Friday, 18 November 2016

प्रेत, पितर और देवता

प्रेत, पितर और देवता
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"ग़ुरुवर ! क्या यह संभव है कि किसी कारणवश जानते-हुए भी यदि मैं प्रेत के प्रश्न का ठीक उत्तर न दूँ तो भी मेरे सिर के टुकड़े न हों ?"
"हाँ वत्स ! पर ऐसा केवल तभी होगा जब उसने तुमसे प्रश्न करते समय तुम्हें संबोधित न किया हो ।"
"गुरुवर! प्रेत, पितर और देवता के मध्य परस्पर क्या भेद हैं ?"
"वत्स जब किसी मनुष्य का अंतिम संस्कार शास्त्रोक्त रीति से नहीं किया जाता तो मृत्यु के बाद उसे न तो पितृ-लोक प्राप्त होता है और न देव-लोक । तब उसकी प्रेतात्मा प्रलय होने तक अंधकार और भय, चिन्ता और व्याकुलता में भटकती रहती है । ऐसे भी असंख्य लोक (नरक) हैं जो मनुष्य के संस्कारों के क्रम में मृत्यु के बाद उसे प्राप्त होते हैं । इसलिए संतान का यह दायित्व है कि वह माता-पिता आदि का शास्त्रोक्त रीति से तिल तथा जल अर्पित कर, उनके निमित्त अन्न-वस्त्र आदि का दान करते हुए उनकी अंत्येष्टि करे । इस प्रकार की अंत्येष्टि से उनकी गति प्रेतलोक में न होकर पितृलोक में होती है। "
"हे आचार्य ! कृपया मेरी इस शङ्का का समाधान करें कि क्या किसी का भी पुनर्जन्म नहीं होता ?"
"वत्स, केवल उन्हीं का पुनर्जन्म होता है जो पुनर्जन्म की मान्यता को स्वीकार करते हैं । वे ही मृत्यु के बाद पितृ-लोक, देव-लोक या मोक्ष को प्राप्त करते हैं और उस लोक में अपने कर्मों का शुभ-अशुभ फल भोगकर मनुष्य के रूप में मृत्युलोक में पुनः जन्म लेते हैं ।"
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