रब दा वास्ता
वाह, ... व्वाह ! शाद्वल,
हरित-भूमि !
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वाल्मीकि रामायण में शाद्वल शब्द का प्रयोग वन के उस हिस्से के लिए किया गया है जो 'अरण्य' नहीं है।
'अरण्य' के भी पुनः दो अर्थ किए जा सकते हैं।
पहला वह जो रण, अर्थात् रणभूमि नहीं है।
'रण' वही है जिसे रेगिस्तान कहा जाता है।
रण वह मैदान है जहाँ ज़मीन पर कोई वनस्पति तृण आदि तक का अभाव होता है।
इसलिए प्राचीन-काल में योद्धा ऐसे मैदान पर युद्ध करते थे।
'अरण्य' वह है जहाँ युद्ध कर पाना कठिन होता है।
'अरण्य-रोदन' ऐसे ही वन में रोने को कहा जाता है, जहाँ आपकी आवाज़ सुननेवाला कोई नहीं होता।
'शाद्वल' वन में वृक्षों, लताओं, फूलों आदि से भरा एक टुकड़ा होता है।
'शाद्वल' रण में या अरण्य में भी हो सकता है।
जिसे अरबी भाषा में 'वाह' या 'व्वाह' कहा जाता है।
अंग्रेज़ी के wow से भी यह मिलता-जुलता है !
अरबी भाषा में खजूर को 'नख़ल' कहा जाता है और रेगिस्तान में जहाँ हर तरफ रेत ही होती है और भूमिगत जल भी होता है, किसी हिस्से में नख़लिस्तान / शाद्वल भी पाया जाता है। मानव-बस्ती के लिए ऐसे ही कुछ स्थान रहने के लिए अपेक्षतया उपयुक्त होते हैं। प्राचीनकाल से ही ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में ऊँटों की बहुतायत रही है। यह शोध का विषय हो सकता है कि ऊँटों की बहुतायत होने से ऐसे क्षेत्र धीरे-धीरे मरुस्थल बन गए, या मरुस्थलों के कारण कुछ स्थानों पर जहाँ भूमि में जलस्रोत थे, ख़जूर के वृक्ष बढ़े-पनपे।
जो भी हो मनुष्यों ने उन भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान की।
संस्कृत में शात (मूल शा धातु, 'तेजने' - तेजयुक्त होने, करने के अर्थ में, शान इसी से व्युत्पन्न होता है,) से ही निशात बनाता है। जैसे 'स्तब्ध' और 'निस्तब्ध' या 'निःस्तब्ध' समानार्थी होते हुए भी पहले 'स्तब्ध' का अर्थ 'ठिठका हुआ' भी होता है, जबकि 'निःस्तब्ध' का अर्थ 'अत्यंत शान्त' होता है। निशातबाग तो सुना ही होगा! इसका जो भी तात्पर्य ग्रहण करना चाहें ठीक ही है।
इसी प्रकार 'निशा' अर्थात् रात्रि को भी दो प्रकार से समझा जा सकता है। 'शाम' अर्थात् सायं को भी।
अंग्रेज़ी में नख़लिस्तान को oasis कहा जाता है।
यह भी अव-शिष् का सज्ञात cognate है। अर्थ है : जो शेष रहता है।
ऐसा ही एक शब्द है 'oath' जिसकी व्युत्पत्ति 'अव-वद' , 'अव-वच' दोनों से की जा सकती है।
जैसे अथ, तथ, व्यथ (वि अथ), रथ, कथ, मथ, पथ, आदि में 'थ' प्रत्यय वर्ण (suffix) से जुड़कर निश्चित अर्थ रखनेवाले किसी शब्द को बनाता है, वैसे ही 'अव-थ' भी।
अरबी भाषा की संरचना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि संस्कृत की ही तरह एक एक वर्ण चाहे वह मूल प्रातिपदिक हो या प्रत्यय से युक्त हो भिन्न भिन्न वर्णों से जुड़कर बहुत भिन्न अर्थ देता है और जहाँ तक मेरा अनुमान है अरबी भाषा के प्रत्येक शब्द की उत्पत्ति वैसे ही समझी जा सकती है जैसे कि संस्कृत भाषा के प्रत्येक शब्द की होती है। लिपि के कारण अवश्य दोनों भाषाओं में प्रत्ययों / उपसर्गों के जुड़ने के अपने नियम बदल जाते हैं लेकिन मूल सिद्धांत समान हैं।
विगत 1400 वर्षों के इतिहास के कारण एक कठिनाई अवश्य पैदा हो गयी है कि अरबी भाषा को प्रायः क़ुरान के सन्दर्भ में ही सीखा / पढ़ा जाता है, जबकि इसे क़ुरान से स्वतंत्र रूप में भी सीखा पढ़ा जा सकता है। यह तो मानना ही होगा कि क़ुरान और इस्लाम का आगमन होने से पहले भी अरबी भाषा लिखी-पढ़ी और बोली जाती रही होगी।
अरबी, हिंदी, उर्दू, और पंजाबी का 'रब' से वही संबंध है, जो हिब्रू भाषा में Rabbi /ˈræbaɪ/ से 'रब' का है।
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अरबी, फ़ारसी, हिब्रू, उर्दू, रब, पंजाबी,
रब दा वास्ता,
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वाह, ... व्वाह ! शाद्वल,
हरित-भूमि !
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वाल्मीकि रामायण में शाद्वल शब्द का प्रयोग वन के उस हिस्से के लिए किया गया है जो 'अरण्य' नहीं है।
'अरण्य' के भी पुनः दो अर्थ किए जा सकते हैं।
पहला वह जो रण, अर्थात् रणभूमि नहीं है।
'रण' वही है जिसे रेगिस्तान कहा जाता है।
रण वह मैदान है जहाँ ज़मीन पर कोई वनस्पति तृण आदि तक का अभाव होता है।
इसलिए प्राचीन-काल में योद्धा ऐसे मैदान पर युद्ध करते थे।
'अरण्य' वह है जहाँ युद्ध कर पाना कठिन होता है।
'अरण्य-रोदन' ऐसे ही वन में रोने को कहा जाता है, जहाँ आपकी आवाज़ सुननेवाला कोई नहीं होता।
'शाद्वल' वन में वृक्षों, लताओं, फूलों आदि से भरा एक टुकड़ा होता है।
'शाद्वल' रण में या अरण्य में भी हो सकता है।
जिसे अरबी भाषा में 'वाह' या 'व्वाह' कहा जाता है।
अंग्रेज़ी के wow से भी यह मिलता-जुलता है !
अरबी भाषा में खजूर को 'नख़ल' कहा जाता है और रेगिस्तान में जहाँ हर तरफ रेत ही होती है और भूमिगत जल भी होता है, किसी हिस्से में नख़लिस्तान / शाद्वल भी पाया जाता है। मानव-बस्ती के लिए ऐसे ही कुछ स्थान रहने के लिए अपेक्षतया उपयुक्त होते हैं। प्राचीनकाल से ही ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में ऊँटों की बहुतायत रही है। यह शोध का विषय हो सकता है कि ऊँटों की बहुतायत होने से ऐसे क्षेत्र धीरे-धीरे मरुस्थल बन गए, या मरुस्थलों के कारण कुछ स्थानों पर जहाँ भूमि में जलस्रोत थे, ख़जूर के वृक्ष बढ़े-पनपे।
जो भी हो मनुष्यों ने उन भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान की।
संस्कृत में शात (मूल शा धातु, 'तेजने' - तेजयुक्त होने, करने के अर्थ में, शान इसी से व्युत्पन्न होता है,) से ही निशात बनाता है। जैसे 'स्तब्ध' और 'निस्तब्ध' या 'निःस्तब्ध' समानार्थी होते हुए भी पहले 'स्तब्ध' का अर्थ 'ठिठका हुआ' भी होता है, जबकि 'निःस्तब्ध' का अर्थ 'अत्यंत शान्त' होता है। निशातबाग तो सुना ही होगा! इसका जो भी तात्पर्य ग्रहण करना चाहें ठीक ही है।
इसी प्रकार 'निशा' अर्थात् रात्रि को भी दो प्रकार से समझा जा सकता है। 'शाम' अर्थात् सायं को भी।
अंग्रेज़ी में नख़लिस्तान को oasis कहा जाता है।
यह भी अव-शिष् का सज्ञात cognate है। अर्थ है : जो शेष रहता है।
ऐसा ही एक शब्द है 'oath' जिसकी व्युत्पत्ति 'अव-वद' , 'अव-वच' दोनों से की जा सकती है।
जैसे अथ, तथ, व्यथ (वि अथ), रथ, कथ, मथ, पथ, आदि में 'थ' प्रत्यय वर्ण (suffix) से जुड़कर निश्चित अर्थ रखनेवाले किसी शब्द को बनाता है, वैसे ही 'अव-थ' भी।
अरबी भाषा की संरचना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि संस्कृत की ही तरह एक एक वर्ण चाहे वह मूल प्रातिपदिक हो या प्रत्यय से युक्त हो भिन्न भिन्न वर्णों से जुड़कर बहुत भिन्न अर्थ देता है और जहाँ तक मेरा अनुमान है अरबी भाषा के प्रत्येक शब्द की उत्पत्ति वैसे ही समझी जा सकती है जैसे कि संस्कृत भाषा के प्रत्येक शब्द की होती है। लिपि के कारण अवश्य दोनों भाषाओं में प्रत्ययों / उपसर्गों के जुड़ने के अपने नियम बदल जाते हैं लेकिन मूल सिद्धांत समान हैं।
विगत 1400 वर्षों के इतिहास के कारण एक कठिनाई अवश्य पैदा हो गयी है कि अरबी भाषा को प्रायः क़ुरान के सन्दर्भ में ही सीखा / पढ़ा जाता है, जबकि इसे क़ुरान से स्वतंत्र रूप में भी सीखा पढ़ा जा सकता है। यह तो मानना ही होगा कि क़ुरान और इस्लाम का आगमन होने से पहले भी अरबी भाषा लिखी-पढ़ी और बोली जाती रही होगी।
अरबी, हिंदी, उर्दू, और पंजाबी का 'रब' से वही संबंध है, जो हिब्रू भाषा में Rabbi /ˈræbaɪ/ से 'रब' का है।
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अरबी, फ़ारसी, हिब्रू, उर्दू, रब, पंजाबी,
रब दा वास्ता,
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