अहसास!
यह जो 'अहसास' है, यह उसी तत्व की परोक्ष 'प्रचीति' है जो हर एक 'अहसास' से पहले, दौरान और उस अहसास के चले जाने बाद भी अखण्डित होता है, हमारा ध्यान 'अहसास', विचार, और अनुभव में अटक और भटक जाने से वह 'व्यक्ति' (पर्सन) और उस व्यक्ति (पर्सन) का एक आभासी संसार दृष्टिगत होने लगता है, जो हमें (?) आभासी अस्तित्व देता प्रतीत होता है । वस्तुतः तो वह एक तत्व ही फ़लक ( स्क्रीन ) और उस पर उभरते विलीन होते चित्रों का एकमेव दृष्टा है, और फ़िर फ़लक (स्क्रीन ) और चित्र भी उसके अभाव में नहीं हो सकते । इसलिए वही एक परब्रह्म सर्वत्र और सर्व है ।
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(टिप्पणी : अधि -आस > अध्यास वह जो अभी प्रतीत हो रहा है, इससे पूर्व भी था, सदा है .. )
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यह जो 'अहसास' है, यह उसी तत्व की परोक्ष 'प्रचीति' है जो हर एक 'अहसास' से पहले, दौरान और उस अहसास के चले जाने बाद भी अखण्डित होता है, हमारा ध्यान 'अहसास', विचार, और अनुभव में अटक और भटक जाने से वह 'व्यक्ति' (पर्सन) और उस व्यक्ति (पर्सन) का एक आभासी संसार दृष्टिगत होने लगता है, जो हमें (?) आभासी अस्तित्व देता प्रतीत होता है । वस्तुतः तो वह एक तत्व ही फ़लक ( स्क्रीन ) और उस पर उभरते विलीन होते चित्रों का एकमेव दृष्टा है, और फ़िर फ़लक (स्क्रीन ) और चित्र भी उसके अभाव में नहीं हो सकते । इसलिए वही एक परब्रह्म सर्वत्र और सर्व है ।
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(टिप्पणी : अधि -आस > अध्यास वह जो अभी प्रतीत हो रहा है, इससे पूर्व भी था, सदा है .. )
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