Sunday, 23 June 2019

क़िस्सा हातिम ताई का

ईश्वर-निष्ठा
--
और जब खजूर पर अटके हुए हातिम ताई ने सीढ़ियाँ लानेवाले लोगों का एहसान लेने से इंकार कर दिया, और जब रेगिस्तान के उस इलाके में रात होने लगी, तो भूख और प्यास से बेचैन हुए हातिम ताई ने ईश्वर से प्रार्थना की :
"हे प्रभु ! मैंने तुझ पर विश्वास रखा और मैं अब थक चुका हूँ।  मैं नहीं जानता कि रात की इस ठण्ड में भूखा प्यासा मैं कब तक तकलीफ उठाता रहूँगा ? क्या मेरी मुक्ति का कोई उपाय नहीं ?"
अभी वह प्रार्थना कर ही रहा था कि खजूर के उस दरख़्त पर बेमौसम ही फल उठे खजूर के मीठे और पके फलों की खुशबू उसके नथुनों में पहुँची और उसे एक आवाज़ सुनाई दी :
"यक़ीन करो प्रभु बहुत ही दयालु है।  तुमने यक़ीन किया और तुम्हारे लिए बेमौसम ही ये मीठे फल तुम्हारे लिए इस दरख़्त पर उसकी कृपा से ही फल उठे।  निश्चय ही तुम्हारी निष्ठा पूर्ण है, और क्योंकि तुम उन शैतान दुष्टों के चंगुल में फँसने से बच गए और तुमने उनका एहसान लेने से इंकार कर दिया। लेकिन यदि तुम्हारा यक़ीन सच्चा है तो तुम्हें फल की चिंता छोड़ देना चाहिए।"
अभी उसने फलों को तोड़ने के लिए उनकी तरफ हाथ बढ़ाया ही था, कि वे एकाएक उसकी दृष्टि से ओझल हो गए। लेकिन तब भी उसने प्रभु का धन्यवाद किया और शांतिपूर्वक भूख झेलता रहा।
तब एक और आवाज़ उसे सुनाई दी :
"मैं तुम्हारी भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न हूँ। "
और तत्क्षण ही उसे वे फल पुनः दृष्टिगोचर होने लगे।
तब उसने पुनः प्रभु का धन्यवाद किया ('thank you' बोला, क्योंकि उसे हिंदी नहीं आती थी!)
दो तीन फल खाये ही थे कि उसकी भूख-प्यास दोनों मिट गए।
ऐसे अमृत जैसे स्वादिष्ट और मधुर फल उसने इससे पहले जीवन में कभी चखे तक नहीं थे। 
तभी ऊँटों का एक काफ़िला उसे दूर से आता दिखाई दिया।
जब वे लोग पास आए तो उनकी निग़ाह खजूर पर टिके हातिम ताई पर पड़ी।
एक ऊँचे ऊँटवाले व्यक्ति ने एक सीढ़ी पेड़ से टिकाई और सीढ़ी का दूसरा सिरा ऊँट की पीठ पर। 
तब हातिम ताई सही सलामत उसके ऊँट पर उतर आया।
तब उसे विश्वास हुआ कि जो ईश्वर पर यक़ीन करता है उसे ईश्वर कभी नहीं त्यागता।
--   
इस घटना के बाद हातिम ताई दुनिया भर के दुःख-दर्द दूर करने के अपने मिशन पर वापस संलग्न हो गया।
लेकिन उसने कभी किसी से यह नहीं कहा कि वह कैसे दुनिया का दुःख दर्द दूर कर सकता है क्योंकि वह अत्यंत विनम्र था और उसे विश्वास था कि ईश्वर ही सबके दुःख दर्द दूर करता है, चाहे वे उस पर यक़ीन करें या न करें, -चाहे वे उसे जानें या न भी जानें।
--
टिप्पणी :
उपरोक्त पोस्ट केवल मनोरंजन के लिए लिखी गई है, न कि किसी की आस्था-विश्वास का मज़ाक उड़ाने के लिए।  इसलिए यदि किसी की आस्था-निष्ठा को ठेस लगी हो, तो कृपया क्षमा करें ! 
--
(कल्पित)   क़िस्सा-कहानी   

No comments:

Post a Comment