Monday, 21 November 2016

एक सवाल सीधा सादा सा ...

बस एक सवाल सीधा सादा सा ...
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क्या पता सच है या ये है कोरी अफ़वाह,
दुनिया बस शै है, यादों में बसा करती है ।
याद होती है तो पहचान बना करती है,
और पहचान ही से याद बनी रहती है ।
दोनों इक दूजे के सहारे से जिया करते हैं,
एक खो जाए तो दूजा भी कहाँ होता है?
इसी तरह से दुनिया है और चलती है,
कौन होता है जो दुनिया से अलग होता है?
जिसमें कई लोग, दुनियाएँ कई होती हैं,
और हर दुनिया में शख़्स कोई जीता है ।
बस ख़याल भर है कि दुनिया है कोई,
बस ख़याल भर कि ये दुनिया मेरी है ।
बस ख़याल भर है कि यहाँ आया हूँ,
बस ख़याल भर यहाँ से लौट जाऊँगा ।
ख़याल खुद भी तो आता है चला जाता है,
कौन होता है जिसका ख़याल होता है?
कहीं से दुनिया में खुद के आने का ख़याल,
खुद के दुनिया से कहीं जाने का ख़याल,
क्या ख़यालों के बिना ज़िन्दगी नहीं होती?
किसी भी दुनिया के ख़यालों के बिना?
ख़याल दिल या तसव्वुर में उठा करते हैं,
ख़याल यादों में बसते हैं लक़ीरों की तरह,
ख़याल बनते हैं मिटते हैं फिर बनते हैं,
क़ोरे काग़ज़ पे बनी मिटती तहरीरों की तरह,
वो क़ोरा काग़ज़ जिस पे कि बनती है तस्वीर,
कोई ख़याल नहीं शख़्स या दुनिया नहीं,
जो न आता है कहीं से या जाता है कहीं,
वो काग़ज़ जिस पे लक़ीर टिकती नहीं,
क्या वो काग़ज़ कहीं से या जाता है कहीं?
क्या पता सच है या ये है कोरी अफ़वाह,
दुनिया वो शै है, बस यादों में बसा करती है ।
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