द्रष्टा / draṣṭā
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Q: Can there be द्रष्टा-s in these ages, or it can be read from bygone unknown eras?
Where are those sages? ...DNA's? An esoteric question.
A: एको हि द्रष्टा सर्वधीसाक्षिभूतो ।
एकानेकविलक्षणः सर्वभूतसाक्षी ॥
कथं प्रोच्यतामेकत्वं वा बहुत्वं ??
एकत्वं बहुत्वं कल्पने जीवबुद्ध्या ॥
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Q: Can there be द्रष्टा-s in these ages, or it can be read from bygone unknown eras?
Where are those sages? ...DNA's? An esoteric question.
A: एको हि द्रष्टा सर्वधीसाक्षिभूतो ।
एकानेकविलक्षणः सर्वभूतसाक्षी ॥
कथं प्रोच्यतामेकत्वं वा बहुत्वं ??
एकत्वं बहुत्वं कल्पने जीवबुद्ध्या ॥
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eko hi draṣṭā sarvadhīsākṣibhūto |
ekānekavilakṣaṇaḥ sarvabhūtasākṣī ||
kathaṃ procyatāmekatvaṃ vā bahutvaṃ ??
ekatvaṃ bahutvaṃ kalpane jīvabuddhyā ||
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Meaning :
द्रष्टा / The seer / see-er is one and unique who abides in the innumerable intellects of the infinite beings. Being unique, this seer / see-er is distinct from the notion of 'one' / '1' or many.
And as such is the Only Reality how could one talk of this द्रष्टा / draṣṭā in terms of 'one' / '1' or many?
Though sages are one with द्रष्टा / draṣṭā and are aware of this secret, the mortal beings of various intellects identify oneself with the mind that is associated with their physical body and the world around this body which appears in waking state only.
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हिंदी
प्रश्न : क्या इस युग / काल में द्रष्टा / ऋषि हैं, या उनका वर्णन केवल सुदूर अतीत की कथाओं से ही पढ़ा जाता है? कौन क्या हैं वे द्रष्टा / ऋषि ? ... डी एन ए ? एक रहस्यमय प्रश्न ।
उत्तर : एको हि द्रष्टा सर्वधीसाक्षिभूतो ।
एकानेकविलक्षणः सर्वभूतसाक्षी ॥
कथं प्रोच्यतामेकत्वं वा बहुत्वं ??
एकत्वं बहुत्वं कल्पने जीवबुद्ध्या ॥
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अर्थ : एकमात्र और एकमेव द्रष्टा ही सभी (असंख्य) बुद्धियों में साक्षीरूप में स्थित है । वही 'एक' और 'अनेक' से विलक्षण समस्त जीवों का, उनके हृदय / अंतःकरण में नित्य विद्यमान उन (बुद्धियों) का साक्षी भी है । इसलिए यह प्रश्न पूछना कि वह एक है या अनेक, अर्थात् उसके एकत्व या / और अनेकत्व का विचार उस 'द्रष्टा' के स्वरूप के बारे में जीवबुद्धि की कल्पनाएँ मात्र हैं जो एक और अनेक की परिभाषा से सीमित नहीं है ।
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