प्रपञ्च-सार-तन्त्र
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घट-घट घटता घटना-प्रपञ्च
घटी-घटी पल-पल भरती बून्दें
अंतर्बहि बहिरंतर बहती बून्दें,
झट-पट बनता मिटता प्रपञ्च ।
हर घट में भीतर-बाहर जल,
हर घट में घटी-घटी पल-पल,
कितना प्रपञ्च कैसा ये छल?
किसको मोहित करता प्रपञ्च?
यह जल जो अस्थिर चञ्चल है,
यह घट जो अस्थिर भंगुर है,
यह जीव जो रहता भीतर-बाहर,
कितना विमोहक है यह प्रपञ्च !
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(पूज्य भगवत्पाद आदि-शङ्कराचार्य से क्षमा-याचना सहित)
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घट-घट घटता घटना-प्रपञ्च
घटी-घटी पल-पल भरती बून्दें
अंतर्बहि बहिरंतर बहती बून्दें,
झट-पट बनता मिटता प्रपञ्च ।
हर घट में भीतर-बाहर जल,
हर घट में घटी-घटी पल-पल,
कितना प्रपञ्च कैसा ये छल?
किसको मोहित करता प्रपञ्च?
यह जल जो अस्थिर चञ्चल है,
यह घट जो अस्थिर भंगुर है,
यह जीव जो रहता भीतर-बाहर,
कितना विमोहक है यह प्रपञ्च !
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(पूज्य भगवत्पाद आदि-शङ्कराचार्य से क्षमा-याचना सहित)
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