Thursday, 18 August 2016

अहसासों की समीक्षा ...

अहसासों की समीक्षा 
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अहसासों की परिधि लाँघना व्यक्ति मन की सबसे बड़ी ज़रुरत होती है.....वह करना चाहता है अहसासों की समीक्षा उससे परे जाकर...उसकी हदों से बाहर जाकर उस प्रक्रिया को करना चाहता है अनुभूत .....मिल नहीं पाता वो मक़ाम जहाँ आप निर्निमेष भाव से कर सकें अहसासों की वस्तुनिष्ठ समीक्षा.......!
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विकल्प-1
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बेहस-बेहिस अहसास, महसूस हुआ करते हैं,
नहीं है मुमक़िन बहस कर सकना उन पर ।
वो जिसके ये अहसास हुआ करते हैं,
नहीं हुआ करता है वह अहसास कोई !
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विकल्प-2
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सं ईक्षा > समीक्ष्यते इति अवलोकनम्
(अनुभूति, भावना, चित्त की स्थिति का) सम्यक् अवधान वास्तविक समीक्षा होता है, जिसमें टिप्पणी / प्रतिक्रिया के लिए कोई स्थान नहीं होता, और न किसी सुखद / दुःखद परिणाम की अपेक्षा ... यह संभव है यदि हममें धैर्य है ।
(पुनश्च : और थोड़ा गौर से देखें तो वहाँ  'व्यक्ति मन' जैसी कोई व्यक्ति-सत्ता भी नहीं होती जो 'समीक्षा' करनेवाला / समीक्षक होती हो । समीक्षक का विचार भी आनेजानेवाला ख़याल है, जबकि जिस संवेदन / consciousness में ये विचार आते-जाते हैं वह सदैव, सर्वथा निर्वैयक्तिक अचल अविकारी आधार है  !)

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