष) (dharma artha kāma, mokṣa) को
प्राप्त करते हैं ।
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Meaning 1:
Scriptures (Veda) explain and teach about what is Truth, what is right(eousness) and what is wrong.
What are the good and what are evil consequences that result from of our actions. This much is the duty and limit of Scriptures (Veda).
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Meaning 2:
(But) Be he a disciple or the Teacher, only those who deserve and are fit to study and follow Scriptures (Veda) carefully with due attention and discrimination understand the scriptures(Veda), and attain the Supreme Worth (धर्म अर्थ काम, मोक्ष / dharma artha kāma, mokṣa) attainable.
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शास्त्राणि सूचयन्ति तत्वं धर्ममधर्मौ तथा ।
फलानि शुभाशुभानि एषा हि शास्त्रमर्यादा ॥1
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अधिकारी च शास्त्रज्ञः आचार्यशिष्यौ उभौ ।
आचरित्वा विवेकेन निःश्रेयसमाप्नुयात् ॥2
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śāstrāṇi sūcayanti tatvaṃ dharmamadharmau tathā |
phalāni śubhāśubhāni eṣā hi śāstramaryādā ||1--
adhikārī ca śāstrajñaḥ ācāryaśiṣyau ubhau |
ācaritvā vivekena niḥśreyasamāpnuyāt ||2
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अर्थ 1:
वेद (शास्त्र) तत्व धर्म क्या है और अधर्म क्या है, उस धर्म-अधर्म का आचरण करने से कौन से शुभ-अशुभ फल प्राप्त होते हैं इस बारे में शिक्षा देते हैं, यही वेद (शास्त्र) की मर्यादा है ।
अर्थ 2:
(किंतु) आचार्य तथा शिष्य दोनों ही अधिकारी / सुपात्र हों तो तदनुसार अपने विवेक द्वारा धर्म का आचरण और अधर्म का त्याग कर वाञ्छित निःश्रेयस् (परमार्थ) / (धर्म अर्थ काम, मोक्ष) (dharma artha kāma, mokṣa) को
प्राप्त करते हैं ।
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Meaning 1:
Scriptures (Veda) explain and teach about what is Truth, what is right(eousness) and what is wrong.
What are the good and what are evil consequences that result from of our actions. This much is the duty and limit of Scriptures (Veda).
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Meaning 2:
(But) Be he a disciple or the Teacher, only those who deserve and are fit to study and follow Scriptures (Veda) carefully with due attention and discrimination understand the scriptures(Veda), and attain the Supreme Worth (धर्म अर्थ काम, मोक्ष / dharma artha kāma, mokṣa) attainable.
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