Thursday, 24 November 2016

विवेकचूडामणि श्लोक / vivekacūḍāmaṇi śloka - 8, 574

विवेकचूडामणि श्लोक / vivekacūḍāmaṇi śloka - 8,  
अतो विमुक्त्यै प्रयतेत विद्वान्
संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृहः सन् ।
सन्तं महान्तं समुपेत्य देशिकं
तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा ॥
(विवेकचूडामणि : श्लोक 8)
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ato vimuktyai prayateta vidvān
saṃnyastabāhyārthasukhaspṛhaḥ san |
santaṃ mahāntaṃ samupetya deśikaṃ
tenopadiṣṭārthasamāhitātmā ||
(vivekacūḍāmaṇi : śloka 8)
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Meaning :
Therefore the man of learning should strive his best for liberation, having renounced his desire for pleasures from external objects, duly approaching a good and generous preceptor, and fixing his mind on the truth inculcated by Him.
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अर्थ : अतः मनुष्य को चाहिए कि मुक्ति के लिए बाह्य-विषयों में सुख की स्पृहा को विवेकपूर्वक त्यागकर महान् आचार्य की शरण ले और उनसे उपदेश ग्रहण कर आत्म-शान्ति का साक्षात्कार करे ।
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विवेकचूडामणि श्लोक / vivekacūḍāmaṇi śloka - 574 
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न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः ।
न मुमुक्ष्रुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता ॥
(विवेकचूडामणि : श्लोक 574)
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na nirodho na cotpattirna baddho na sādhakaḥ |
na mumukṣurna vai mukta ityeṣā paramārthatā ||
(vivekacūḍāmaṇi : śloka 574)
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Meaning :
There is neither death nor birth, neither a bound nor a struggling soul, neither a seeker after liberation nor a liberated one - this is the ultimate truth.
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अर्थ :
न तो मनो-निरोध है, न उत्पत्ति, न कोई बद्ध है, न कोई साधक ।
न कोई मुमुक्षु है, और न कोई मुक्त, ... यही परमार्थता अर्थात् परम सत्य है ।
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From / vivekacūḍāmaṇi of
श्री शङ्कराचार्य / śrī śaṅkarācārya by swāmī mādhavānanda ,
advaita āśrama, kolakātā
स्वामी माधवानन्द,
अद्वैत आश्रम,
कोलकाता कृत विवेकचूडामणि
(अंग्रेज़ी अनुवाद)
से उद्धृत ,
,--

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